मन की हर बात करने का मेरा मन तुझसे करता है
तेरे हर लफ्ज का मरहम मेरी पीड़ा को हरता है
मेरी झोली किसी के प्यार से महरूम थी अब तक
तू दोनों हाथों से इसको सदा हँस हँस के भरता है
तू मेरे साथ है जब से मुझ को चिंता नहीं रहती
तन्हा इंसान ही बस हर समय गैरों से डरता है
अलग इंसान होते हैं फ़कत कातिल ज़माने में
ये जज्बा प्यार का आसानी से थोड़े ही मरता है
मुहब्बत ना मिले गर इंसा ये मधुकर टूट जाएगा
गमों की आग से जग में कोई फिर ना उबरता है