बस तड़प तड़प में ही ये ज़िंदगी गुज़र गई
देने का वादा करा किस्मत मगर मुकर गई
एक नशे में रह रहा था मैं तो पाल के स्वप्न
असलियत से पर मेरी सारी चढ़ी उतर गई
कोशिशें कितनी करीं हार तो ना बन सका
मोतियों की माल हरदम टूट के बिखर गई
ज़िन्दगी की शाम में अब उम्मीदें क्या करें
कलियाँ खिलाती जो यहाँ दूर वो सहर गई
दूरियां इस धरा और चाँद में जबसे बढीं
ऊँची लहर मधुकर कहीं समुन्द्र में ठहर गई