मैं तेरी संगिनी,छाया बन साथ चलूँ,
तेरे हर दर्द को अपने आँचल में लेलूँ।
तेरी खुशियों में खिल सुमन बन जाऊँ
तेरी हर तन्हाई में लता वितान बनाऊँ।
राहों के दुख कंटकों से मैं दूर ले जाऊँ
मैं बन फूल कली पंखुड़ी बिछ जाऊँ।
तेरे सपनों की उड़ान में मैं पंख लगाऊँ,
तेरी हर हार में तेरी ताकत बन जाऊँ।
जब बेदर्द दुनिया तुझे यों सताएगी,
मैं तेरा संबल बनकर खड़ी आऊंगी।
तेरी ही हँसी में परछाईं सी झलकूँगी,
हर आस में मैं आशा दीप जलाऊँगी।
संगिनी हमसफर , सिर्फ पत्नी नहीं,
तेरे हर सफर में हूँ साथ लक्ष्य है यही।
वादा मेरा , हर कदम को उड़ान दूँगी,
गिरेगा नहीं ,बढ़ा हाथ तुझे थाम लूँगी।
अँधेरों में भरती रोशन पूनम की चांदनी,
तेरी रातों में सुबह की किरण की रागिनी।
मैं तेरी संगिनी,सदा खुशी से रहूँ वन्दिनी,
तेरी धड़कनों से स्पन्दित होती सुहागिनी।
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी