मुझे तू प्यार करता है तो मैं सिमटी सी जाती हूँ
खुशी से झूम उठती हूँ लाज संग मुस्कुराती हूँ
मेरे मन में उमंगों का बड़ा सा ज्वार उठता है
मगर मैं हाले दिल तुमको नहीं खुलकर बताती हूँ
मेरे हर क़तरे क़तरे में तेरी छवियां समाई है
मगर न जाने क्यों मैं प्यार अपना न जताती हूँ
नज़र लग जाए न अपनी मुहब्बत को कभी जग की
बड़ी चतुराई से तब ही मैं तेरा दिल दुखाती हूँ
मैं औरत हूँ मेरी फितरत ज़मीं सी तुम सनम समझो
राज़ कितने सुनो मधुकर मैं सदियों से छुपाती हूँ