80 के दशक में मायके गयी पत्नी अपने पति को खत तो लिखती पर किससे लेटर बाक्स में डालने को कहे इसी संकोच में तकिया के नीचे दबा दी दूसरे दिन उसके पति मायके आ गये और पत्र पढकर बहकने लगे।
तुम्हें लिखते हुए यूं महसूस होता है,
जैसे दिली गहराई में सिन्धु बहता है।
हर अक्षर में छुपा एक मृदु अहसास,
तुमसे जुड़े , दिल के मधुर चन्द्रहास।
स्याही से नहीं,दिल से ये लिखती हूं,
हर शब्द में बस तुम्हें ही मैं बुनती हूं।
जैसे कागज़ पर उकेरी हों ये धड़कनें,
तुमसे मिलने की तड़प की कसकने।
तेरी हंसी का जिक्र,तेरी बात का नशा,
तेरी मुस्कान में छुपी सुकून की दिशा।
हर लफ़्ज़ में तुमसे मिलने की है आस,
लव लेटर में बसते जज़्बाती एहसास।
तुम तक पहुंचे तो कहना फिर ज़रूर,
इन्हें पढ़के दिल बहके तो क्या कुसूर।
लव लेटर का ये जादू बड़ा होता गहरा,
जो दिलों को बांधे, बिना कहे लहरा।
कभी याद आए, इसे पढ़ जरूर लेना,
इसके हर हर्फ को प्यार से निभा देना।
कागज़ पर लिखी है दिल की दास्तान,
लव लेटर का जादू है, अनकहा मुकाम।
ये लव लेटर लिखा तकियातले रखे रहे,
कुछ ऐसे मन के भाव पहुंचते बिन कहे।
दूसरे ही दिन डोरबेल सरगमी बजी थी,
सामने देख पिया को अंखिया झुकी थी ं
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
"अनाम अपराजिता"
अहमदाबाद