कहानी का शीर्षक"वो अनकही सच्चाई"
राधा ने पहली बार स्कूल में कदम रखा, तो उसकी छोटी आँखों में न जाने कितने सपने तैर रहे थे। अपनी माँ के प्यार भरे हाथों से सँवारी उसकी दो चोटी और उसका मामूली सा स्कूल बैग, जैसे उसके नए सफर की पहली पहचान थे। पर उसका गेंहुआ रंग और मामूली कपड़े देख कर क्लास के बच्चे उसकी हँसी उड़ाने लगे। "तुम तो कोयली जैसी काली हो," किसी ने कहा। कोई उसे "काली कलूटी बैगन लूटी " कहकर चिढ़ाने लगा।एक ने तो हद कर दी "कालीमाई दियासलाई " छोटी सी राधा के दिल पर हर एक शब्द तीर की तरह जा लगा। उसकी मासूम आँखों में स्कूल का सपना पलभर में बिखर सा गया।
राधा चुपचाप घर लौट आई। उसने माँ से कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी उदासी को माँ की ममता ने तुरंत पहचान लिया। माँ ने उसे प्यार से गले लगाते हुए पूछा, "क्या हुआ, बेटा? आज इतनी चुप क्यों है?"
राधा की आँखों से आँसू बहने लगे। "माँ, मुझे काला कहते हैं सब," उसने सिसकते हुए कहा। माँ ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा, "राधा, रंग तो सिर्फ बाहरी चीज है। असली सुंदरता तो तुम्हारे दिल और आत्मा में होती है।"
माँ की ये बातें राधा के मन में घर कर गईं, और उसने खुद को साबित करने का संकल्प लिया। उसने खुद से वादा किया कि एक दिन ऐसा कुछ करेगी कि लोग उसके रंग को नहीं, उसकी काबिलियत को पहचानेंगे। राधा पढ़ाई में जी-जान से जुट गयी। उसे अपनी माँ की बातों पर पूरा भरोसा था, और वहहर रोज खुद से और मेहनत करने का संकल्प दोहराती ।
समय के साथ, राधा अपनी कक्षा की सबसे होशियार छात्रा बन गई। उसकी मेहनत का फल था कि उसने राज्य स्तर की एक प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया। उसके नाम की घोषणा होते ही, सारे लोग तालियाँ बजा रहे थे। जो बच्चे कभी उसे उसके रंग के कारण चिढ़ाते थे, अब उसके नाम का आदर से उच्चारण कर रहे थे। राधा के लिए वो पल मानो किसी सपने के सच होने जैसा था। उसने अपनी माँ की दी हुई सीख को सच कर दिखाया था।
जब वो अपने प्रमाणपत्र के साथ मंच पर खड़ी थी, उसके स्कूल के प्रिंसिपल ने उसकी तारीफ करते हुए कहा, "राधा ने यह साबित कर दिया है कि रंग से नहीं, बल्कि आत्मा और मेहनत से इंसान की पहचान होती है। हमें उस पर गर्व है।"
राधा के चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान थी, जो उसे उसकी माँ की बातों का प्रतिफल महसूस करा रही थी। आज उसे समझ में आ चुका था कि असली सुंदरता और सफलता का कोई रंग नहीं होता।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी