आज गूगल सर्च इंजिन के मुख-पृष्ठ पर प्रसिद्ध गायिका ‘ बेगम अख्तर ’, जिनका आज 7 अक्टूबर को जन्म दिवस है, को “डूडल” के रुप मे प्रदर्शित करते हुए सम्मान प्रदर्शित किया गया है । आइए... इस अवसर पर उनके बारे में कुछ जानकारी हासिल करते है ।
अख्तर बाई फैजाबाद, जिसे बेगम अख्तर के नाम से भी जाना जाता है, गजल,
दादरा और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ठुमरी शैलियों के एक
प्रसिद्ध भारतीय गायक थे । उन्होंने मुखर संगीत के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
प्राप्त किया, और उन्हें सरकार द्वारा पद्म श्री और वर्ष 1975
में पद्म भूषण से मरणोपरांत सम्मानित किया गया और उन्हें “ मल्लिका-ए-गझल ” का खिताब दिया गया था । 2014 की फिल्म
‘डेढ़ इश्किया’ में विशाल भारद्वाज ने बेगम
अख्तर की प्रसिद्ध ठुमरी “हमरी अटरिया पे ....” का आधुनिक रीमिक्स रेखा भारद्वाज
की आवाज में प्रस्तुत किया गया ।
बेग़म अख्तर का जीवन परिचय : बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को बदा दरवाजा, टाउन भद्रसा, भरतकुंड,
फैजाबाद जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था । उनके
पिता, असगर हुसैन, एक युवा वकील जो
अपनी मां मुशररी के साथ प्यार में पड़ गए थे और अपनी दूसरी पत्नी बना चुके थे,
बाद में उन्हें और उनकी जुड़वां बेटियां जोहरा और बिब्बी का त्याग
कर दिया । बेग़म अख्तर गजल, ठुमरी और दादरा गायन शैली की बेहद लोकप्रिय गायिका
थीं । उन्होंने ‘वो जो हममें तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम
पे रोना आया’, ‘मेरे हमनफस, मेरे हमनवा,
मुझे दोस्त बन के दवा न दे’, जैसी कई दिल को
छू लेने वाली गजलें गायी हैं । बेगम अख्तर ने बतौर अभिनेत्री
भी कुछ फिल्मों में काम किया था । उन्होंने ‘एक दिन का बादशाह’ से फिल्मों
में अपने अभिनय करियर की शुरूआत की लेकिन तब अभिनेत्री के रुप में कुछ खास पहचान
नहीं बना पाई ।
बाद में उन्होंने महबूब
खान और सत्यजीत रे जैसे फिल्कारों की फिल्म में भी अभिनय किया लेकिन गायन का
सिलसिला भी साथ-साथ चलता रहा । 1940
और 50 के दशक में गायन में उनकी लोकप्रियता
चरम पर थी । तभी उन्होंने इश्तिआक अहमद अब्बासी जे पेशे से वकील थे, से निकाह कर लिया । इसके बाद वह करीब 5 साल तक संगीत
की दुनिया से दूर रही. इसके बाद वह बीमार रहने लगी तो डाक्टरों ने बताया कि उनकी
बीमारी की एक ही वजह है कि वो अपने पहले प्यार, यानी कि
गायकी से दूर हैं । उनके शौहर की शह पर 1949 में वो एक बार
फिर अपने पहले प्यार की तरफ़ लौट पड़ीं और ऑल इंडिया रेडियो की लखनऊ शाखा से जुड़
गयीं और मरते दम तक जुड़ी रहीं ।
बेगम अख़्तर ने 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘दानापानी’ के गीत ‘ऐ इश्क मुझे
और कुछ याद नही’ और 1954 में प्रदर्शित
फ़िल्म ‘एहसान’ के गीत ‘हमें दिल में बसा भी लो’ गाकर श्रोताओं को
मंत्रमुग्ध किया । वर्ष 1958 में सत्यजीत
राय द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘जलसा
घर’ बेगम अख़्तर के सिने कैरियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई ।
इस फ़िल्म में उन्होंने एक गायिका की भूमिका निभाकर उसे जीवंत कर दिया था । इस
दौरान वह रंगमंच से भी जुड़ी
रही और अभिनय करती रही ।
अपनी जादुई आवाज से श्रोताओं को मदमग्न करने वाली यह महान् गायिका का देहांत 50 वर्ष की उम्र में 30 अक्तूबर 1974 को हो गया था । बेगम अख़्तर की तमन्ना आखिरी समय तक गाते रहने की थी जो पूरी भी हुई । मृत्यु से आठ दिन पहले उन्होंने मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की यह ग़ज़ल रिकार्ड की थी ।