अगर प्यार होता नहीं मेरे मन में
तो कैसे मैं इसका इकरार करती
कितना भी चाहे तू मुझको लुभाता
इसका ना हरगिज मैं इजहार करती
औरत के मन में बसे गर ना कोई
उससे वो फिर दूरियां है बनाती
फिर भी अगर कोई पीछा करे तो
ऊंची मैं छिपने को दीवार करती
राहों में तेरी पलके बिछा कर
बैठी हूँ कब से तुझे देखने को
अगर मेरे दिल में हलचल ना होती
बागों को भी मैं फिर खार करती
बातें जो मेरी शहद हो रही हैं
तेरे प्यार का ही इक ये असर है
अगर कोई मुझको सुकूं सा ना मिलता
रूखा मैं तुझसे व्यवहार करती
अगर वक्त मुझको मौक़ा सा देता
मैं तेरी बलाओं को सर अपने लेती
तेरे घर की जीनत मैं बन जाती मधुकर
और फिर पायल की झंकार करती