तुम्हारे हुस्न के जलवे हमें अब भी सताते हैं
हमें पर कुछ नहीं होता ये गैरों को जताते हैं
तुम ही सच जानते हो बस गए कैसे निगाहों में
महज़ एक दोस्त हो गैरों को पर हम ये बताते हैं
हमें तो बंदिशों ने ज़िन्दगी में ऐसा जकड़ा है
हाल ए दिल कह के ग़ज़लों में ही बस सबको सुनाते हैं
यूँ तो झुकना नहीं सीखा हमनें रिश्तों की दुनिया में
मगर तुमको ना जाने क्यों सदा झुककर मनाते हैं
किसी को अब नहीं फुरसत जो मधुकर पीर को सुन ले
तन्हा रहकर दीवारों को अपने दुखड़े सुनाते हैं