मृगतृष्णा से इस जीवन में
न जाने हम किस तलाश में भटक रहे हैं
बचपन के स्नेह, भाव, ममत्व को छोड़
स्वार्थ, अंहकार, ईष्या की भावना को
झेल रहे हैं हम
मोहब्बत, एकता के एहसास को छोड़
स्वार्थ, द्वेष के बीज 🌰 बो रहे हैं हम
नफरतों की बगिया को दिल 💜❤ से
सींच रहे हैं हम
जिंदगी में सुकूँ कि तलाश में
दर-दर भटक रहे हैं हम
इंसानियत, प्यार, मोहब्बत,
सब धीरे- धीरे भूल रहे हैं हम
स्वार्थ भरे रिश्तों के बाजार में हम
एक-दूसरे रिश्तों में यकीन ढूंढ रहे हैं हम
धन्यवाद🙏