फिसलता जा रहा है समय बहती धारा सा
जैसे बंद मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह
रोक नहीं सकते हम, टोक नहीं सकते हम बढते वक्त को ।
लगा न पहले कोई पाबंदी
फिसलते समय की निरंतर धारा पर
बहते ही गए हमसफर की तेज रफ्तार में
निरतंर गतिशील पानी की धार सा ।
समय के चक्र को रोक नहीं सकते
बीता वक्त वापस नहीं ला सकते
बस निरतंर समय की धारा में बहते ही
जाना है सिर्फ बहते पानी की तरह ।
पल भर की मोहलत नहीं दे ताहै ये वक्त
जिंदगी हो या मौत का हो सफर
इस बेदर्द वक्त का हर शय है गुलाम
अब तो बीती बातों के सिर्फ लौ जलते हैं
बस दर्द के पैमाने ही पैमाने छलकते है ं।
धन्यवाद🙏