पितृपक्ष आने वाले था।राघवेन्द्र पिता के श्राद्ध की तैयारी के सामान की सूची अपने बजट को ध्यान मे रख बना रहा था तभी उसकी माँ कौशली उसके पास आकर बैठ गयी और पूछने लगी बेटा क्या कर रहे हो ?? मां अगले हफ्ते आने वाले बाबू जी के श्राद्ध की तैयारी कर रहा था क्या-क्या लगेगा ?? कम से कम 11 या 21 ब्राह्मण करने होंगे फिर 1-1 सभी को पात्र अंगोछा ,दक्षिणा देनी होगी। अम्मा महंगाई का जमाना है ₹20 से कम में तो ग्लास भी ना मिलेगा लोटा तो बहुत दूर की बात है। दक्षिणा 51 से कम लेते ही नहीं अंगोछा भी ₹100 से कम में कहां मिलेगा ?? कुल मिलाकर गिरी हालत में 5-6 हजार खर्च हो ही जाएंगे। 4-6 पड़ोसी हो जायेगे।
हां वह तो है बेटा ,तुमसे कुछ कहना चाहती थी। पिछली बार देखा था बेटा पंडितों ने कितना परेशान किया था।पुरोहित जी की भी नहीं सुन रहे थे। बहू भी परेशान हो गई थी। फिर भी संतुष्ट नहीं थे। आशीर्वाद तो दूर उल्टे दो चार बातें सुना कर गए थे।
वह तो है मां पर करें भी तो करें क्या?? अधिक करने में तो अपना बजट भी गड़बड़ा जाएगा। नहीं नहीं बेटा !! मेरे कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि तुम उनकी नाजायज मांगो को पूरा करने मे अपना पूरे माह का बजट बिगाड़ लो। तुम्हारी भावना और श्रद्धा अपने पिता के प्रति भी समझती हूं साथ ही तुम्हारी जिम्मेदारियां मैत्रेयी, अपाला ,ऋषभ व बहू वैदेही के प्रति भी जानती हूं। अभी बच्चों की शिक्षा दीक्षा के खर्चे भी हैं। "हां आप कह तो सही रही हैं पर, हमें इस पूजन को तो अवश्य करना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में भी श्राद्ध का विधान है।
"सुनो बेटा यह हमारे पर्व प्रेम सौहार्द , स्नेह व पारिवारिक एकता को कायम रखने के लिए ही बनाए गए थे कि इसी बहाने लोग आपस में मिलते-जुलते रहेंगे न कि पोंगा -पंथी लकीर का फकीर बने रहने के लिए"।
"पितरों की प्रसन्नता हेतु श्रद्धा से किए जाने वाला कार्य,जो कृतज्ञता अभिव्यक्त कर , याद करने के निमित्त किया जाता है वही सच्चा श्राद्ध कहलाता है।श्रद्धा से ही श्राद्ध होना चाहिए न कि मात्र प्रदर्शन के लिए।
हां बेटा !! हम ये शास्त्र सम्मत पूजन विधान जरूर करेंगे।मैने भी सोच-विचार कर कुछ निर्णय लिया है। सुनो, "मैं कल मैत्रेयी बिटिया के साथ घूमने गई थी ,संध्या का समय था। मैंने दो महिलाओं को वृद्धाश्रम की ओर जाते देखा उनमें से एक मुझे कुछ जानी पहचानी लगी।
जब मैंने अतीत की स्मृति में जोर देकर सोचा तो याद आया वे अपने गांव के साहूकार की पत्नी राधिका थी शायद अब साहूकार जी के न रहने के कारण वे वहां रह रही थीं। मैं उनके पीछे ही चल रही थी मैंने उनको पहचान लिया था पर वे मुझे नहीं पहचान पाईं थीं। तुम्हारे पिता उनके यहां मुनीमी करते थे। हमारी आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। तुम्हारे पिता के तीन छोटी बहने थी। उनकी शादियों में उन्होंने बहुत मदद की थी।वह बहुत ही सहृदय इंसान थे।दूसरों के दुख-दर्द को अनुभव करते थे। जरूरतमंद की मदद को सहर्ष तैयार रहते थे पर उनकी पत्नी राधिका को अपने पैसे, बच्चों की शिक्षा दीक्षा, उनकी नौकरी का बहुत ही घमंड था।अपने यहां काम करने वालों को मात्र नौकर समझती थी उन्हें किसी के प्रति भावसंवेदना नहीं थी"।
कल मैंने रास्ते में उन दोनों का जो वार्तालाप सुना वह मुझे अंदर तक हिला गया।बेटा !! वह अपने साथ वाली महिला से कह रही थी, "क्या करूं ??ऐसी प्रचंड गर्मी में पूरी-पूरी रात नींद नहीं आती शारदा बहन। मेरे पति हमेशा कहते थे सुविधाओं पर इतना अधिक आश्रित मत हो जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं।मुझे कहीं से यह भान नहीं था कि एक दिन मेरे बच्चे, पति के आंखें बंद करते ही मुझे घर से बेघर कर इस अनाथ आश्रम में छोड़ देंगे "।
"राधिका बहन समय एक सा नहीं जाता यही क्या कम है कि हमारे सिर पर यह टीन की छत है भला हो उन दान-दाताओं का जिनके कारण हम जैसे अशक्तों को दो वक्त की रोटी सम्मान से मिल जाती है वरना "कह अधूरी बात छोड़ शून्य में ताकते हुए बोली ,
"तुम अभी नई आई हो और गरीबी की कटु सच्चाई को भी नहीं देखा है। वे उसके आगे प्रतिउत्तर में कुछ ना बोल सकीं उनका गला भर आया फिर कुछ समय बाद संयत हो बोली, "हां शारदा बहन जब हमें हमारे अपने इस हाल में छोड़ कर चले गये , जिनके लिए पूरा जीवन होम कर दिया तब गैरों से कैसी अपेक्षा "??
बेटा !! मैं चाहती हूं इस बार तुम केवल अपने पुरोहित जी को बुलाकर श्राद्ध पूजन , पिंडदान विधि-विधान से कर शेष संकल्पित राशि के पैसे से अनाथालय में चार पंखे लगवा दो। मैं राधिका जी के पास भी नहीं जा सकी हो सकता है मुझे देखकर वह संकुचित हो नजरें भी ना मिला पाती क्योंकि आज वह जिस स्थिति में है कल उसी स्थिति में मैं थी।
बेटा यही तुम्हारे पिता का परम श्राद्ध होगा और साहूकार जी के सत्कर्मों का फल उनकी पत्नी को मिल जाएगा साथ ही दूसरे जीवित पितरों के प्रति सच्ची श्रद्धा का श्राद्ध होगा उनकी सुखभरी नीद ,चैन तुम्हारा आशीष होगा।
माँ मैं आपके बताये श्राद्ध का अर्थ सही मायने में समझ गया जो श्राद्ध से बढ़कर परमश्राद्ध होगा। आज राघवेन्द्र मां के इन नये, दार्शनिक विचारों को सुन अभिभूत था।
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी