करवा चौथ: सुहाग की रक्षा और स्नेह का पर्व
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में विवाहिता स्त्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार न केवल सुहाग की लंबी उम्र की कामना का प्रतीक है, बल्कि दांपत्य जीवन में समर्पण, त्याग और प्रेम का भी प्रतीक है। इस दिन व्रती स्त्रियां पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। करवा चौथ केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम, विश्वास और एकता को मजबूत करता है।
करवा चौथ का सांस्कृतिक महत्व प्राचीन कथाओं से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वीरवती नामक एक महिला ने अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और उसकी श्रद्धा और प्रेम के बल पर उसके पति को मृत्यु के बंधन से मुक्त किया गया। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि स्त्री का प्रेम और समर्पण कितनी शक्तिशाली हो सकती है।
करवा चौथ का त्योहार आज भी महिलाओं के जीवन में उत्साह और आनंद का प्रतीक बना हुआ है। वे इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं, और सामूहिक रूप से व्रत की पूजा करती हैं। यह न केवल पति की लंबी आयु की प्रार्थना है, बल्कि वैवाहिक जीवन के प्रति निष्ठा और समर्पण की पुनः पुष्टि भी है। यह दिन पत्नियों के लिए उस अटूट बंधन का उत्सव है जो पति और पत्नी के रिश्ते को और अधिक सुदृढ़ करता है।
कविता:
सुहाग की रक्षा में रखा व्रत, करवा चौथ का दिन,
चांद के साथ जुड़ी हैं, प्रेम की अनगिनत रिन,
सजी हर सुहागिन, अपने पति की दीर्घायु के लिए,
समर्पण के विश्वास में बंधी, आत्मिक चिरायु के लिए।
चूड़ियों की खनक बसे प्रेम, बिंदी की आभा आस्था,
करवा में सजें उम्मीदें, मंगलमय हो हर पली व्यथा।
सुहागिन की आंखों में चांद की चांदनी का अक्स,
करवा चौथ के व्रत में छिपा, स्नेह का प्रीतम शख्स।