कभी एकांत मन को भाता था
दिल हिलोरें ले लेकर मल्हार गाता था।
दिल की बगिया खिल जाती थी
प्रेम के बीज अंकुरित हो मन प्रफुल्लित हो जाता था।
बसंत बयार सा मौसम उन्मुक्त हर्षोल्लास
सा मन को भरमाता था।
स्वच्छंद अल्हड़ सा नवजीवन प्रेम भरी
खुशियों के दीप जलाता था।
आज वही एकांत का लम्हा-लम्हा तन-मन को
जला- जलाकर पल-पल जीवन को राख सा बना रहा है।
तेरे संग बिताए लम्हों को हर पल यादगार
बना तन्हाई में एकांत का साथी बन साथ
निभा रहा है।
धन्यवाद🙏🏼