मिलन की आरजू पे डर ज़माने का जो भारी है
तेरी मेरी मुहब्बत में अजब सी कुछ लाचारी है
दोस्तों दोस्ती मुझको तो बस टुकडों में मिल पाई
बड़ी तन्हा सी मैंने ज़िन्दगी अब तक गुज़ारी है
भले तुम अजनबी से अब तो मुझसे पेश आते हो
तेरी सूरत ही मैंने देख ले दिल में उतारी है
भुलाना भी तुम्हें अब तो कभी आसां नहीं लगता
मेरे हर क़तरे क़तरे में बसी खुशबू तुम्हारी है
कोई हँसता हुआ चेहरा अगर तुमको दिखे मधुकर
मुहब्बत ने समझ लो उसकी ये सूरत निखारी है