तन्हाई का आलम है, तन्हा तन्हा है जिंदगी
जिंदगी का क्या है , क्या कहे
जिंदगी तो बस है इक फसाना
जहां सबका अलग - अलग है ठिकाना
जिसमें हर किसी का मुसाफिर, राहगीर सा है आना-जाना।
समय का पहिया जब घूमता है तो घूमता ही
जाता है
इंसान बेबस, मजबूर सा खड़ा देखता रह
जाता है ।
पुरानी यादें, परछाइयाँ रह जाती हैं सब कुछ
बिखर जाता है।
जिंदगी का हर पल, हर लम्हा, इक पल में सिमटकर रह जाता है।
इंसान लाख कोशिशें करता है जीने की
मगर जिंदगी जिंदा लाश सी बेबस, बेजार हो
जाती है।
जिंदगी जीना आसान नहीं है, जिंदगी एक अनसुलझा, अनचाहा उलझता सा जाल है,
जिसमें उलझकर हर इंसान परेशान है,
मगर जीवन के कुछ सुलझे, खुशनुमा पहलुओं को भुलाना भी मुमकिन नहीं ।
धन्यवाद 🙏