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अध्याय 16: नये- नये परिचय

25 अगस्त 2023

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' यमुना' कार्यालय में जो साहित्यिक बैठकें हुआ करती थीं, उन्हीं में उसका उस युग के अनेक साहित्यिकों से परिचय हुआ उनमें एक थे हेमेन्द्रकुमार राय वे यमुना के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल की सहायता करते थे। एक दिन संध्याके समय जब वह रचनाओं का निर्वाचन कर रहे थे, तो शरत्चन्द्र ने वहां प्रवेश किया। पहले कोई प्रत्यक्ष परिचय नहीं था। हेमेन्द्र ने दृष्टि उठाकर देखा । नितान्त साधारण चेहरे, साधारण दुबली-पतली रुग्ण देह और काले रंग का एक व्यक्ति चट्टी पहने और एक बदसूरत देसी कुत्ते के बच्चे को साथ लिए उसके सामने खड़ा है। सिर पर बड़े हुए सूखे बाल हैं। दाढ़ी छोटी और पतली है। कपड़े अधमैले हैं। उपेक्षा से उसने पूछा, "किसे चाहते हो?"

"फणि बाबू को।"

"वह अभी नहीं आए।

"तब मैं कुछ देर बैठ सकता हूं?"

हेमेन्द्र ने सोचा कोई दफ्तरी है, कुर्सी तो साहित्यकार के लिए है। इसलिए बिना कुछ कहे उन्होंने एक बेंच की ओर इशारा कर दिया। फिर अपना काम करने लगे। काफी देर हो गई! शरत् कुत्ते के बच्चे के साथ खेलता रहा। एक बार वह कुत्ता हेमेन्द्र बाबू के पास जा पहुंचा और उनकी धोती पकड़ने लगा। वह विरक्त हो उठे। बोले, "छी-छी, कार्यालय में यह देसी कुत्ता...."

तभी सहसा फणि बाबू ने वहां प्रवेश किया और शरत् को देखकर व्यस्त हो उठे। बोले, यह क्या शरत् बाबू? वहां बेंच पर क्यों बैठे हैं?"

शरत् ने उंगली से हेमेन्द्र की ओर इशार किया और मन्द मन्द मुस्कराते हुए कहा, "उन्होंने मुझे यहीं बैठने का हुक्म दिया है।"

फणि बाबू बोले, "नाना, यहां कुर्सी पर बैठिए यह क्या हेमेन्द्र बाबू, आप शरत् बाबू को पहचान नहीं सके?"

हेमेन्द्र ने अप्रतिभ होकर कहा, "क्षमा कीजिए, कैसे पहचानूंगा? मैंने तो इन्हें कभी देखा ही नहीं सोचा था कोई दफ्तरी होगा।"

यह सुनकर शरत् खिलखिलाकर हंस पड़ा। लेकिन इसके बाद उन दोनों में गहरी मैत्री हो गई। साहित्यिक बैठकों में दोनों साथ-साथ आते-जाते थे। शरत् कहानियां कहते-कहते एक दो बार अफीम की बड़ी सी गोली मुंह में डाल लेता था। भयातुर होकर एक दिन हेमेन्द्र ने कहा, "यह क्या करते हैं आप?"

शरत् ने उत्तर दिया, "अफीम खाता हूं। यदि तुम भी सुन्दर लिखना चाहते हो तो मेरी तरह अफीम खाओ।"

हेमेन्द्र ने कहा, "माफ कीजिए महाशय । इस तरह की यदि एक भी गोली खा लूंगा तो फिर सुन्दर लिखने का समय ही नहीं मिलेगा। खबर पाकर यमदूत दौड़े आयेंगे।"

लेकिन शरत् को इस बात की चिन्ता नहीं थी । कभी-कभी वह दस-बारह घण्टे तक बिना थके कहानी कहता रहता था। रात को दो-तीन बजे घर लौटता था। वह एक बदनाम गली में रहता था। अक्सर हेमेन्द्र उसके साथ आते। उस समय रास्ता चलते-चलते शरत् अपने जीवन की विचित्र कहानी सुनाता रहता । हेमेन्द अचरज से उसकी ओर देखते और सोचते कि कितना सरलप्राण है यह व्यक्ति, कुछ भी तो नहीं छिपाता । शरत् ने कहा, "हेमेन्द्र, ऐसा कोई नशा नहीं जो मैंने नहीं किया हो। ऐसी कोई बुरी जगह नहीं जहां मैं न गया हूं। आज यही सब सोचकर कभी-कभी अवाक् हो जाता हूं कि इतना करने पर भी मैंने अपने से हार नहीं मानी। मेरे मन के भीतर का मनुष्य हमेशा ही निर्मुक्त रहा।"

लेकिन साधारण मनुष्य क्या इतने गहरे पैठकर किसी के अन्तर में झांक पाता है? रंगून की तरह कलकत्ता में भी उसके चारों ओर अपवादों का जाल उठता चला गया। लोगों ने उसे चरित्रहीन, वेश्यागामी और शराबी सभी कुछ कहा। एक रात को क्या हुआ, वर्षा के कारण कलकत्ता के सारे रास्ते नदी की तरह जल से भर गए। उस दिन बैठक न हो सकी। नौ बजते-बजते सारे रास्ते जनहीन हो गए। शरत् और हेमेन्द्र जब घर लौटे तो सड़क पर धुटने-धुटने तक जल था। संयोग की बात कि एक स्त्री उनके आगे-आगे जा रही थी। शर धीरे-धीरे चल रहा था। जल में ज़ोर से चला ही नहीं जा सकता। इन लोगों ने उस स्त्री की ओर देखा तक नही, फिर भी दूसरे दिन दफ्तर में पहुंचते ही पता लगा कि सब जगह यह अफवाह फैली हुई है कि कल रात शरत् और हेमेन्द्र एक वेश्या के पीछे धूम रहे थे।

हेमेन्द्र ने सुना तो बात को हंसी में उड़ा दिया, लेकिन शरत् अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा। बोला, "छि:- छि:, ऐसे हतभागे व्यक्ति भी हैं। हमारे नाम के साथ बेकार इतना बड़ा अपवाद लगा दिया। मैं बूढ़ा मनुष्य और हेमेन्द्र अभी बच्चा, कुछ तो सोचना था।"

उस समय उसके मुख की भावभंगी देखकर ऐसा लगता था कि अगर अपवाद फैलानेवाला व्यक्ति सामने होता तो उसका अंग-भंग हो जाने की काफी संभावना थी। जो व्यक्ति वेश्यालयों में जाकर रहता हो वह इस अपवाद से इतना परेशान हो, क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? इस घटना के वर्णन में अतिरंजना हो सकती है पर यह भी सच है कि अनजाने ही सदाचारी बनने की कामना धीरे-धीरे उसके वैरागी मन को घेरती आ रही थी । वह दुस्साहसी था, विद्रोही नहीं । इसीलिए यह विरोधाभास है।

दूसरे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति जिनसे उसका परिचय हुआ वह थे 'भारतवर्ष' के सम्पादक स्वनामधन्य रायबहादुर जलधर सेन । वह सवयं ही एक मित्र के साथ उससे मिलने 'यमुना' के कार्यालय में आए। फणीन्द्र ने शरत् से उनका परिचय कराने की दृष्टि से कुछ कहना चाहा ही था कि वह बोल उठा, "दादा के साथ मेरा परिचय बहुत पुराना है।"

जलधर सेन चकित होकर बोले, "मुझे तो कुछ याद नहीं आता।"

शरत् ने कहा, "आपको यह तो याद होगा कि कई वर्ष पहले आप 'कुन्तलीन पुरस्कार प्रतियोगिता' के निर्णायक थे और उसमें 'मन्दिर नाम की एक गल्प ने प्रथम पारितोषिक पाया था।"

जलधर सेन बोले, "हां हां, था। उसमें लगभग 150 कहानियां आई थीं। 'मन्दिर' उसमें मुझे सबसे अच्छी लगी थी। मैंने उस पर लिखा था, यदि यह लेखक लिखता रहे तो भविष्य में यशस्वी होगा, लेकिन उस गल्प के लेखक तो भागलपुर के श्रीमान सुरेन्द्रनाथ गंगोपाध्याय थे।"

हंसकर शरत् ने कहा, "वह कहानी मैंने ही लिखी थी। लेकिन अपना नाम देने में संकोच हुआ। इसलिए मामा सुरेन्द्रनाथ का नाम दिया था। इसलिए आपके साथ मेरा परिचय पुराना हुआ न?"

जलधर सेन बोले, "यह मेरे लिए कम गौरव की बात नहीं है। मैंने तभी रत्न को पहचान लिया था। "

और यह भेंट शीघ्र ही प्रगाढ़ स्नेह में बदल गई। शरत् के साहित्य-सृजन का सबसे अधिक श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को मिल सकता है तो वह यही जलधर सेन थे। बहुत दिन बाद स्वयं शरत् ने स्वीकार किया - "दादा, यदि मेरी रचनाओं के लिए इतनी मारामारी न करते, गुरु की भांति तकाज़े पर तकाज़े न करते तो मेरे जैसे आलसी की आधी तो क्या चौथाई रचनाएं भी प्रकाशित न हो पातीं।"

इसी समय वह रवीन्द्रनाथ से भी मिला। वह उनका परम भक्त था और रवीन्द्रनाथ भी शरत् की प्रतिभा से परिचित हो चुके थे। अभी-अभी उन्होंने उसकी नयी कृति 'पण्डित मोशाय' पढ़ी थी। ± असित कुमार हाल्दार ने लिखा है, "मुझे याद हैं, 'पण्डित मोशाय' पढ़ने के बाद उन्होंने मुझसे कहा था, मैंने काफी दिनों से इधर-उधर की चीजें पढ़ना छोड़ दिया है, किन्तु इस पुस्तक की लेखनी मुझे मरुभूमि में शाद्वल के समान नज़र आती है।"

बाद में उन्होंने स्वयं ही शरत् से मिलने की इच्छा प्रकट की और कलकत्ता वापस लौटने पर एक दिन जब हम लोगों ने उनके सामने सलज्ज शरत्चन्द्र को उपस्थित किया तो एक अजीब ही दृश्य उपस्थित हो गया था । "

कोई नहीं जानता कि उस प्रथम भेंट में गुरु-शिष्य में क्या बातचीत हुई। कविगुरु के गरिमामय रूप, गौर वर्ण, लम्बी दाढ़ी, ढीले-ढाले वस्त्र और रुपहली वाणी के कारण उसने उन्हें निश्चय ही किसी और लोक का प्राणी समझा होगा। उनके इस रूप को लेकर वह जीवन-भर विस्मित रहा।

उसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी । इसलिए उसने अपनी तीन कहानियां 'रामेर सुमति', 'पथ निर्देश' और सिन्दूर छेले तथा उपन्यास 'विराजबहू' के प्रकाशन का सर्वाधिकार हरिदास चट्टोपाध्याय को बेच दिया था। इन दोनों पुस्तकों के लिए उसे कुल 300 रुपये मिले। लेकिन तत्कालीन दृष्टि से यह सौदा कोई बहुत बुरा नहीं था।

इसी समय फणीन्द्रनाथ के माध्यम से उसने अपनी 'परिणीता', पण्डितजी', चन्द्रनाथ', 'काशीनाथ', 'नारी का मूल्य' और 'चरित्रहीन' के प्रकाशन का अधिकार एम०सी० सरकार एण्ड संस को दे दिया। यह अधिकार केवल एक ही संस्करण के लिए था।

फणीन्द्रनाथ शरत् की रचनाएं स्वयं प्रकाशित करना चाहते थे, पर वे इस स्थिति में नहीं थे और शरत् को रुपयों की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने सुधीरचन्द्र सरकार से आग्रह किया। सरकार ने शरत् की 200 रुपये अग्रिम दिए। इस आग्रह के पीछे फणीन्द्रनाथ का उद्देश्य यही था कि शरत् किसी भी प्रकार यमुना' से अलग न हो जाए।

इन रचनाओं में से बिन्दो का लल्ला' और अन्य कहानियां 'परिणीता' और 'पण्डितजी' ±का प्रकाशन शरत् के कलकत्ता- प्रवास के दौरान हुआ । 'विराजबहू' का प्रकाशन यहां आने से पूर्व हो चुका था। 'निष्कृति' 'अन्धेरा और प्रकाश', 'मंझली दीदी', 'दर्पचूर्ण' आदि इन नई-पुरानी रचनाओं का प्रकाशन काल भी यही है ।

'यमुना' शरत् को पैसे नहीं दे सकती थी, वे मिल सकते थे 'भारतवर्ष से। इसके अतिरिक्त वहां उसके परम मित्र प्रमथनाथ भट्ट थे। नये संपादक जलधर सेन भी उसे बहुत प्यार करते थे। 'भारतवर्ष' का पूरा दल ही उसका प्रशंसक था। फणीन्द्रनाथ सब कुछ समझते थे और डरते भी थे इसीलिए तो उन्होंने शरत् को यमुना' के संपादक के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था। उसमें बाकायदा यह विज्ञप्ति प्रकाशित हुई थी

'यमुना' के पाठक यह सुनकर खुश होंगे कि सुप्रसिद्ध औपन्यासिक और गल्प लेखक श्री शरच्चन्द्र चट्टोपाध्याय महोदय वर्तमान मास से 'यमुना' के सम्पादन में योग देंगे। 'यमुना' के पाठक शरत् बाबू से यथेष्ट परिचित हैं। इसलिए परिचित का फिर से परिचय देना अनावश्यक है।"

लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। उन और प्रयत्नों का भी कोई लाभ नहीं हुआ जो फणीन्द्र ने उसे रोक रखने के लिए किए। बड़े चाव से शरत् के मना करने पर भी उन्होंने 'बड़ी दीदी' पुस्तक के रूप में प्रकाशित की थी । तब शरत् ने लिखा था, 8 "तुम्हारी भेजी 'बड़ी दीदी' मिली। बुरी नहीं है। फिर भी यह बचपन की रचना है, न छापते तो अच्छा होता।

इस रूप में आने वाली यह उसकी पथम रचना थी, लेकिन जैसा चाहते थे, वैसी बिक्री उसकी नहीं हो सकी। आठ आने मूल्य रखकर वर्ष में चार सौ प्रतियां भी नहीं बेच पाए । घर-घर जाते थे, परन्तु शायद उस समय के पाठकों की दृष्टि में वह पुस्तक 'चरित्रहीन' के समान अश्लील मान ली गई थी।

इधर यह स्थिति थी, उधर शरत् के उन मित्रों ने, जो सदा इस बात का प्रयत्न करते रहते थे कि 'यमुना' से उसके संबंध टूट जाएं, उसको बताया कि फणीन्द्र उस पुस्तक से काफी पैसा कमा रहे हैं। शरत् ने इस बात पर विश्वास कर लिया। इस विश्वास का एक कारण था। गुरुदास की दुकान से उसकी दूसरी पुस्तकों की अच्छी बिक्री हो रही थी । एक दिन वह 'यमुना' के कार्यालय में पहुंचा तो फणीन्द्रनाथ वहां पर नहीं थे। उनके एक संबंधी बैठे हुए थे। शरत् ने उनसे कहा, ""बड़ी दीदी' की सब प्रतियां मुझे दे दो। वे मेरी हैं।"

संबंधी ने उत्तर दिया, "पुस्तकें अलमारी में बन्द हैं। चाबी मेरे पास नहीं है। वे आयेंगे तब उनसे कहकर आप पुस्तकें ले जा सकते हैं।"

शरत् बहुत उद्विग्न था। कहा, "मैं और राह नहीं देख सकता । चाबी नहीं है तो मैं कील से ताला खोलकर ले जाऊंगा।"

और उसने कील से अलमारी का ताला खोल डाला। फिर सब प्रतियां कुली के सिर पर रखवाकर ले गया। फणीन्द्रनाथ ने लौटकर जब यह समाचार सुना तो वह बहुत दुखी हुए। उन्होंने उसी संध्या को सौरीन्द्रमोहन से इस घटना की चर्चा की। वे भी बहुत परेशान हुए। उन्होंने शरत् को बुलाकर कहा, "जानते हो, जो कुछ तुमने किया है वह अपराध है, चोरी है। पुस्तक फणीन्द्रनाथ ने अपने खर्चे से छापी है। वह उसकी सम्पत्ति है। अगर वह कचहरी में जाए तो तुम्हें हवालात में बन्द कर दिया जाएगा। तुमने फणि से कहा क्यों नहीं? चाहने पर वह तुम्हें रुपया दे सकता था। इस बात के लिए वह हमेशा तैयार था। तुम तो उसके घर के व्यक्ति की तरह थे। तुम्हारे लिए उसने क्या नहीं किया?"

इस प्रकार समझाने पर शरत् ने अनुभव किया कि वह सचमुच गलती कर बैठा है। वह बहुत लज्जित हुआ, लेकिन इसके बाद भी 'यमुना' से उसके संबंध नहीं बन सके। वह अब केवल 'भारतवर्ष' के लिए ही लिखने लगा।

क्या सचमुच ऐसा हुआ था? क्या उसके जीवन के साथ जुड़े अनेक प्रवादों की तरह यह घटना भी एक प्रवाद ही नहीं है? फणीन्द्रनाथ से उसने एक पैसा नहीं लिया और उसकी रचनाओं के कारण 'यमुना' की ग्राहक संख्या 200 से 2000 तक चली गई। जो गरीबों को देखकर पिघल उठता था, पैसे से जिसे कभी मोह नहीं रहा, वह इस प्रकार चोरी से पुस्तक उठा लायेगा, सदसा विश्वास नहीं होता । पैसे से उसे खरीदना सम्भव नहीं था। एक दिन उसने प्रमथ से स्पष्ट कहा था कि पूरा कलकत्ता भी उसे नहीं खरीद सकता, तुम्हारा परिवार तो छोटा-सा ही है।

शरत् को प्रकाश में लाने का सबसे अधिक श्रेय फणीन्द्रनाथ को है, यह बात निसन्देह सत्य है। बड़े गर्व के साथ एक दिन फणीन्द्रनाथ ने कहा था, "शरत् को पहचाना बहुतेरों ने पर स्वीकृति देने का साहस कोई नहीं कर सका। 'साहित्य' के सम्पादक समाजपति ने 'चरित्रहीन' की प्रशंसा की, पर उसे अपने पत्र में छापने का साहस नहीं कर सके। 'नारी का मूल्य' कोई भी नारी के नाम से छापने के लिए तैयार नहीं था। मैंने छापा । मुझे कितनी गालियां मिलीं, पर मैं डरा नहीं। "

तब क्या 'यमुना' से संबंध विच्छेद को लेकर केवल शरत् ही दोषी था? क्या केवल मित्र के प्रेम और पैसे से सुविधा के कारण ही वह 'भारतवर्ष' की ओर खिंचा? निःसन्देह ये प्रबल कारण थे। बर्मा से उसका मन ऊब गया था। बंगाल लौटने पर पैसे की आवश्यकता तो होनी ही थी उसके लिए शरत् को दोष नहीं दिया जा सकता, परंतु इन सब कारणों के अतिरिक्त एक और भी कारण था, और वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं था। फणीन्द्रनाथ का स्वभाव बहुत शंकाशील था। बार-बार विश्वास दिलाने पर भी उन्हें चिन्ता लगी रहती थी कि 'भारतवर्ष' के रहते वह उनके छोटे पत्र में नहीं लिख सकेगा । चिन्ता का होना स्वाभाविक था, पर वह सीमा का ...... अतिक्रमण कर गई थी। अगले वर्ष रंगून से लिखे एक पत्र में एक विच्छेद के बारे में शरत् ने जो कुछ कहा वह भी फणीन्द्रनाथ के पक्ष में नहीं है।

"अच्छा 'यमुना' आजकल कैसी चलती है? फणि ने पुस्तक छापी है। वह कहता है, "मैंने आपकी एक कहानी तीस-चालीस बार पढ़कर जबानी याद कर ली हैं। आपकी रचनाएं मेरा आदर्श हैं। इतनी गुरुभक्ति, पर एक प्रति पुस्तक नहीं भेजी ! मैंने उसकी सभी रचनाएं पढ़ी हैं और वे कैसी हैं, यह मुझसे अधिक कौन जानता है? नाना कारणों से मैंने उससे और कोई संबंध नहीं रखा।"

बहुत दिन बाद फणीन्द्रनाथ ने कहा था, "प्रत्येक मिलन का एक उद्देश्य होता है। शरत्- यमुना मिलन का उद्देश्य सिद्ध हो गया। अब यदि मथुरा के राज सिंहासन का आह्व पाकर उसने ब्रजधाम को छोड़ दिया तो मर्मान्तक वेदना पाकर भी ब्रजवासी अभियोग नही करेंगे।"

रूपक सही न हो, उद्देश्य की बात निश्चित रूप से सही है।

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रचनाएँ
आवारा मसीहा
5.0
मूल हिंदी में प्रकाशन के समय से 'आवारा मसीहा' तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा ' पाब्लो नेरुदा सम्मान' के अतिरिक्त बंग साहित्य सम्मेलन तथा कलकत्ता की शरत समिति द्वारा प्रदत्त 'शरत मेडल', उ. प्र. हिंदी संस्थान, महाराष्ट्र तथा हरियाणा की साहित्य अकादमियों और अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें हार्दिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। अंग्रेजी, बांग्ला, मलयालम, पंजाबी, सिन्धी , और उर्दू में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथा तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। शरतचंद्र भारत के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएं लांघकर सच्चे मायनों में अखिल भारतीय हो गया। उन्हें बंगाल में जितनी ख्याति और लोकप्रियता मिली, उतनी ही हिंदी में तथा गुजराती, मलयालम तथा अन्य भाषाओं में भी मिली। उनकी रचनाएं तथा रचनाओं के पात्र देश-भर की जनता के मानो जीवन के अंग बन गए। इन रचनाओं तथा पात्रों की विशिष्टता के कारण लेखक के अपने जीवन में भी पाठक की अपार रुचि उत्पन्न हुई परंतु अब तक कोई भी ऐसी सर्वांगसंपूर्ण कृति नहीं आई थी जो इस विषय पर सही और अधिकृत प्रकाश डाल सके। इस पुस्तक में शरत के जीवन से संबंधित अंतरंग और दुर्लभ चित्रों के सोलह पृष्ठ भी हैं जिनसे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। बांग्ला में यद्यपि शरत के जीवन पर, उसके विभिन्न पक्षों पर बीसियों छोटी-बड़ी कृतियां प्रकाशित हुईं, परंतु ऐसी समग्र रचना कोई भी प्रकाशित नहीं हुई थी। यह गौरव पहली बार हिंदी में लिखी इस कृति को प्राप्त हुआ है।
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भूमिका

21 अगस्त 2023
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संस्करण सन् 1999 की ‘आवारा मसीहा’ का प्रथम संस्करण मार्च 1974 में प्रकाशित हुआ था । पच्चीस वर्ष बीत गए हैं इस बात को । इन वर्षों में इसके अनेक संस्करण हो चुके हैं। जब पहला संस्करण हुआ तो मैं मन ही म

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भूमिका : पहले संस्करण की

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कभी सोचा भी न था एक दिन मुझे अपराजेय कथाशिल्पी शरत्चन्द्र की जीवनी लिखनी पड़ेगी। यह मेरा विषय नहीं था। लेकिन अचानक एक ऐसे क्षेत्र से यह प्रस्ताव मेरे पास आया कि स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ा। हिन्दी

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तीसरे संस्करण की भूमिका

21 अगस्त 2023
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लगभग साढ़े तीन वर्ष में 'आवारा मसीहा' के दो संस्करण समाप्त हो गए - यह तथ्य शरद बाबू के प्रति हिन्दी भाषाभाषी जनता की आस्था का ही परिचायक है, विशेष रूप से इसलिए कि आज के महंगाई के युग में पैंतालीस या,

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" प्रथम पर्व : दिशाहारा " अध्याय 1 : विदा का दर्द

21 अगस्त 2023
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किसी कारण स्कूल की आधी छुट्टी हो गई थी। घर लौटकर गांगुलियो के नवासे शरत् ने अपने मामा सुरेन्द्र से कहा, "चलो पुराने बाग में घूम आएं। " उस समय खूब गर्मी पड़ रही थी, फूल-फल का कहीं पता नहीं था। लेकिन घ

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अध्याय 2: भागलपुर में कठोर अनुशासन

21 अगस्त 2023
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भागलपुर आने पर शरत् को दुर्गाचरण एम० ई० स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती कर दिया गया। नाना स्कूल के मंत्री थे, इसलिए बालक की शिक्षा-दीक्षा कहां तक हुई है, इसकी किसी ने खोज-खबर नहीं ली। अब तक उसने

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अध्याय 3: राजू उर्फ इन्दरनाथ से परिचय

21 अगस्त 2023
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नाना के इस परिवार में शरत् के लिए अधिक दिन रहना सम्भव नहीं हो सका। उसके पिता न केवल स्वप्नदर्शी थे, बल्कि उनमें कई और दोष थे। वे हुक्का पीते थे, और बड़े होकर बच्चों के साथ बराबरी का व्यवहार करते थे।

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अध्याय 4: वंश का गौरव

22 अगस्त 2023
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मोतीलाल चट्टोपाध्याय चौबीस परगना जिले में कांचड़ापाड़ा के पास मामूदपुर के रहनेवाले थे। उनके पिता बैकुंठनाथ चट्टोपाध्याय सम्भ्रान्त राढ़ी ब्राह्मण परिवार के एक स्वाधीनचेता और निर्भीक व्यक्ति थे। और वह

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अध्याय 5: होनहार बिरवान .......

22 अगस्त 2023
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शरत् जब पांच वर्ष का हुआ तो उसे बाकायदा प्यारी (बन्दोपाध्याय) पण्डित की पाठशाला में भर्ती कर दिया गया, लेकिन वह शब्दश: शरारती था। प्रतिदिन कोई न कोई काण्ड करके ही लौटता। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उस

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अध्याय 6: रोबिनहुड

22 अगस्त 2023
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तीन वर्ष नाना के घर में भागलपुर रहने के बाद अब उसे फिर देवानन्दपुर लौटना पड़ा। बार-बार स्थान-परिवर्तन के कारण पढ़ने-लिखने में बड़ा व्याघात होता था। आवारगी भी बढ़ती थी, लेकिन अनुभव भी कम नहीं होते थे।

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अध्याय 7: अच्छे विद्यार्थी से कथा - विद्या - विशारद तक

22 अगस्त 2023
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शरत् जब भागलपुर लौटा तो उसके पुराने संगी-साथी प्रवेशिका परीक्षा पास कर चुके थे। 2 और उसके लिए स्कूल में प्रवेश पाना भी कठिन था। देवानन्दपुर के स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लाने के लिए उसके पास पैसे न

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अध्याय 8: एक प्रेमप्लावित आत्मा

22 अगस्त 2023
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इन दुस्साहसिक कार्यों और साहित्य-सृजन के बीच प्रवेशिका परीक्षा का परिणाम - कभी का निकल चुका था और सब बाधाओं के बावजूद वह द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया था। अब उसे कालेज में प्रवेश करना था। परन्तु

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अध्याय 9: वह युग

22 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द का जन्म हुआ क वह चहुंमुखी जागृति और प्रगति का का था। सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम की असफलता और सरकार के तीव्र दमन के कारण कुछ दिन शिथिलता अवश्य दिखाई दी थी, परन्तु वह तूफान से पूर्व

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अध्याय 10: नाना परिवार का विद्रोह

22 अगस्त 2023
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शरत जब दूसरी बार भागलपुर लौटा तो यह दलबन्दी चरम सीमा पर थी। कट्टरपन्थी लोगों के विरोध में जो दल सामने आया उसके नेता थे राजा शिवचन्द्र बन्दोपाध्याय बहादुर । दरिद्र घर में जन्म लेकर भी उन्होंने तीक्ष्ण

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अध्याय 11: ' शरत को घर में मत आने दो'

22 अगस्त 2023
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उस वर्ष वह परीक्षा में भी नहीं बैठ सका था। जो विद्यार्थी टेस्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे उन्हीं को अनुमति दी जाती थी। इसी परीक्षा के अवसर पर एक अप्रीतिकर घटना घट गई। जैसाकि उसके साथ सदा होता था, इ

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अध्याय 12: राजू उर्फ इन्द्रनाथ की याद

22 अगस्त 2023
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इसी समय सहसा एक दिन - पता लगा कि राजू कहीं चला गया है। फिर वह कभी नहीं लौटा। बहुत वर्ष बाद श्रीकान्त के रचियता ने लिखा, “जानता नहीं कि वह आज जीवित है या नहीं। क्योंकि वर्षों पहले एक दिन वह बड़े सुबह

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अध्याय 13: सृजिन का युग

22 अगस्त 2023
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इधर शरत् इन प्रवृत्तियों को लेकर व्यस्त था, उधर पिता की यायावर वृत्ति सीमा का उल्लंघन करती जा रही थी। घर में तीन और बच्चे थे। उनके पेट के लिए अन्न और शरीर के लिए वस्त्र की जरूरत थी, परन्तु इस सबके लि

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अध्याय 14: 'आलो' और ' छाया'

22 अगस्त 2023
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इसी समय निरुपमा की अंतरंग सखी, सुप्रसिद्ध भूदेव मुखर्जी की पोती, अनुपमा के रिश्ते का भाई सौरीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय भागलपुर पढ़ने के लिए आया। वह विभूति का सहपाठी था। दोनों में खूब स्नेह था। अक्सर आना-ज

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अध्याय 15 : प्रेम के अपार भूक

22 अगस्त 2023
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एक समय होता है जब मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं और अभीप्साएं मूर्त रूप लेना शुरू करती हैं। यदि बाधाएं मार्ग रोकती हैं तो अभिव्यक्ति के लिए वह कोई और मार्ग ढूंढ लेता है। ऐसी ही स्थिति में शरत् का जीवन च

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अध्याय 16: निरूद्देश्य यात्रा

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गृहस्थी से शरत् का कभी लगाव नहीं रहा। जब नौकरी करता था तब भी नहीं, अब छोड़ दी तो अब भी नहीं। संसार के इस कुत्सित रूप से मुंह मोड़कर वह काल्पनिक संसार में जीना चाहता था। इस दुर्दान्त निर्धनता में भी उ

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अध्याय 17: जीवनमन्थन से निकला विष

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अध्याय 18: बंधुहीन, लक्ष्यहीन प्रवास की ओर

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इस जीवन का अन्त न जाने कहा जाकर होता कि अचानक भागलपुर से एक तार आया। लिखा था—तुम्हारे पिता की मुत्यु हो गई है। जल्दी आओ। जिस समय उसने भागलपुर छोड़ा था घर की हालत अच्छी नहीं थी। उसके आने के बाद स्थित

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" द्वितीय पर्व : दिशा की खोज" अध्याय 1: एक और स्वप्रभंग

24 अगस्त 2023
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अध्याय 2: सभ्य समाज से जोड़ने वाला गुण

24 अगस्त 2023
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वहां से हटकर वह कई व्यक्तियों के पास रहा। कई स्थानों पर घूमा। कई प्रकार के अनुभव प्राप्त किये। जैसे एक बार फिर वह दिशाहारा हो उठा हो । आज रंगून में दिखाई देता तो कल पेगू या उत्तरी बर्मा भाग जाता। पौं

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अध्याय 3: खोज और खोज

24 अगस्त 2023
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वह अपने को निरीश्वरवादी कहकर प्रचारित करता था, लेकिन सारे व्यसनों और दुर्गुणों के बावजूद उसका मन वैरागी का मन था। वह बहुत पढ़ता था । समाज विज्ञान, यौन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, दर्शन, कुछ भी तो नहीं छू

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अध्याय 4: वह अल्पकालिक दाम्पत्य जीवन

24 अगस्त 2023
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एक दिन क्या हुआ, सदा की तरह वह रात को देर से लौटा और दरवाज़ा खोलने के लिए धक्का दिया तो पाया कि भीतर से बन्द है । उसे आश्चर्य हुआ, अन्दर कौन हो सकता है । कोई चोर तो नहीं आ गया। उसने फिर ज़ोर से धक्का

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अध्याय 5: चित्रांगन

24 अगस्त 2023
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शरत् ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ के समान न केवल साहित्य में बल्कि संगीत और चित्रकला में भी रुचि ली थी । यद्यपि इन क्षेत्रों में उसकी कोई उपलब्धि नहीं है, पर इस बात के प्रमाण अवश्य उपलब्ध है

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अध्याय 6: इतनी सुंदर रचना किसने की ?

24 अगस्त 2023
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रंगून जाने से पहले शरत् अपनी सब रचनाएं अपने मित्रों के पास छोड़ गया था। उनमें उसकी एक लम्बी कहानी 'बड़ी दीदी' थी। वह सुरेन्द्रनाथ के पास थी। जाते समय वह कह गया था, “छपने की आवश्यकता नहीं। लेकिन छापना

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अध्याय 7: प्रेरणा के स्रोत

24 अगस्त 2023
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एक ओर अंतरंग मित्रों के साथ यह साहित्य - चर्चा चलती थी तो दूसरी और सर्वहारा वर्ग के जीवन में गहरे पैठकर वह व्यक्तिगत अभिज्ञता प्राप्त कर रहा था। इन्ही में से उसने अपने अनेक पात्रों को खोजा था। जब वह

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अध्याय 8: मोक्षदा से हिरण्मयी

24 अगस्त 2023
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शांति की मृत्यु के बाद शरत् ने फिर विवाह करने का विचार नहीं किया। आयु काफी हो चुकी थी । यौवन आपदाओं-विपदाओं के चक्रव्यूह में फंसकर प्रायः नष्ट हो गया था। दिन-भर दफ्तर में काम करता था, घर लौटकर चित्र

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अध्याय 9: गृहदाद

24 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' प्रायः समाप्ति पर था। 'नारी का इतिहास प्रबन्ध भी पूरा हो चुका था। पहली बार उसके मन में एक विचार उठा- क्यों न इन्हें प्रकाशित किया जाए। भागलपुर के मित्रों की पुस्तकें भी तो छप रही हैं। उनस

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अध्याय 10: हाँ , अब फिर लिखूंगा

24 अगस्त 2023
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गृहदाह के बाद वह कलकत्ता आया । साथ में पत्नी थी और था उसका प्यारा कुत्ता। अब वह कुत्ता लिए कलकत्ता की सड़कों पर प्रकट रूप में घूमता था । छोटी दाढ़ी, सिर पर अस्त-व्यस्त बाल, मोटी धोती, पैरों में चट्टी

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अध्याय 11: रामेर सुमित शरतेर सुमित

24 अगस्त 2023
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रंगून लौटकर शरत् ने एक कहानी लिखनी शुरू की। लेकिन योगेन्द्रनाथ सरकार को छोड़कर और कोई इस रहस्य को नहीं जान सका । जितनी लिख लेता प्रतिदिन दफ्तर जाकर वह उसे उन्हें सुनाता और वह सब काम छोड़कर उसे सुनते।

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अध्याय 12: सृजन का आवेग

24 अगस्त 2023
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‘रामेर सुमति' के बाद उसने 'पथ निर्देश' लिखना शुरू किया। पहले की तरह प्रतिदिन जितना लिखता जाता उतना ही दफ्तर में जाकर योगेन्द्रनाथ को पढ़ने के लिए दे देता। यह काम प्राय: दा ठाकुर की चाय की दुकान पर हो

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अध्याय 13: चरितहीन क्रिएटिंग अलामिर्ग सेंसेशन

25 अगस्त 2023
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छोटी रचनाओं के साथ-साथ 'चरित्रहीन' का सृजन बराबर चल रहा था और उसके प्रकाशन को 'लेकर काफी हलचल मच गई थी। 'यमुना के संपादक फणीन्द्रनाथ चिन्तित थे कि 'चरित्रहीन' कहीं 'भारतवर्ष' में प्रकाशित न होने लगे।

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अध्याय 14: ' भारतवर्ष' में ' दिराज बहू '

25 अगस्त 2023
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द्विजेन्द्रलाल राय शरत् के बड़े प्रशंसक थे। और वह भी अपनी हर रचना के बारे में उनकी राय को अन्तिम मानता था, लेकिन उन दिनों वे काव्य में व्यभिचार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे थे। इसलिए 'चरित्रहीन' को स्वी

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अध्याय 15 : विजयी राजकुमार

25 अगस्त 2023
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अगले वर्ष जब वह छः महीने की छुट्टी लेकर कलकत्ता आया तो वह आना ऐसा ही था जैसे किसी विजयी राजकुमार का लौटना उसके प्रशंसक और निन्दक दोनों की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन इस बार भी वह किसी मित्र के पास नहीं ठ

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अध्याय 16: नये- नये परिचय

25 अगस्त 2023
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' यमुना' कार्यालय में जो साहित्यिक बैठकें हुआ करती थीं, उन्हीं में उसका उस युग के अनेक साहित्यिकों से परिचय हुआ उनमें एक थे हेमेन्द्रकुमार राय वे यमुना के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल की सहायता करते थे। ए

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अध्याय 17: ' देहाती समाज ' और आवारा श्रीकांत

25 अगस्त 2023
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अचानक तार आ जाने के कारण शरत् को छुट्टी समाप्त होने से पहले ही और अकेले ही रंगून लौट जाना पड़ा। ऐसा लगता है कि आते ही उसने अपनी प्रसिद्ध रचना पल्ली समाज' पर काम करना शरू कर दिया था, लेकिन गृहिणी के न

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अध्याय 18: दिशा की खोज समाप्त

25 अगस्त 2023
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वह अब भी रंगून में नौकरी कर रहा था, लेकिन उसका मन वहां नहीं था । दफ्तर के बंधे-बंधाए नियमो के साथ स्वाधीन मनोवृत्ति का कोई मेल नही बैठता था। कलकत्ता से हरिदास चट्टोपाध्याय उसे बराबर नौकरी छोड़ देने क

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" तृतीय पर्व: दिशान्त " अध्याय 1: ' वह' से ' वे '

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत् ने कलकत्ता छोडकर रंगून की राह ली थी, उस समय वह तिरस्कृत, उपेक्षित और असहाय था। लेकिन अब जब वह तेरह वर्ष बाद कलकत्ता लौटा तो ख्यातनामा कथाशिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। वह अब 'वह'

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अध्याय 2: सृजन का स्वर्ण युग

25 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र के जीवन का स्वर्णयुग जैसे अब आ गया था। देखते-देखते उनकी रचनाएं बंगाल पर छा गई। एक के बाद एक श्रीकान्त" ! (प्रथम पर्व), 'देवदास' 2', 'निष्कृति" 3, चरित्रहीन' और 'काशीनाथ' पुस्तक रूप में प्रक

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अध्याय 3: आवारा श्रीकांत का ऐश्वर्य

25 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' के प्रकाशन के अगले वर्ष उनकी तीन और श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों के हाथों में थीं-स्वामी(गल्पसंग्रह - एकादश वैरागी सहित) - दत्ता 2 और श्रीकान्त ( द्वितीय पर्वों 31 उनकी रचनाओं ने जनता को ही इस प

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अध्याय 4: देश के मुक्ति का व्रत

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द्र लोकप्रियता की चरम सीमा पर थे, उसी समय उनके जीवन में एक और क्रांति का उदय हुआ । समूचा देश एक नयी करवट ले रहा था । राजनीतिक क्षितिज पर तेजी के साथ नयी परिस्थितियां पैदा हो रही थीं। ब

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अध्याय 5: स्वाधीनता का रक्तकमल

26 अगस्त 2023
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चर्खे में उनका विश्वास हो या न हो, प्रारम्भ में असहयोग में उनका पूर्ण विश्वास था । देशबन्धू के निवासस्थान पर एक दिन उन्होंने गांधीजी से कहा था, "महात्माजी, आपने असहयोग रूपी एक अभेद्य अस्त्र का आविष्क

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अध्याय 6: निष्कम्प दीपशिखा

26 अगस्त 2023
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उस दिन जलधर दादा मिलने आए थे। देखा शरत्चन्द्र मनोयोगपूर्वक कुछ लिख रहे हैं। मुख पर प्रसन्नता है, आखें दीप्त हैं, कलम तीव्र गति से चल रही है। पास ही रखी हुई गुड़गुड़ी की ओर उनका ध्यान नहीं है। चिलम की

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अध्याय 7: समाने समाने होय प्रणयेर विनिमय

26 अगस्त 2023
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शरत्चन्द्र इस समय आकण्ठ राजनीति में डूबे हुए थे। साहित्य और परिवार की ओर उनका ध्यान नहीं था। उनकी पत्नी और उनके सभी मित्र इस बात से बहुत दुखी थे। क्या हुआ उस शरतचन्द्र का जो साहित्य का साधक था, जो अड

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अध्याय 8: राजनीतिज्ञ अभिज्ञता का साहित्य

26 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र कभी नियमित होकर नहीं लिख सके। उनसे लिखाया जाता था। पत्र- पत्रिकाओं के सम्पादक घर पर आकर बार-बार धरना देते थे। बार-बार आग्रह करने के लिए आते थे। भारतवर्ष' के सम्पादक रायबहादुर जलधर सेन आते,

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अध्याय 9: लिखने का दर्द

26 अगस्त 2023
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अपनी रचनाओं के कारण शरत् बाबू विद्यार्थियों में विशेष रूप से लोकप्रिय थे। लेकिन विश्वविद्यालय और कालेजों से उनका संबंध अभी भी घनिष्ठ नहीं हुआ था। उस दिन अचानक प्रेजिडेन्सी कालेज की बंगला साहित्य सभा

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अध्याय 10: समिष्ट के बीच

26 अगस्त 2023
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किसी पत्रिका का सम्पादन करने की चाह किसी न किसी रूप में उनके अन्तर में बराबर बनी रही। बचपन में भी यह खेल वे खेल चुके थे, परन्तु इस क्षेत्र में यमुना से अधिक सफलता उन्हें कभी नहीं मिली। अपने मित्र निर

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अध्याय 11: आवारा जीवन की ललक

26 अगस्त 2023
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राजनीतिक क्षेत्र में इस समय अपेक्षाकृत शान्ति थी । सविनय अवज्ञा आन्दोलन जैसा उत्साह अब शेष नहीं रहा था। लेकिन गांव का संगठन करने और चन्दा इकट्ठा करने में अभी भी वे रुचि ले रहे थे। देशबन्धु का यश ओर प

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अध्याय 12: ' हमने ही तोह उन्हें समाप्त कर दिया '

26 अगस्त 2023
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देशबन्धु की मृत्यु के बाद शरत् बाबू का मन राजनीति में उतना नहीं रह गया था। काम वे बराबर करते रहे, पर मन उनका बार-बार साहित्य के क्षेत्र में लौटने को आतुर हो उठता था। यद्यपि वहां भी लिखने की गति पहले

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अध्याय 13: पथेर दाबी

26 अगस्त 2023
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जिस समय वे 'पथेर दाबी ' लिख रहे थे, उसी समय उनका मकान बनकर तैयार हो गया था । वे वहीं जाकर रहने लगे थे। वहां जाने से पहले लगभग एक वर्ष तक वे शिवपुर टाम डिपो के पास कालीकुमार मुकर्जी लेने में भी रहे थे

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अध्याय 14: रूप नारायण का विस्तार

26 अगस्त 2023
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गांव में आकर उनका जीवन बिलकुल ही बदल गया। इस बदले हुए जीवन की चर्चा उन्होंने अपने बहुत-से पत्रों में की है, “रूपनारायण के तट पर घर बनाया है, आरामकुर्सी पर पड़ा रहता हूं।" एक और पत्र में उन्होंने लिख

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अध्याय 15: देहाती शरत

26 अगस्त 2023
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गांव में रहने पर भी शहर छूट नहीं गया था। अक्सर आना-जाना होता रहता था। स्वास्थ्य बहुत अच्छा न होने के कारण कभी-कभी तो बहुत दिनों तक वहीं रहना पड़ता था । इसीलिए बड़ी बहू बार-बार शहर में मकान बना लेने क

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अध्याय 16: दायोनिसस शिवानी से वैष्णवी कमललता तक

26 अगस्त 2023
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किशोरावस्था में शरत् बात् ने अनेक नाटकों में अभिनय करके प्रशंसा पाई थी। उस समय जनता को नाटक देखने का बहुत शौक था, लेकिन भले घरों के लड़के मंच पर आयें, यह कोई स्वीकार करना नहीं चाहता था। शरत बाबू थे ज

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अध्याय 17: तुम में नाटक लिखने की शक्ति है

26 अगस्त 2023
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शरत साहित्य की रीढ़, नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण है। बार-बार अपने इसी दृष्टिकोण को उन्होंने स्पष्ट किया है। प्रसिद्धि के साथ-साथ उन्हें अनेक सभाओं में जाना पडता था और वहां प्रायः यही प्रश्न उनके साम

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अध्याय 18: नारी चरित्र के परम रहस्यज्ञाता

26 अगस्त 2023
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केवल नारी और विद्यार्थी ही नहीं दूसरे बुद्धिजीवी भी समय-समय पर उनको अपने बीच पाने को आतुर रहते थे। बड़े उत्साह से वे उनका स्वागत सम्मान करते, उन्हें नाना सम्मेलनों का सभापतित्व करने को आग्रहपूर्वक आ

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अध्याय 19: मैं मनुष्य को बहुत बड़ा करके मानता हूँ

26 अगस्त 2023
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चन्दन नगर की गोष्ठी में उन्होंने कहा था, “राजनीति में भाग लिया था, किन्तु अब उससे छुट्टी ले ली है। उस भीड़भाड़ में कुछ न हो सका। बहुत-सा समय भी नष्ट हुआ । इतना समय नष्ट न करने से भी तो चल सकता था । ज

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अध्याय 20: देश के तरुणों से में कहता हूँ

26 अगस्त 2023
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साधारणतया साहित्यकार में कोई न कोई ऐसी विशेषता होती है, जो उसे जनसाधारण से अलग करती है। उसे सनक भी कहा जा सकता है। पशु-पक्षियों के प्रति शरबाबू का प्रेम इसी सनक तक पहुंच गया था। कई वर्ष पूर्व काशी में

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अध्याय 21:  ऋषिकल्प

26 अगस्त 2023
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जब कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सत्तर वर्ष के हुए तो देश भर में उनकी जन्म जयन्ती मनाई गई। उस दिन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट, कलकत्ता में जो उद्बोधन सभा हुई उसके सभापति थे महामहोपाध्याय श्री हरिप्रसाद शास्त

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अध्याय 22: गुरु और शिष्य

27 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र 60 वर्ष के भी नहीं हुए थे, लेकिन स्वास्थ्य उनका बहुत खराब हो चुका था। हर पत्र में वे इसी बात की शिकायत करते दिखाई देते हैं, “म सरें दर्द रहता है। खून का दबाव ठीक नहीं है। लिखना पढ़ना बहुत क

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अध्याय 23: कैशोर्य का वह असफल प्रेम

27 अगस्त 2023
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शरत् बाबू की रचनाओं के आधार पर लिखे गये दो नाटक इसी युग में प्रकाशित हुए । 'विराजबहू' उपन्यास का नाट्य रूपान्तर इसी नाम से प्रकाशित हुआ। लेकिन दत्ता' का नाट्य रूपान्तर प्रकाशित हुआ 'विजया' के नाम से

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अध्याय 24: श्री अरविन्द का आशीर्वाद

27 अगस्त 2023
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गांव में रहते हुए शरत् बाबू को काफी वर्ष बीत गये थे। उस जीवन का अपना आनन्द था। लेकिन असुविधाएं भी कम नहीं थीं। बार-बार फौजदारी और दीवानी मुकदमों में उलझना पड़ता था। गांव वालों की समस्याएं सुलझाते-सुल

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अध्याय 25: तुब बिहंग ओरे बिहंग भोंर

27 अगस्त 2023
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राजनीति के क्षेत्र में भी अब उनका कोई सक्रिय योग नहीं रह गया था, लेकिन साम्प्रदायिक प्रश्न को लेकर उन्हें कई बार स्पष्ट रूप से अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिला। उन्होंने बार-बार नेताओं की आलोचना की

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अध्याय 26: अल्हाह.,अल्हाह.

27 अगस्त 2023
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सर दर्द बहुत परेशान कर रहा था । परीक्षा करने पर डाक्टरों ने बताया कि ‘न्यूरालाजिक' दर्द है । इसके लिए 'अल्ट्रावायलेट रश्मियां दी गई, लेकिन सब व्यर्थ । सोचा, सम्भवत: चश्मे के कारण यह पीड़ा है, परन्तु

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अध्याय 27: मरीज की हवा दो बदल

27 अगस्त 2023
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हिरण्मयी देवी लोगों की दृष्टि में शरत्चन्द्र की पत्नी थीं या मात्र जीवनसंगिनी, इस प्रश्न का उत्तर होने पर भी किसी ने उसे स्वीकार करना नहीं चाहा। लेकिन इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि उनके प्रति शरत् बा

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अध्याय 28: साजन के घर जाना होगा

27 अगस्त 2023
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कलकत्ता पहुंचकर भी भुलाने के इन कामों में व्यतिक्रम नहीं हुआ। बचपन जैसे फिर जाग आया था। याद आ रही थी तितलियों की, बाग-बगीचों की और फूलों की । नेवले, कोयल और भेलू की। भेलू का प्रसंग चलने पर उन्होंने म

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अध्याय 29: बेशुमार यादें

27 अगस्त 2023
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इसी बीच में एक दिन शिल्पी मुकुल दे डाक्टर माके को ले आये। उन्होंने परीक्षा करके कहा, "घर में चिकित्सा नहीं ही सकती । अवस्था निराशाजनक है। किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है। इन्हें तुरन्त नर्सिंग होम ले

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