तुम्हारी प्रीत के बिन तो बड़ा मुश्किल ये जीना है
मुझे तो ज़िन्दगी का जाम नज़र से तेरी पीना है
ना मेरे मर्ज को समझा ना मेरे दर्द को समझा
बड़ी बेरहमी से तुमको उन्होंने मुझसे छीना है
दिन भी लम्बे हुए हैं कुछ और तू पास ना आए
मेरे किस काम का खिलता बसन्ती ये महीना है
मेरी उजड़ी सी दुनिया देख वो ही मुस्कुराएगा
पतंग जिसकी चढ़ी ऊँची अभी तक भी कटी ना है
जहाँ में कुछ भी मिल जाए मगर ये जान ले मधुकर
मुहब्बत के बिना जीवन में रहती कोई खुशी ना है