गंगा की पावन निर्झर- निर्मल सी
बहती अनवरत धारा ये कहती
हर पल चलते ही रहो तुम
जीवन में पल भर भी ना रुको तुम,
न झुको तुम ,न टूटने तुम
न टिको इक क्षण एक भी तुम
निरंतर गतिशील बने रहो तुम
जीवन पग में न डरो तुम।
कठिन पथ में संघर्षरत, संघर्षपूर्ण
जीवन में कभी न विचलित हो तुम
देखो मुझे कैसे रहती हूं हर पल
झर- झर ,निर्झर इस तूने वन -पथ में
बिना रुके ,बिना टिके, पल -पल
मैं हूं सदुपयोगी पर नहीं कोई सहारा मेरा
नहीं है कोई किनारा मेरा
फिर भी मैं ,
कल- कल ,छल -छल कर खुशियों के साथ
हर पल पहाड़ों से नीचे ,छोटे-बड़े ,संकरे स्थानों से निरंतर बहती रहती
लहरों के थपेड़ों को सहती
चट्टानों से टकराने से लहूलुहान होकर भी
कभी न हार मानती।
निरंतर बहकर दुनिया में सबके
जीवन में खुशियां भरती
हरियाली करती , खुद दर्द चोट
सहकर भी हर पल सबका ख्याल रखती हूंँ मैं
ऐसे ही नहीं मैं सबकी गंगा मां कहलाती हू
ऐसे ही नहीं सबके दिलों को मैं लुभाती हूंँ।