यह कहानी मेरे छोटे से गांव की है, जहां एक स्कूल में मेरे बाबा जी प्रधानाध्यापक थे। वहाँ हर साल बाल दिवस बड़े उत्साह से मनाया जाता था । उस साल भी बच्चे बाल दिवस की तैयारियों में व्यस्त थे , पर उनकी उम्मीदें कुछ अलग थीं । गांव के सभी बच्चे अपने स्कूल में एक विशेष अतिथि के रूप में किसी को देखना चाहते थे।
उनके प्रिय मास्टरजी, जो उन्हें कहानियां सुनाया करते थे, पिछले महीने अचानक से किसी बीमारी की वजह से स्कूल आना बंद कर चुके थे। मास्टरजी बच्चों के जीवन में एक महत्वपूर्ण जगह रखते थे। वे हमेशा बच्चों को समझाते कि सपने देखो और उनको सच करने के लिए मेहनत करो। मास्टरजी की कहानियों में दुनिया की खूबसूरती होती थी, और उनका पढ़ाने का अंदाज भी अलग था।
बाल दिवस के दिन बच्चे स्कूल में मास्टरजी का इंतजार कर रहे थे, लेकिन मास्टरजी अभी भी नहीं आए। बच्चों ने उनकी गैर-मौजूदगी में ही बाल दिवस मनाने की तैयारी की। कार्यक्रम शुरू होते ही स्कूल के प्रधानाचार्य ने मंच पर आकर कहा, "बच्चों, मास्टरजी का स्वास्थ्य अब पहले जैसा नहीं रहा, वे इस बाल दिवस पर हमारे साथ नहीं हैं। लेकिन उन्होंने मुझे आप सभी के लिए एक संदेश भेजा है।"
सभी बच्चे बड़े ध्यान से सुनने लगे। प्रधानाचार्य ने पत्र पढ़ना शुरू किया, "मेरे प्यारे बच्चों, मैं आज आपके साथ नहीं हूं, लेकिन मेरा दिल हमेशा आपके साथ है। मैं चाहता हूं कि आप सभी अपने सपनों की ओर बढ़ते रहें और कभी हार न मानें। याद रखना कि एक छोटा सा बीज भी एक दिन बड़ा पेड़ बन सकता है, बस उसे पानी और धूप चाहिए। आप भी अपनी मेहनत और विश्वास से एक दिन बड़े बन सकते हैं।"
मास्टरजी का यह संदेश सुनकर बच्चों की आंखों में आंसू थे, लेकिन उनके चेहरों पर एक नया उत्साह भी था। उन्हें महसूस हुआ कि मास्टरजी उनके साथ भले ही न हों, लेकिन उनके सपनों और उनकी उम्मीदों में हमेशा जीवित रहेंगे।
उस बाल दिवस पर बच्चों ने न केवल मास्टरजी को याद किया बल्कि यह भी संकल्प लिया कि वे मेहनत से पढ़ाई करेंगे और मास्टरजी के दिखाए रास्ते पर चलेंगे। उस दिन सभी बच्चों ने एक कागज़ पर अपने-अपने सपने लिखे और एक बड़े बक्से में डाल दिए, ताकि आने वाले वर्षों में वे अपने इन सपनों को पूरा करने का रास्ता खुद देखें।
इस तरह, मास्टरजी की अनुपस्थिति में भी बच्चों का बाल दिवस, उनकी उम्मीदों और सपनों का प्रतीक बन गया। आज उनके पढ़ाये बच्चे कामयाबी की बुलंदियां छूते हुए रिटायर हो चुके हैं पर बाल दिवस के मेले व प्रेरणा के किस्से उनसे सुने जा सकते हैं।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी