यह कहानी एक छोटे से गाँव की है जहाँ एक बुजुर्ग किसान, रमेश जी, अपने खेतों और प्रकृति से बहुत लगाव रखते हैं। रमेश जी के पास ज़्यादा संपत्ति नहीं है, पर उनका मन बहुत धनी है। वो मानते हैं कि धरती माँ की देखभाल करना उनकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है।
हर सुबह, वो अपने खेतों में काम करने के लिए सूरज उगने से पहले ही निकल पड़ते हैं। वह अपने खेतों में रासायनिक उर्वरक या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते, बल्कि घर के ही बने जैविक खाद और नीम के पत्तों का उपयोग करते हैं। उनके खेतों में हरियाली खिलखिलाती है, पक्षियों का कलरव और पेड़ों की ठंडी छाँव होती है।
गाँव के कई लोग उनसे मज़ाक करते हैं कि वो आधुनिकता से पीछे रह गए हैं और उनके जैसे परंपरागत तरीके से खेती में मुनाफ़ा कमाना मुश्किल है। लेकिन रमेश जी को अपने तरीकों पर पूरा विश्वास है।
एक दिन, रमेश जी के खेत के पास के गाँव में एक बड़ी औद्योगिक कंपनी आकर प्लास्टिक का कारखाना लगाने की योजना बनाती है। गाँव के कुछ लोग उस कंपनी के समर्थन में होते हैं, क्योंकि उससे गाँव में रोजगार और पैसा आ सकता था। लेकिन रमेश जी जानते थे कि उस कारखाने से निकलने वाले प्रदूषण का प्रभाव उनके खेतों, नदी और गाँव की हरियाली पर पड़ेगा।
रमेश जी ने गाँव के लोगों को समझाने का प्रयास किया कि वो पैसा आज के लिए हो सकता है, परंतु इसके प्रभाव से आने वाली पीढ़ियाँ प्रदूषित पानी, हवा और बंजर जमीन ही पाएंगी। वो गाँव वालों को अपनी खेती की जैविक पद्धति से होने वाले लाभ के बारे में बताते हैं, और उन्हें प्रेरित करते हैं कि मिलकर पर्यावरण की रक्षा करें। बताते हैं कि यदि कारखाने लगेंगे तो उसकी कचरे से हमारी नदियां प्रदूषित हो जाएंगी हम एक दूसरे पर ही निर्भर है अगर नदियां प्रदूषित हो गई तो हमारे जानवर पानी कहां से पियेंगे ?हमारे खेतों की सिंचाई में रासायनिक दुष्प्रभाव पड़ेंगे जिससे हमारे खाने के अनाज सब्जियां फल प्रदूषित हो जाएंगे और हमारे अंदर आने को बीमारियां पैदा कर देंगे तो इसलिए हमें अपने पर्यावरण को साफ शुद्ध रखना चाहिए जिससे हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिले अभी आप लोगों ने कोविड के समय देखा है एक-एक ऑक्सीजन के लिए हमें कितना भटकना पड़ा है और ऑक्सीजन की ही कमी से हमने अपने लाखों आत्मीय लोगों को खो दिया था।
धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाती है। गाँव के लोग रमेश जी का साथ देने लगते हैं। सब लोग मिलकर कंपनी का विरोध करते हैं और सरकार से अपील करते हैं कि उनकी जमीन को प्रदूषण मुक्त रखा जाए। रमेश जी की बातों और उनके पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली का असर पूरे गाँव पर होता है। कुछ समय बाद, गाँव की हरियाली, उसकी स्वच्छ हवा और रमेश जी के प्रयासों की कहानी दूर-दूर तक फैल जाती है। लोग उनकी कहानी सुनकर प्रेरित होते हैं और अपने आसपास की प्रकृति की देखभाल करने का संकल्प लेते हैं।
इस तरह रमेश जी की साधारण लेकिन प्रेरणादायक जिंदगी ने गाँव को न केवल समृद्ध किया, बल्कि उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित और सुंदर स्थान बना दिया।
स्वराजित डॉक्टर विजय लक्ष्मी