अपना एक घर बनाया था,
सपनों का जहां बसाया था
चुन-चुन के सपनों से सजाया था
न जाने किसकी ,कैसी नजर लगी
कि बेदर्द वक्त ने किया ऐसा सितम
घर की खुशियां रूठी , तुम रूठ गए मुझसे मुझसे छोड़ दिया साथ मेरा , छूटी खुशियां मेरी टूट गए सारे के सारे अरमान मेरे
सपनों का चिलमन जलता ही रहा
तेरे हाथों से मेरा हाथ ना जाने
कैसे फिसलता ही रहा
फासले बढ़ते गए ,आस मिटती गई
जिंदगी सिमटती ही चली गई
अब घर ,वो घर न रहा
बस यादों का है एक मकान
जो अब खंडहर सा बन गया
टूटा है कोई ख्वाबों का घरौंदा 🏠
जो अब कभी भी न जुड़ पाएगा।
धन्यवाद🙏