एक द्रवित करती त्रासदी
मणिपुर, जिसे पूर्वोत्तर भारत का "गहना" कहा जाता है, आजकल सांप्रदायिक हिंसा और अस्थिरता का शिकार बना हुआ है। यह राज्य, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, संस्कृति और विविधता के लिए जाना जाता था, आज आग की लपटों में घिरा हुआ है। वर्तमान आपदा ने न केवल मणिपुर की सामाजिक संरचना को हिला दिया है, बल्कि पूरे देश को गहराई से सोचने पर विवश करती है।
वर्तमान संकट का कारण
मणिपुर में जातीय और सांप्रदायिक संघर्ष लंबे समय से एक समस्या रही है। राज्य की मुख्य जनजातियां, जैसे मैतेई, कुकी और नागा, सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व को लेकर संघर्षरत हैं। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग ने हालिया संघर्ष को भड़काया है। यह मांग अन्य जनजातियों के लिए उनके अधिकारों और संसाधनों पर खतरे के रूप में देखी गई, जिससे संघर्ष और हिंसा को बढ़ावा मिला।
हिंसा और उसका प्रभाव
हालिया हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, हजारों लोग बेघर हो गए हैं, और कई परिवार विस्थापित हो गए हैं। घरों, चर्चों, मंदिरों और सरकारी इमारतों को जलाया गया है। बच्चों की शिक्षा बाधित हुई है, और महिलाओं व बुजुर्गों को सबसे अधिक कष्ट झेलना पड़ा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य में इंटरनेट बंद है, और सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद शांति बहाल नहीं हो पा रही है। यह स्थिति प्रशासन की विफलता और स्थानीय समुदायों के बीच बढ़ते अविश्वास को दर्शाती है।
राजनीतिक और प्रशासनिक विफलता
मणिपुर संकट को सुलझाने में केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, असंवेदनशील प्रशासन और बातचीत के अभाव ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। कई स्थानीय संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को एक तटस्थ और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था।
समाधान की दिशा में कदम
1. संवाद और सहानुभूति: सरकार को सभी समुदायों के नेताओं के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए और उनकी चिंताओं को समझना चाहिए।
2. शांति प्रक्रिया: शांति समितियों का गठन कर विश्वास बहाली के लिए ठोस प्रयास किए जाने चाहिए।
3. सुरक्षा और पुनर्वास: प्रभावित परिवारों को सुरक्षा और पुनर्वास की गारंटी दी जानी चाहिए।
4. लंबी अवधि की योजना: आर्थिक और सामाजिक विकास की योजनाओं को लागू कर समुदायों के बीच संसाधनों की समानता सुनिश्चित करनी चाहिए।
निष्कर्ष
मणिपुर में जल रही आग केवल एक राज्य की समस्या नहीं है; यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की विविधता उसकी ताकत है, लेकिन इसे बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। जरूरत है एकता, सहिष्णुता और न्याय की भावना को पुनर्जीवित करने की। अगर मणिपुर को जलने से बचाना है, तो हमें तत्काल कदम उठाने होंगे और इसे फिर से शांति और समृद्धि का प्रतीक बनाना होगा।उनकी समस्याओं को धैर्यपूर्वक समझकर निपटाना होगा।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
अनाम अपराजिता
अहमदाबाद