अब तुझको मेरे साथ की कोई ना आस है
तेरा काम तो निकल गया शक्ति भी पास है
तेरे आँसुओं के फेर में मैं फिर से लुट गया
इक ये अदा तो हुस्न की सदियों से खास है
उल्फ़त की राह में मिला मुझको फ़कत फरेब
इसकी डगर न जाने क्यों आती ना रास है
मुझको सफ़र में ना कोई पनघट कहीं मिला
बस बादलों को देख के मिटती ना प्यास है
वैसे तो ज़िंदगी में मुझे सब कुछ हुआ नसीब
मधुकर का दिल कहीं मगर अब भी उदास है