विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे । इन्होंने 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं 40 संस्थान खोले । इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था । डॉ. विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता । यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया । लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया ।
आज विक्रम
साराभाई की जन्म-जयंती
है और भारत
को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के जन्मदिन (12 अगस्त)पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सादर याद किया है और समर्पित किया है । भारतीय स्पेस प्रोगाम की मदद
से आम लोगों की जिंदगी सुधारने का सपना देखने वाले साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को हुआ था । आज
विक्रम साराभाई, जिनका जन्म
12 अगस्त 1919
में अहमदाबाद में हुआ था । भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने
वाले वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की 100वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें और उनके कार्यों का याद कर रहा है । डॉ.साराभाई भारतीय अंतरिक्ष
कार्यक्रम के जनक के रूप में जाने जाते हैं । भारत ने आज तक अंतरिक्ष के क्षेत्र
में जो कुछ भी हासिल किया है उसके पीछे साराभाई का बेहद और खास योगदान है । डॉ. विक्रम
साराभाई की याद में अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ ने वर्ष 1974 में
अंतरिक्ष में 'सी ऑफ सेरनिटी' पर स्थित
बेसल नाम के मून क्रेटर को साराभाई क्रेटर नाम दिया था । इसरो ने भी चंद्रयान-2 के लैंडर का नाम विक्रम रखकर
उन्हें याद किया ।
उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे एक ऐसे उच्च कोटि के इन्सान थे, जिसके मन में दूसरों के प्रति
असाधारण सहानुभूति थी ।
वह एक ऐसे व्यक्ति थे कि जो भी उनके संपर्क में आता, उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था ।
आइये... आज उनकी जयंती पर उनके जीवन से जुड़ी हुई कुछ खास जानकारी प्राप्त करते है ---
अहमदाबाद के एक अग्रणी कपड़ा व्यापारी के घर 12 अगस्त, 1919 को एक बेटे का जन्म हुआ । इस बच्चे के कानों पर सबकी नजर गई जो महात्मा गांधी की तरह बड़े-बड़े थे । हालांकि, उस वक्त शायद ही किसी को पता हो कि यह बच्चा भी आगे चलकर अपनी महानता से इतना मशहूर हो जाएगा कि देश-दुनिया का, अंतरिक्ष तक में अपनी छाप छोड़ेगा । यह बच्चा था विक्रम साराभाई । भारत की बहुप्रतीक्षित चंद्रयान 2 मिशन चांद की ओर जैसे-जैसे बढ़ रहा है, भारतीय स्पेस प्रोग्राम की सफलता की वह कहानी आगे बढ़ती जा रही है जिसकी नींव आगे चलकर साराभाई ने ही रखी थी । उनके पिता अम्बालाल साराभाई एक समृद्ध उद्योगपति थे जिन्होंने गुजरात में कई मिल्स अपने नाम कर रखी थी । विक्रम साराभाई, अम्बालाल और सरला देवी की 8 संतानो में से एक थे । अपने 8 बच्चों को पढाने के लिए सरला देवी ने मोंटेसरी प्रथाओ के अनुसार एक प्राइवेट स्कूल की स्थापना की । जिसे मारिया मोंटेसरी ने प्रतिपादित किया था । विक्रम का जन्म सुख-सुविधाओं वाले घर में हुआ था । यहां तक कि उनकी पढ़ाई उनके परिवार द्वारा बनाए गए एक ऐसे प्रयोगात्मक स्कूल में हुई जिसमें विज्ञान की ओर उनकी जिज्ञासा और जानकारी को धार देने के लिए एक वर्कशॉप भी मौजूद थी । साराभाई 18 साल की उम्र में पारिवारिक मित्र रबींद्रनाथ टैगोर की सिफारिश पर कैंब्रिज पहुंच गए । हालांकि, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर वह बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सीवी रामन के तत्वाधान में रीसर्च करने पहुंचे । साराभाई का परीवार भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल होने के कारण बहुत से स्वतंत्रता सेनानी जैसे महात्मा गांधी, रबीन्द्रनाथ टैगोर, मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू अक्सर साराभाई के घर आते-जाते रहते थे । इन सभी सेनानियो का उस समय युवा विक्रम साराभाई के जीवन पर काफी प्रभाव पडा और उन्होंने साराभाई के व्यक्तिगत जीवन के विकास में काफी सहायता भी की । इंटरमीडिएट विज्ञान परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, वे इंग्लैंड चले गए और वहा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सेन्ट जॉन महाविद्यालय, कैंब्रिज से शिक्षा ग्रहण की । साराभाई को 1940 में प्राकृतिक विज्ञान (कैंब्रिज में) में उनके योगदान के लिए ट्रिपोस भी दिया गया । बाद में दुसरे विश्व युद्ध की वृद्धि के कारण, साराभाई भारत वापिस आ गए और भारतीय विज्ञान संस्था, बैंगलोर में शामिल हो गए और सर सी.व्ही. रमन (नोबेल खिताब विजेता) के मार्गदर्शन में अंतरिक्ष किरणों पर खोज करना शुरू किया । युद्ध समाप्त होने के उपरांत वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी लौट आये और अंतरिक्ष किरणों पर उनके थीसिस उष्णकटिबंधीय अक्षांश और खोज के कारण उन्हें 1947 में पीएचडी की उपाधि दी गयी ।
विवाह और संतान – सितम्बर 1942 को विक्रम साराभाई का विवाह प्रसिद्ध क्लासिकल डांसर मृणालिनी साराभाई से हुआ । उनका वैवाहिक समारोह चेन्नई में आयोजित किया गया था जिसमे विक्रम के परीवार से कोई उपस्थित नही था । क्योकि उस समय महात्मा गांधी का भारत छोडो आंदोलन चरम पर था । जिसमे विक्रम का परीवार भी शामिल था । विक्रम और मृणालिनी को दो बच्चे हुए- कार्तिकेय साराभाई और मल्लिका साराभाई । मल्लिका साराभाई अपने आप में ही एक प्रसिद्ध डांसर है जिन्हें पालमे डी’ओरे पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला – इंग्लैंड जाके के बाद सन् 1947 में विक्रम फिर स्वतंत्र भारत में लौट आये । और अपने देश की जरुरतो को देखने लगे, उन्होंने अपने परीवार द्वारा स्थापित समाजसेवी संस्थाओ को भी चलाना शुरू किया । अहमदाबाद के ही नजदीक अपनी एक अनुसन्धान संस्था का निर्माण किया । 11 नवंबर 1947 को उन्होंने भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला की स्थापना की । उस समय वे केवल 28 साल के थे । वे अपनी अनुसन्धान प्रयोगशाला के कर्ता-धर्ता थे ।
विक्रम साराभाई की मृत्यु – उनकी मृत्यु 30 दिसंबर 1971 को केरला के थिरुअनंतपुरम के कोवलम में हुआ था । वे थुम्बा रेलवे स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिये थिरुअनंतपुरम गये थे । उनके अंतिम दिनों में, वे काफी मुश्किलो में थे । अंतिम दिनों में ज्यादा यात्राये और काम के बोझ की वजह से उनकी सेहत थोड़ी ख़राब हो गयी थी और इसी वजह को उनकी मृत्यु का कारण भी बताया जाता है ।
एक नजर में विक्रम साराभाई की जीवनी / इतिहास :
1. जिस समय भारत को आज़ादी प्राप्त हुई थी उसी समय साराभाई भारत वापिस आये थे । उन्होंने भारत में वैज्ञानिक सुविधाओ को विकसित करने की जरुरत समझी । इसे देखते हुए उन्होंने उनके परीवार द्वारा स्थापित कई समाजसेवी संस्थाओ को सहायता की, और अहमदाबाद मे 1947 में भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला की स्थापना की ।
2. विक्रम साराभाई, एक वायुमंडलीय वैज्ञानिक थे । साथ ही वे भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला के संस्थापक भी थे, जिनके मार्गदर्शन में उनकी प्रयोगशाला में अंतरिक्ष किरणों से सम्बंधित कई प्रयोग किये गये और उन्ही के मार्गदर्शन में उनकी संस्थाओ ने कई सफल प्रयोग किए जैसे की अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष किरणे... ।
3. साराभाई IIM, अहमदाबाद (इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट) के संस्थापक अध्यक्ष थे । जो देश का दूसरा IIM था । अपने दूसरे व्यापारी कस्तूरभाई लालभाई के साथ मिलकर उन्होंने 1961 में शिक्षा के क्षेत्र में विकास के कई काम किये ।
4. 1962 में अहमदाबाद में प्राकृतिक योजना एवं तंत्रज्ञान विश्वविद्यालय (CEPT University) को स्थापित करने में उनका अतुल्य योगदान रहा है । जो शिल्पकला, योजना और तंत्रज्ञान में अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट के कई प्रोग्राम उपलब्ध करवाती थी ।
5. 1965 में उन्होने नेहरू विकास संस्था (NFD) की स्थापना की । जिसका मुख्य केंद्र बिंदु देश में शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र का विकास करना था ।
6. 1960 की कालावधि में उन्होंने विक्रम ए. साराभाई कम्युनिटी साइंस सेन्टर (VASCSC) की स्थापना की ताकि वे विज्ञान और गणित के प्रति लोगो की रूचि बढ़ा सके, और विद्यार्थियो को इसका ज्ञान दे सके । इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश में विज्ञान के प्रति लोगो की रूचि को बढाना था ।
7. अपने उपक्रम में साराभाई ने डॉ. होमी भाभा को पूरी सहायता की थी । जो न्यूक्लिअर अनुसन्धान करने वाले पहले भारतीय थे । भाभा ने भी साराभाई को पहले राकेट लॉन्चिंग स्टेशन, थुम्बा की निर्मिति में सहायता की थी । जिसका उदघाटन 21 नवंबर 1963 को किया गया था ।
8. भारत में उनका सबसे बडा और महत्वपूर्ण योगदान 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था (ISRO) की स्थापना में रहा है । इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश में तंत्रज्ञान के उपयोग को बढाना और देश की सेवा करना ही था ।
नजदीकी
जिंदगियों ने सिखाया : भले ही
साराभाई का परिवार संपन्न था, माना जाता है कि अपने नजदीकियों की
जिंदगी से सीखकर ही उन्होंने विज्ञान, खासकर स्पेस प्रोग्राम
का इस्तेमाल भारत के गरीब लोगों की मदद के लिए करने का निश्चय किया ।
विक्रम ने बचपन में अपनी एक रिश्तेदार से कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों
के संघर्षों की कहानियां सुनीं । आजादी
के आंदोलन के वक्त उनकी मां और बहन को जेल जाना पड़ा । उनकी
छोटी बहन गीता की हालत यह सब देखकर काफी खराब हो गई । कुछ
साल बाद उनके भाई की भी अचानक बीमारी से मौत हो गई । इन सब
अनुभवों से उनके अंदर सामाजित चेतना जागी जिसने उन्हें बेहतर टेक्नॉलजी का इस्तेमाल
कर लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने का निश्चय किया । साराभाई
ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेंजमेंट, अहमदाबाद,
दर्पण अकैडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, नैशनल
इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, कई सफल व्यापारों की नींव रखी । वह
मैसचूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में विजिटिंग प्रफेसर रहे और होमी भाभा के
निधन के बाद कुछ वक्त तक अटॉमिक एनर्जी कमीशन को भी संभाला ।
नए नजरिये पर जोर : विक्रम हमेशा एक वैज्ञानिक के तौर पर सोचते थे । उनका कहना था कि जिस शख्स ने विज्ञान के तरीकों को खुद में उतार लिया है, वह किसी स्थिति को एक नए नजरिये से देखता है । शायद यही कारण था कि विक्रम के काम करने के तरीके में इनोवेशन, इंटरप्राइज और इंप्रवाइजेशन सबसे अहम था । यहां तक कि उन्होंने स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत तिरुवनंतपुरम के एक गांव थुंबा से की जहां न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर था और न ही वहां बने ऑफिस में छत । ऐसे में भी युवा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम टेक्नॉलजी, प्रॉपलेंट्स, नोज कोन्स और पेलोड जैसी चीजें बनाते थे ।
डॉ. साराभाई के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उल्लेखनीय पहलू उनकी रुचि की सीमा और विस्तार तथा ऐसे तौर-तरीके थे, जिनके बल पर वे अपने विचारों को संस्थाओं में परिवर्तित करने में कामयाब हुए | उन्हें सृजनशील वैज्ञानिक के अतिरिक्त यदि सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्च कोटि का प्रवर्तक, महान संस्था निर्माता, शिक्षाविद, कला मर्मज्ञ, अग्रणी प्रबंध आचार्य जैसे विशेषणों से सुशोभित किया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | वे आज सशरीर हमारे बीच भले ही न हों, परंतु वस्त्र उद्योग, औषधि निर्माण, परमाणु ऊर्जा, भौतिक विज्ञान इत्यादि के क्षेत्र में उनके योगदान को भारत कभी नहीं भुला सकता | डॉ. साराभाई का जीवन विश्व भर के युवा-वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का अनमोल स्रोत है |