चमकते तारों सा निखरता,
दिली हर ख्वाब बिखरता।
रात की चादर में सिमटता,
हर सपना नये सफर रचता।
दूर कहीं से आती है पुकार,
गगन के पार एक है संसार।
जहाँ उम्मीदों का है बसेरा,
हर ख्वाहिश का है वे डेरा।
आंखों में नम दिली अरमान,
सपनों का ये अनोखा जहान।
छोटे-बड़े, नाजुक से परवाज़,
देते हैं हम उमंगों को आवाज।
हर गिरावट को भुला के बढ़ते,
सपनों के पंखों संग हम उड़ते।
जो खो जाता, फिर भी वे पाते,
सपनों के संसार में खिल जाते।
चटक रंगों से सजे रंगीन सपने,
मन के द्वार में बुझे सोये सपने
रात सुहाने सवेरे में बदल जाए,
सपनों का संसार फिर सजाए।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी