अब रिश्तों की बात न कर हर इक रिश्ता झूटा है
प्रेम का धागा सब रिश्तों में देखो लगभग टूटा है
दर्द का बंधन ढूंढे से भी ना मिलता है अब जग में
अपनों ने भी भेष बदलकर मुझको जमकर लूटा है
एक ममता ही सच्ची थी बाकी तो बस धोखा था
ऐसी माँ का साथ भी तो आखिर में देखो छूटा है
खूब बजाकर देख लिया आवाज़ ना वो आने पाई
हर घट अब इस जीवन का देखो भीतर ही से फूटा है
प्रेम का जल जिस बगिया में बरसेगा ही न मधुकर
लाख मना लो उस मिट्टी में उगता ना कोई बूटा है