मां के दूध का कर्ज उतारा था
पिता के कंधों का भार संभाला था
घर की मुखिया थी, सभी की सुखिया थी
सभी को प्यारी थी, सभी की राजदुलारी थी
सबके दुखों की पुड़िया थी, सब के सुखों की गुड़िया थी
सबको छोड़कर चली गयी, दुख की घड़ी थी
आंखों में आसुओं भरी की लड़ी थी ।
धन्यवाद🙏