एक रात को मेरे हाथ में,
आया एक मोबाइल बड़ा अजीब।
स्क्रीन चमके, बिना छुए,
जैसे छिपा हो कोई रहस्य करीब।
मैसेज आए, बिना भेजे,
नंबर थे सब अनदेखे अनजाने।
कॉल उठाऊं तो सुनाई दे,
सिर्फ सिसकियों के अफ़साने।
कैमरा खोलते परछाईं,
जिसका न कोई अता-पता रहा।
गैलरी में तस्वीरें ऐसी,
जिनमें हो मेरा ही चेहरा डरा।
रात बजे अलार्म खुद-ब-खुद,
गाने गूंजे, पर बोल न समझ आएं।
फोनबैटरी हुयी खत्म ,
लेकिन ठंडे पसीने फिर जरूर आएं।
सहमा मैंने, फेंका उसे,
पर फोन फिर से टेबल पर था।
एक संदेश चमका स्क्रीन ,
"भाग,अब तू ये मोबाइल मेरा है!"
डर से कांपा, पूछूं किससे,
क्या ये सपना है, या फिर कोई राज़?
फिर फोन ने खुद ही कहा,
"मैं हूं वो, जिसे तूने त्यागा था आज।"
पुराना फोन, यादें भूली ,
रिश्ते अधूरे, बातें छूटी तुमसे करने।
अब लौटा हिसाब करने,
तेरी गलती का बदला कुछ यों भरने।
हर रात फोन चमकेगा,
तेरे पापों का हिसाब खुद करेगा।
तू चाह कर भी भाग न पाएगा,
ये भूतिया मोबाइल तुझे सताएगा।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी