ज्योतिर्मय निशा का पर्व पावन,
कार्तिक पूर्णिमा का दिव्य सावन।
गंगा की धारा में कर अद्भुत नर्तन,
धर्म और श्रद्धा का अनुपम अर्पन।
तारों से सजी ये रात्रि का उपहार,
चमकता चंद्रमा है शांत, मनुहार।
देवदीवाली का भी यह प्रिय दिन,
त्रिपुरासुर के संहार का यह रिन।
त्रिपुरारी ने किया अधर्म का नाश,
सृष्टि में फैले सत्व का बल प्रकाश।
इस दिन हुआ जग का मंगल कार्य,
गूंजे "हर हर महादेव" हे सिरोधार्य।
गंगा की लहरें करतीं तब स्वागत,
गुरू प्रकाशोत्सव का हो आगत।
दीपदान से होता आत्म प्रकाशन,
हर जन मन पाता शांति, पुरातन।
व्रत, दान, स्नान का होता महत्व
संकट मिटें, जीवन हो कृतकृत्य
धर्म की जय हो, अधर्म का अंत,
यही संदेश देते सिखों के ये संत।
अमृत की बूंदों से सिंचित यह रात,
हर प्राणी में भरती है नव प्रभात।
आओ, मनाएं यह पावन त्यौहार,
त्रिपुरी पूर्णिमा का जय-जयकार।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी