समुंद्र की हलचल, मन की उमंगों को कौन रोक पाया है ।
दिल की तरंगों, अंतर्मन के मंथन को कौन रोक पाया है।
जीवन के द्वंद, प्रतिबंध को कौन रोक पाया है।
जीवन की कठिनाइयों ,परेशानियों को कौन रोक पाया है।
लड़ते- झगड़ते ,जूझते हुये ,सफलता के पथ पर निरंतर आगे ही बढ़ते जाना है ।
मन तो चंचल है, गहरी खाई है ,
हर पल ,पल- पल में इधर- उधर
लहरों सा मचलता, चलता,
भागता ,उफनता निंरतर
मन की गति को कौन रोक पाया है ।
धन्यवाद🙏