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" तृतीय पर्व: दिशान्त " अध्याय 1: ' वह' से ' वे '

25 अगस्त 2023

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जिस समय शरत् ने कलकत्ता छोडकर रंगून की राह ली थी, उस समय वह तिरस्कृत, उपेक्षित और असहाय था। लेकिन अब जब वह तेरह वर्ष बाद कलकत्ता लौटा तो ख्यातनामा कथाशिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। वह अब 'वह' नहीं रह गया था, 'वे' के पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था।

उनके प्रति बंगाल के लोग कितने उत्सुक थे और किस प्रकार उनका स्वागत हुआ, यह तथ्य किसी भी साहित्यिक के लिए ईर्ष्या का कारण हो सकता है। नाटककार द्विजेन्द्रलाल राय शरत के प्रशंसक थे, लेकिन उनके पुत्र दिलीपकुमार राय (जो बाद में संगीतज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुए) उनसे भी अधिक उनके भक्त हो चुके थे। 'चरित्रहीन' के कारण शरच्चन्द्र को जो बदनामी मिली, उससे वे और भी उनके 'हीरो' बन गए। वे मन ही मन सोचते, वे कलकत्ता क्यों नही आते? ऐसे विदेश में क्यों पड़े हैं जहां लोग नाप्पि खाते हैं।

जब उन्होंने सुना कि शरत् बाबू कलकत्ता आ रहे हैं तो उनकी प्रसन्नता का पार नहीं था। रात को नींद भी नहीं आती थी। सोचते थे, कब आयेंगे सात समुद्र और तेरह नदी पार से वे अपरूप गल्प - गंधर्व ।

आखिर शरत् आए और दिलीपकुमार उनसे मिलने के लिए पहुंचे। गुरुदास लाइब्रेरी में ऊपर के तल्ले पर एक छोटे से कमरे में उन्होंने पहली बार शरत् बाबू को देखा। उनके चारों ओर पुस्तकें बिखरी हुई थीं। बीच में वे बैठे थे। श्याम वर्ण बकरे जैसी दाढ़ी क्षीणकाय, केवल दो आखें कैसी तीक्ष्ण हैं कैसी तीक्ष्ण है नाक, लेकिन चेहरे पर तेज तो जरा भी नहीं है । अत्यन्त गद्यमय वेश... ।

दिलीपकुमार का उत्फुल्ल हृदय एक क्षण को जैसे बुझ गया हो। फिर भी प्रणाम करने के लिए पैरों की धूलि ली और कुछ घबराकर कहा, 'आप.......!

शरत् बाबू हंसे "हां, मैं शरच्चन्द्र ही हूं। मुझे देखकर तुम्हें दुःख हुआ । सोचा होगा कि मेरा चेहरा राजपुत्र के समान होगा। है न ? यही सोचा था?"

दिलीप ने लजाकर उत्तर दिया, "नहीं, नहीं, यह बात नहीं है। फिर भी......"

लेकिन स्नेह की प्रगाढ़ता केवल रूप की अपेक्षा नहीं रखती । उनमें ऐसी कुछ विलक्षणता थी जो शीघ्र ही दर्शक का ध्यान आकर्षित कर लेती थी, फिर दिलीप तो उनकी रचनाओं के उपासक थे। शीघ्र ही उनकी हार्दिक सरलता, निश्छल स्नेह और सन्तों जैसी सादगी ने दिलीप के मन को जीत लिया। इस श्रद्धा का एक और कारण था उनका मधुर कण्ठ । दिलीपकुमार स्वयं भी तो सुन्दर गायक थे। अपने पिता के कीर्तन - गान और हिन्दुस्तानी संगीत में उनकी अच्छी गति थी। जब वे अपने पिता का यह गीत गाते-'ओ जे गान ए-गए चोले जाए ।' तो शरत् बाबू बार-बार सुनकर भी तृप्त नहीं होते थे। कहते, "गाओ तो मन्टू, एक बार फिर वहीं पंक्ति...... ' से जे देवता भिखारी, मानव दुयारे, देखे जारे तोरा देख जा।' आहा तुम्हारे पिता केवल कवि ही नहीं थी, भक्त भी थे। नहीं तो ऐसे गीत नहीं लिख पाते।'

उनका एक और प्रिय कीर्तन था, 'चन्द्रद्रगुप्त' नाटक का यह गीत ........

आर केन मीछे आशा, मीछे भालबासा, मीछे केन तार भावना।

से जे सागरेर मणि आकाशेर चांद आमी तो ताहारे पाबना ।।

कलकत्ता आने के बाद शरत् बाबू सबसे पहले छ: नम्बर शिवपुर फर्स्ट बाई लेन (नील कमल कुण्डू लेन) में रहे और उसके बाद चार नम्बर फर्स्ट बाई लेन शिवपुर में स्थायी रूप में रहने लगे। घर छोटा था और पैसा भी नहीं था। परन्तु फिर भी उनका सौदर्य-प्रेम वैसा ही था। बैठक में एक मंझोले कद की मेज़, उसके तीन ओर तीन कुर्सियां एक बेंच। मेज पर सुन्दर जिल्द की दो कापियां, एक सुन्दर-सा कलमदान, काली और लाल स्याही की दवातें, चार कलम, दो कीमती फाउंटेनपेन और विज्ञान व अर्थशास्त्र की कई पुस्तकें जो करीने से हुई थीं।

पास ही एक बड़ा-सा हुक्का रखा रहता था। बीच-बीच में आवाज देकर नौकर को बुलाना वे नहीं भूलते थे।

कलकत्ता से जाने से पहले अपने जिन भाई-बहनों को अनाथ की तरह इधर-उधर अपने दूर के नातेदारों और दोस्तों के पास छोडू गए थे सबसे पहले उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया। छोटे भाई प्रकाशचन्द्र इस समय अग्रद्वीप में थे। वे अब बड़े भाई के पास आकर रहने लगे। मंझले भाई प्रभासचन्द्र नौकरी छोड़कर संन्यासी हो गए थे। इस समय वे रामकृष्ण मिशन सेवा आश्रम, वृन्दावन, का संचालन कर रहे थे। जब कभी वे कलकत्ता

आते तो पूर्वाश्रम के अपने बड़े भाई के पास ही ठहरते थे। बड़ी बहन अनिला देवी पास ही के गांव 'सामता बेड' में रहती थीं। पति-परिवार के साथ वे बार-बार अपने भाई से मिलने आतीं। उन्हीं के परिवार के कारण उनके रहने की व्यवस्था हो सकी थी।

सबसे छोटी बहन सुशीला को वे मकान मालकिन के पास छोड़ गए थे। छोटे मामा विप्रदास को शायद यह अच्छा नहीं लगा। वे उसे अपने पास ले आए। उन्होंने ही उसका विवाह किया। वह विवाह आसनसोल के एक कोयला व्यापारी के घराने में हुआ था। शरत् बाबू के कलकत्ता आने पर प्रकाशचन्द्र उससे मिलने के लिए गए। लेकिन सुना जाता है, किसी बात को लेकर सुशीला ने उन्हें कुछ सख्त - सुस्त कह दिया। वह लौट आए। कुछ भी हो सुशीला कभी उनके पास नहीं आई।

इस एक अपवाद को छोड़कर शरत्चन्द्र ने अपने विशृंखल परिवार को फिर से संगठित करने में कुछ न उठा रखा। कुछ समय बाद ही उनकी भानजी का विवाह हुआ और हिन्दू प्रथा के अनुसार उन्हें भात देना था। लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपने प्रकाशक को लिखा, "मेरी भानजी का विवाह इस शुक्रवार के बाद अगले शुक्रवार को होगा। मेरे ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। इतने दिनों तक एक बात आपको रही बताई कि देश में समाज - बहिष्कृत हूं। कामकाज के घर में जाना ठीक नहीं है। जो हो उसकी चिन्ता नहीं है. लेकिन रुपये देना चाहता हू। मैं न आऊं, यह उनकी गुप्त इच्छा है। मेरे पास चार सौ रुपये की कमी है वह मुझे चाहिए।" 

वे अपनी दीदी को कितना प्यार करते थे यह पत्र से स्पष्ट हो जाता है। जाति- बहिष्कृत होने के कारण (वे जीवन-भर जाति बहिष्कृत रहे) वे उस उत्सव में सम्मिलित नहीं हो सकते थे। इसीलिए वे चाहते तो आसानी से भात देने से बच सकते थे. लेकिन अब उनके अन्तर का 'आवारा व्यक्ति' जैसे थक चला था या जैसे वह स्वयं उससे मुक्ति पाना चाहते हों, शायद इसीलिए परिवार का व्यक्ति होने की लालसा उनके मन में जाग आई थी। तभी तो उन्होंने यह अपमान सहकर भी रुपये भेजने से इनकार नहीं किया। लेकिन इसके साथ ही उन्हें जाति के भीतर लिया जाए, इसकी भी चेष्टा नहीं की। लाने की चेष्टा करनेवालों को भी प्रोत्साहित नही किया । नाना लोग नाना प्रकार के प्रस्ताव लेकर आते थे और सदा आते रह। किसी ने अंग्रेज़ी स्कूल को पांच सौ रुपया चन्दा देने की मांग की। किसी ने कहा कि यदि वे पोखर के चारों ओर पक्का घाट बनवा दें तो उन्हें फिर से जाति में लिया जा सकता है, लेकिन उन्होंने कोई भी शर्त मानने से इनकार कर दिया। यह घूस देना उनका अभिमानी मन बर्दाश्त नहीं कर सकता था।

परिवार के अतिरिक्त उन्होंने आसपास के लोगों से भी परिचय बढ़ाना शुरू किया। सौदा खरीदते खरीदते उनका परिचय मोदी शरत् सेठ से हो गया। उसके साथ वे अक्सर ताश खेला करते थे। तमाखू पीते रहते और तीसरे पहर से रात गए तक खेलते रहते। सेठ को उठने न देते। कहते 'नया आया हूं किसी से परिचय नहीं कहां बैठूं सो तुम्हारी दुकान ही सही।"

धीरे-धीरे परिचर का यह क्षेत्र बढने लगा। लोग उनके घर भी आने लगे। कई लोग तो उनमें ऐसे भी थे कि अधिकतर उनके पास ही जमे रहते। बेंच पर लेटे हुक्का पीते हुए वे उन्हें कहानियां सुनाया करते । इकतारा बजाकर गानेवाले वैष्णव भिखारियों का वे बड़ा आदर करते थें। उनका संगीत सुनते-सुनते वे तन्मय हो उठते । लेकिन दूसरे भिखारियों को एक आंख भी नहीं देख पाते थे। गोलियां खेलने की आयु तो कभी की बीत चुकी थी. पर सक्रिय दर्शक होने का चाव उन्हें अब भी था।

इसी समय उनका परिचय सर्वश्री सरोजरंजन बंदोपाध्याय और अक्षय कुमार सरकार से हुआ, जो शीघ्र ही घनिष्ठता में बदल गया । सरोजरंजन किसी ऊंचे पद पर थे। उन्होंने 'अरक्षणीया' की भूमिका लिखी है। इतिहास के अध्यापक अक्षय सरकार नियमित रूप से डायरी लिखते थे। उस डायरी मे शरत् बाबू के संबंध में बहुत कुछ लिखा हुआ है। शरत् ने 'शेष प्रश्त' में अध्यापक अक्षय का चित्रण करते समय अपने इस आदर्शवादी बन्धु को निश्चय ही याद रखा है।

जैसा कि उनका स्वभाव था, वे बहुत अधिक नहीं लिख पाते थे। आग्रह करने वाले बहु थे और सबकी रक्षा करना उनके लिए असम्भव था। जो उनको जानते थे और उनके परम भक्त थे, वे ही उनसे लिखवा सकते थे। उनमें अग्रणी थे- 'भारतवर्ष' के ख्यातनामा सम्पादक रायबहादुर जलधर सेन। 'बैकुण्ठ का वसीयतनामा" 2 अरक्षणीया' 3 'श्रीकान्त', 'निष्कृति' तथा 'समाज धर्मेर मूल्य' आदि उनकी रचनाएं 'भारतवर्ष' में ही प्रकाशित हुई। 'निष्कृति' का एक अंश 'घर भांगा' के नाम से 'यमुना' में भी छपा था।

'अरक्षणीया' एक मार्मिक कथा है। पहले उसका अन्त उन्होंने नायिका की आत्महत्या से किया था। वह अत्यन्त कुरूपा थी। उसकी मर्मान्तक व्यथा से मुक्ति उसे जल में डुबा देने में ही लेखक ने समझी परन्तु ऐसा लगता है कि यह अन्त न तो पाठकों को ग्राह्य हुआ और न लेखक को ही अच्छा लगा। विशेषकर प्रकाशक हरिदास चट्टोपाध्याय को बिलकुल अच्छा नहीं लगा। इसलिए पुस्तक रूप में आते-आते 'अरक्षणीया' को उसका रक्षक मिल गया। यह वही अतुल था जिसे उस रूपहीना कल्याणी ने मन से वरा था। इस परिवर्तन की कैफियत देते हुए उन्होंने कहा, "स्त्रियों में यह रोग (आत्महत्या) और न बढ़ाना ही अच्छा है । '

लेकिन लेखक ने अब भी स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि अतुल ने ज्ञानदा से विवाह कर लिया। इसी बात को लेकर पाठकं बार-बार पूछते, "आखिर उन दोनों का हुआ क्या? क्या उन्होंने शादी कर ली?.

एक दिन तो दो दलों में शर्त हो गई। बात शरत् बाबू तक पहुंची वे परेशानी में पड़ गए। हरिदास से बोले "तुम्हारे कारण ही यह सब हुआ। नहीं तो ज्ञानदा जल में डूब मरी थी, मर जाती तो बेचारा अतुल भी काली लड़की से बच जाता, लेखक-प्रकाशक भी बच जाते। अब क्या जवाब दूं? रोज ऐसे पत्र आते हैं। अच्छा, लिख दो कि उसके बाद शरत् बाबू की उन दानों से भेंट नहीं हुई। इसलिए फिर क्या हुआ पता नहीं।'

लेकिन अरक्षणीया की रक्षा करके शरत् बाबू ने सिद्धान्त तो बचा लिया परन्तु कला की निःसन्देह क्षति हुई। ट्रेजेडी में ही वह उपन्यास सार्थक था। फिर भी तत्कालीन समाज और समाज में परिवार के अन्दर जो अत्याचार और उत्पीड़न चलता था, उसका मर्मान्तक चित्र शरत्चन्द्र ने खींचा है। उच्चवर्ग के हिन्दू समाज के विवाह संबंधी विधि-विधान आज के लिए कितने घातक हैं ज़िन्दगी को वे किस प्रकार अशान्त कर निष्ठुर और नैतिकताविहीन बना देते हैं, यही कुछ बड़ी सहृदयता और संयम के साथ शरत् बाबू ने चित्रित किया है। रूपहीना पितृहीना और धनहीना ज्ञानदा अपने चरित्र और सहनशीलता से प्रत्येक सहृदय पाठक को हिला देती है।

एक और उपन्यास वह लिख रहे थे, लेकिन पूरा हो पाता इससे पूर्व ही उनके प्यारे कुत्ते भेलू ने उसे नष्ट कर दिया। एक दिन लिखते-लिखते किसी अति आवश्यक कार्य से उन्हें कही जाना पड़ा। जल्दी के कारण शायद कमरे में कुण्डी लगाना भूल गए। लौटकर देखा, उपन्यास की पांडुलिपि टुकड़े-टुकड़े होकर कमरे में बिखरी पड़ी है। आखों में आ छलछला आए। उनके विचार में वह उनकी सर्वोत्तम कृति होती। पूरे छ: महीने पूरी निष्ठा के साथ परिश्रम करके उन्होंने उसे लिखा था। नाम था उसका 'मालिनी । उसको वे फिर नहीं लिख सके।

इसी समय जोडासांकी में रवीन्द्रनाथ के पैतृक भवन में 'विचित्रा' की बैठकें हुआ करती थीं। रवीन्द्रनाथ और अवनीन्द्रनाथ के अतिरिक्त और भी अनेक सुपरिचित साहित्यिक तथा कलाकार उसमें आते थे। शरत् भी बीच-बीच में जाते थे। उसी को लेकर एक विचित्र प्रवाद उन दिनों प्रचलित हो गया था। सुना गया कि वहां हर बार किसी न किसी का जूता खो जाता है। इसीलिए सभी व्यस्त हो उठे थे। शरत् बाबू ने भी सुना। उस दिन वे अपना नया जूता पहने थे। उन्होंने चुपचाप उसे निकालकर अखबार में लपेट लिया। कवि सत्येन्द्रनाथ दत्त यह सब देख रहे थे। चुपके से रवीन्द्रनाथ के कान में उन्होंने यह बात डाल दी। कुछ देर बाद रवीन्द्रनाथ ने शरत् से पूछा, शरत्, तुम्हारे हाथ में यह पैकेट कैसा है?. जी, ऐसे ही एक चीज है?.

"क्या चीज़ है? कोई पुस्तक है?"

जी हां।'

कौन-सी पुस्तक है। शायद पादुका पुराण है?"

शरत् तो हतप्रभ-अवाक्, लेकिन सभा अट्टहास से गूंज गूंज उठी।

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रचनाएँ
आवारा मसीहा
5.0
मूल हिंदी में प्रकाशन के समय से 'आवारा मसीहा' तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा ' पाब्लो नेरुदा सम्मान' के अतिरिक्त बंग साहित्य सम्मेलन तथा कलकत्ता की शरत समिति द्वारा प्रदत्त 'शरत मेडल', उ. प्र. हिंदी संस्थान, महाराष्ट्र तथा हरियाणा की साहित्य अकादमियों और अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें हार्दिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। अंग्रेजी, बांग्ला, मलयालम, पंजाबी, सिन्धी , और उर्दू में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथा तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। शरतचंद्र भारत के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएं लांघकर सच्चे मायनों में अखिल भारतीय हो गया। उन्हें बंगाल में जितनी ख्याति और लोकप्रियता मिली, उतनी ही हिंदी में तथा गुजराती, मलयालम तथा अन्य भाषाओं में भी मिली। उनकी रचनाएं तथा रचनाओं के पात्र देश-भर की जनता के मानो जीवन के अंग बन गए। इन रचनाओं तथा पात्रों की विशिष्टता के कारण लेखक के अपने जीवन में भी पाठक की अपार रुचि उत्पन्न हुई परंतु अब तक कोई भी ऐसी सर्वांगसंपूर्ण कृति नहीं आई थी जो इस विषय पर सही और अधिकृत प्रकाश डाल सके। इस पुस्तक में शरत के जीवन से संबंधित अंतरंग और दुर्लभ चित्रों के सोलह पृष्ठ भी हैं जिनसे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। बांग्ला में यद्यपि शरत के जीवन पर, उसके विभिन्न पक्षों पर बीसियों छोटी-बड़ी कृतियां प्रकाशित हुईं, परंतु ऐसी समग्र रचना कोई भी प्रकाशित नहीं हुई थी। यह गौरव पहली बार हिंदी में लिखी इस कृति को प्राप्त हुआ है।
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भूमिका

21 अगस्त 2023
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संस्करण सन् 1999 की ‘आवारा मसीहा’ का प्रथम संस्करण मार्च 1974 में प्रकाशित हुआ था । पच्चीस वर्ष बीत गए हैं इस बात को । इन वर्षों में इसके अनेक संस्करण हो चुके हैं। जब पहला संस्करण हुआ तो मैं मन ही म

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भूमिका : पहले संस्करण की

21 अगस्त 2023
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कभी सोचा भी न था एक दिन मुझे अपराजेय कथाशिल्पी शरत्चन्द्र की जीवनी लिखनी पड़ेगी। यह मेरा विषय नहीं था। लेकिन अचानक एक ऐसे क्षेत्र से यह प्रस्ताव मेरे पास आया कि स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ा। हिन्दी

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तीसरे संस्करण की भूमिका

21 अगस्त 2023
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लगभग साढ़े तीन वर्ष में 'आवारा मसीहा' के दो संस्करण समाप्त हो गए - यह तथ्य शरद बाबू के प्रति हिन्दी भाषाभाषी जनता की आस्था का ही परिचायक है, विशेष रूप से इसलिए कि आज के महंगाई के युग में पैंतालीस या,

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" प्रथम पर्व : दिशाहारा " अध्याय 1 : विदा का दर्द

21 अगस्त 2023
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किसी कारण स्कूल की आधी छुट्टी हो गई थी। घर लौटकर गांगुलियो के नवासे शरत् ने अपने मामा सुरेन्द्र से कहा, "चलो पुराने बाग में घूम आएं। " उस समय खूब गर्मी पड़ रही थी, फूल-फल का कहीं पता नहीं था। लेकिन घ

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अध्याय 2: भागलपुर में कठोर अनुशासन

21 अगस्त 2023
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भागलपुर आने पर शरत् को दुर्गाचरण एम० ई० स्कूल की छात्रवृत्ति क्लास में भर्ती कर दिया गया। नाना स्कूल के मंत्री थे, इसलिए बालक की शिक्षा-दीक्षा कहां तक हुई है, इसकी किसी ने खोज-खबर नहीं ली। अब तक उसने

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अध्याय 3: राजू उर्फ इन्दरनाथ से परिचय

21 अगस्त 2023
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नाना के इस परिवार में शरत् के लिए अधिक दिन रहना सम्भव नहीं हो सका। उसके पिता न केवल स्वप्नदर्शी थे, बल्कि उनमें कई और दोष थे। वे हुक्का पीते थे, और बड़े होकर बच्चों के साथ बराबरी का व्यवहार करते थे।

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अध्याय 4: वंश का गौरव

22 अगस्त 2023
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मोतीलाल चट्टोपाध्याय चौबीस परगना जिले में कांचड़ापाड़ा के पास मामूदपुर के रहनेवाले थे। उनके पिता बैकुंठनाथ चट्टोपाध्याय सम्भ्रान्त राढ़ी ब्राह्मण परिवार के एक स्वाधीनचेता और निर्भीक व्यक्ति थे। और वह

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अध्याय 5: होनहार बिरवान .......

22 अगस्त 2023
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शरत् जब पांच वर्ष का हुआ तो उसे बाकायदा प्यारी (बन्दोपाध्याय) पण्डित की पाठशाला में भर्ती कर दिया गया, लेकिन वह शब्दश: शरारती था। प्रतिदिन कोई न कोई काण्ड करके ही लौटता। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उस

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अध्याय 6: रोबिनहुड

22 अगस्त 2023
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तीन वर्ष नाना के घर में भागलपुर रहने के बाद अब उसे फिर देवानन्दपुर लौटना पड़ा। बार-बार स्थान-परिवर्तन के कारण पढ़ने-लिखने में बड़ा व्याघात होता था। आवारगी भी बढ़ती थी, लेकिन अनुभव भी कम नहीं होते थे।

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अध्याय 7: अच्छे विद्यार्थी से कथा - विद्या - विशारद तक

22 अगस्त 2023
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शरत् जब भागलपुर लौटा तो उसके पुराने संगी-साथी प्रवेशिका परीक्षा पास कर चुके थे। 2 और उसके लिए स्कूल में प्रवेश पाना भी कठिन था। देवानन्दपुर के स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लाने के लिए उसके पास पैसे न

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अध्याय 8: एक प्रेमप्लावित आत्मा

22 अगस्त 2023
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इन दुस्साहसिक कार्यों और साहित्य-सृजन के बीच प्रवेशिका परीक्षा का परिणाम - कभी का निकल चुका था और सब बाधाओं के बावजूद वह द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया था। अब उसे कालेज में प्रवेश करना था। परन्तु

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अध्याय 9: वह युग

22 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द का जन्म हुआ क वह चहुंमुखी जागृति और प्रगति का का था। सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम की असफलता और सरकार के तीव्र दमन के कारण कुछ दिन शिथिलता अवश्य दिखाई दी थी, परन्तु वह तूफान से पूर्व

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अध्याय 10: नाना परिवार का विद्रोह

22 अगस्त 2023
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शरत जब दूसरी बार भागलपुर लौटा तो यह दलबन्दी चरम सीमा पर थी। कट्टरपन्थी लोगों के विरोध में जो दल सामने आया उसके नेता थे राजा शिवचन्द्र बन्दोपाध्याय बहादुर । दरिद्र घर में जन्म लेकर भी उन्होंने तीक्ष्ण

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अध्याय 11: ' शरत को घर में मत आने दो'

22 अगस्त 2023
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उस वर्ष वह परीक्षा में भी नहीं बैठ सका था। जो विद्यार्थी टेस्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे उन्हीं को अनुमति दी जाती थी। इसी परीक्षा के अवसर पर एक अप्रीतिकर घटना घट गई। जैसाकि उसके साथ सदा होता था, इ

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अध्याय 12: राजू उर्फ इन्द्रनाथ की याद

22 अगस्त 2023
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इसी समय सहसा एक दिन - पता लगा कि राजू कहीं चला गया है। फिर वह कभी नहीं लौटा। बहुत वर्ष बाद श्रीकान्त के रचियता ने लिखा, “जानता नहीं कि वह आज जीवित है या नहीं। क्योंकि वर्षों पहले एक दिन वह बड़े सुबह

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अध्याय 13: सृजिन का युग

22 अगस्त 2023
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इधर शरत् इन प्रवृत्तियों को लेकर व्यस्त था, उधर पिता की यायावर वृत्ति सीमा का उल्लंघन करती जा रही थी। घर में तीन और बच्चे थे। उनके पेट के लिए अन्न और शरीर के लिए वस्त्र की जरूरत थी, परन्तु इस सबके लि

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अध्याय 14: 'आलो' और ' छाया'

22 अगस्त 2023
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इसी समय निरुपमा की अंतरंग सखी, सुप्रसिद्ध भूदेव मुखर्जी की पोती, अनुपमा के रिश्ते का भाई सौरीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय भागलपुर पढ़ने के लिए आया। वह विभूति का सहपाठी था। दोनों में खूब स्नेह था। अक्सर आना-ज

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अध्याय 15 : प्रेम के अपार भूक

22 अगस्त 2023
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एक समय होता है जब मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं और अभीप्साएं मूर्त रूप लेना शुरू करती हैं। यदि बाधाएं मार्ग रोकती हैं तो अभिव्यक्ति के लिए वह कोई और मार्ग ढूंढ लेता है। ऐसी ही स्थिति में शरत् का जीवन च

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अध्याय 16: निरूद्देश्य यात्रा

22 अगस्त 2023
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गृहस्थी से शरत् का कभी लगाव नहीं रहा। जब नौकरी करता था तब भी नहीं, अब छोड़ दी तो अब भी नहीं। संसार के इस कुत्सित रूप से मुंह मोड़कर वह काल्पनिक संसार में जीना चाहता था। इस दुर्दान्त निर्धनता में भी उ

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अध्याय 17: जीवनमन्थन से निकला विष

24 अगस्त 2023
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घूमते-घूमते श्रीकान्त की तरह एक दिन उसने पाया कि आम के बाग में धुंआ निकल रहा है, तुरन्त वहां पहुंचा। देखा अच्छा-खासा सन्यासी का आश्रम है। प्रकाण्ड धूनी जल रही हे। लोटे में चाय का पानी चढ़ा हुआ है। एक

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अध्याय 18: बंधुहीन, लक्ष्यहीन प्रवास की ओर

24 अगस्त 2023
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इस जीवन का अन्त न जाने कहा जाकर होता कि अचानक भागलपुर से एक तार आया। लिखा था—तुम्हारे पिता की मुत्यु हो गई है। जल्दी आओ। जिस समय उसने भागलपुर छोड़ा था घर की हालत अच्छी नहीं थी। उसके आने के बाद स्थित

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" द्वितीय पर्व : दिशा की खोज" अध्याय 1: एक और स्वप्रभंग

24 अगस्त 2023
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श्रीकान्त की तरह जिस समय एक लोहे का छोटा-सा ट्रंक और एक पतला-सा बिस्तर लेकर शरत् जहाज़ पर पहुंचा तो पाया कि चारों ओर मनुष्य ही मनुष्य बिखरे पड़े हैं। बड़ी-बड़ी गठरियां लिए स्त्री बच्चों के हाथ पकड़े व

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अध्याय 2: सभ्य समाज से जोड़ने वाला गुण

24 अगस्त 2023
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वहां से हटकर वह कई व्यक्तियों के पास रहा। कई स्थानों पर घूमा। कई प्रकार के अनुभव प्राप्त किये। जैसे एक बार फिर वह दिशाहारा हो उठा हो । आज रंगून में दिखाई देता तो कल पेगू या उत्तरी बर्मा भाग जाता। पौं

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अध्याय 3: खोज और खोज

24 अगस्त 2023
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वह अपने को निरीश्वरवादी कहकर प्रचारित करता था, लेकिन सारे व्यसनों और दुर्गुणों के बावजूद उसका मन वैरागी का मन था। वह बहुत पढ़ता था । समाज विज्ञान, यौन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, दर्शन, कुछ भी तो नहीं छू

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अध्याय 4: वह अल्पकालिक दाम्पत्य जीवन

24 अगस्त 2023
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एक दिन क्या हुआ, सदा की तरह वह रात को देर से लौटा और दरवाज़ा खोलने के लिए धक्का दिया तो पाया कि भीतर से बन्द है । उसे आश्चर्य हुआ, अन्दर कौन हो सकता है । कोई चोर तो नहीं आ गया। उसने फिर ज़ोर से धक्का

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अध्याय 5: चित्रांगन

24 अगस्त 2023
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शरत् ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ के समान न केवल साहित्य में बल्कि संगीत और चित्रकला में भी रुचि ली थी । यद्यपि इन क्षेत्रों में उसकी कोई उपलब्धि नहीं है, पर इस बात के प्रमाण अवश्य उपलब्ध है

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अध्याय 6: इतनी सुंदर रचना किसने की ?

24 अगस्त 2023
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रंगून जाने से पहले शरत् अपनी सब रचनाएं अपने मित्रों के पास छोड़ गया था। उनमें उसकी एक लम्बी कहानी 'बड़ी दीदी' थी। वह सुरेन्द्रनाथ के पास थी। जाते समय वह कह गया था, “छपने की आवश्यकता नहीं। लेकिन छापना

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अध्याय 7: प्रेरणा के स्रोत

24 अगस्त 2023
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एक ओर अंतरंग मित्रों के साथ यह साहित्य - चर्चा चलती थी तो दूसरी और सर्वहारा वर्ग के जीवन में गहरे पैठकर वह व्यक्तिगत अभिज्ञता प्राप्त कर रहा था। इन्ही में से उसने अपने अनेक पात्रों को खोजा था। जब वह

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अध्याय 8: मोक्षदा से हिरण्मयी

24 अगस्त 2023
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शांति की मृत्यु के बाद शरत् ने फिर विवाह करने का विचार नहीं किया। आयु काफी हो चुकी थी । यौवन आपदाओं-विपदाओं के चक्रव्यूह में फंसकर प्रायः नष्ट हो गया था। दिन-भर दफ्तर में काम करता था, घर लौटकर चित्र

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अध्याय 9: गृहदाद

24 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' प्रायः समाप्ति पर था। 'नारी का इतिहास प्रबन्ध भी पूरा हो चुका था। पहली बार उसके मन में एक विचार उठा- क्यों न इन्हें प्रकाशित किया जाए। भागलपुर के मित्रों की पुस्तकें भी तो छप रही हैं। उनस

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अध्याय 10: हाँ , अब फिर लिखूंगा

24 अगस्त 2023
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गृहदाह के बाद वह कलकत्ता आया । साथ में पत्नी थी और था उसका प्यारा कुत्ता। अब वह कुत्ता लिए कलकत्ता की सड़कों पर प्रकट रूप में घूमता था । छोटी दाढ़ी, सिर पर अस्त-व्यस्त बाल, मोटी धोती, पैरों में चट्टी

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अध्याय 11: रामेर सुमित शरतेर सुमित

24 अगस्त 2023
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रंगून लौटकर शरत् ने एक कहानी लिखनी शुरू की। लेकिन योगेन्द्रनाथ सरकार को छोड़कर और कोई इस रहस्य को नहीं जान सका । जितनी लिख लेता प्रतिदिन दफ्तर जाकर वह उसे उन्हें सुनाता और वह सब काम छोड़कर उसे सुनते।

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अध्याय 12: सृजन का आवेग

24 अगस्त 2023
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‘रामेर सुमति' के बाद उसने 'पथ निर्देश' लिखना शुरू किया। पहले की तरह प्रतिदिन जितना लिखता जाता उतना ही दफ्तर में जाकर योगेन्द्रनाथ को पढ़ने के लिए दे देता। यह काम प्राय: दा ठाकुर की चाय की दुकान पर हो

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अध्याय 13: चरितहीन क्रिएटिंग अलामिर्ग सेंसेशन

25 अगस्त 2023
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छोटी रचनाओं के साथ-साथ 'चरित्रहीन' का सृजन बराबर चल रहा था और उसके प्रकाशन को 'लेकर काफी हलचल मच गई थी। 'यमुना के संपादक फणीन्द्रनाथ चिन्तित थे कि 'चरित्रहीन' कहीं 'भारतवर्ष' में प्रकाशित न होने लगे।

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अध्याय 14: ' भारतवर्ष' में ' दिराज बहू '

25 अगस्त 2023
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द्विजेन्द्रलाल राय शरत् के बड़े प्रशंसक थे। और वह भी अपनी हर रचना के बारे में उनकी राय को अन्तिम मानता था, लेकिन उन दिनों वे काव्य में व्यभिचार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे थे। इसलिए 'चरित्रहीन' को स्वी

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अध्याय 15 : विजयी राजकुमार

25 अगस्त 2023
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अगले वर्ष जब वह छः महीने की छुट्टी लेकर कलकत्ता आया तो वह आना ऐसा ही था जैसे किसी विजयी राजकुमार का लौटना उसके प्रशंसक और निन्दक दोनों की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन इस बार भी वह किसी मित्र के पास नहीं ठ

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अध्याय 16: नये- नये परिचय

25 अगस्त 2023
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' यमुना' कार्यालय में जो साहित्यिक बैठकें हुआ करती थीं, उन्हीं में उसका उस युग के अनेक साहित्यिकों से परिचय हुआ उनमें एक थे हेमेन्द्रकुमार राय वे यमुना के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल की सहायता करते थे। ए

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अध्याय 17: ' देहाती समाज ' और आवारा श्रीकांत

25 अगस्त 2023
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अचानक तार आ जाने के कारण शरत् को छुट्टी समाप्त होने से पहले ही और अकेले ही रंगून लौट जाना पड़ा। ऐसा लगता है कि आते ही उसने अपनी प्रसिद्ध रचना पल्ली समाज' पर काम करना शरू कर दिया था, लेकिन गृहिणी के न

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अध्याय 18: दिशा की खोज समाप्त

25 अगस्त 2023
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वह अब भी रंगून में नौकरी कर रहा था, लेकिन उसका मन वहां नहीं था । दफ्तर के बंधे-बंधाए नियमो के साथ स्वाधीन मनोवृत्ति का कोई मेल नही बैठता था। कलकत्ता से हरिदास चट्टोपाध्याय उसे बराबर नौकरी छोड़ देने क

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" तृतीय पर्व: दिशान्त " अध्याय 1: ' वह' से ' वे '

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत् ने कलकत्ता छोडकर रंगून की राह ली थी, उस समय वह तिरस्कृत, उपेक्षित और असहाय था। लेकिन अब जब वह तेरह वर्ष बाद कलकत्ता लौटा तो ख्यातनामा कथाशिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। वह अब 'वह'

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अध्याय 2: सृजन का स्वर्ण युग

25 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र के जीवन का स्वर्णयुग जैसे अब आ गया था। देखते-देखते उनकी रचनाएं बंगाल पर छा गई। एक के बाद एक श्रीकान्त" ! (प्रथम पर्व), 'देवदास' 2', 'निष्कृति" 3, चरित्रहीन' और 'काशीनाथ' पुस्तक रूप में प्रक

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अध्याय 3: आवारा श्रीकांत का ऐश्वर्य

25 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' के प्रकाशन के अगले वर्ष उनकी तीन और श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों के हाथों में थीं-स्वामी(गल्पसंग्रह - एकादश वैरागी सहित) - दत्ता 2 और श्रीकान्त ( द्वितीय पर्वों 31 उनकी रचनाओं ने जनता को ही इस प

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अध्याय 4: देश के मुक्ति का व्रत

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द्र लोकप्रियता की चरम सीमा पर थे, उसी समय उनके जीवन में एक और क्रांति का उदय हुआ । समूचा देश एक नयी करवट ले रहा था । राजनीतिक क्षितिज पर तेजी के साथ नयी परिस्थितियां पैदा हो रही थीं। ब

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अध्याय 5: स्वाधीनता का रक्तकमल

26 अगस्त 2023
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चर्खे में उनका विश्वास हो या न हो, प्रारम्भ में असहयोग में उनका पूर्ण विश्वास था । देशबन्धू के निवासस्थान पर एक दिन उन्होंने गांधीजी से कहा था, "महात्माजी, आपने असहयोग रूपी एक अभेद्य अस्त्र का आविष्क

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अध्याय 6: निष्कम्प दीपशिखा

26 अगस्त 2023
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उस दिन जलधर दादा मिलने आए थे। देखा शरत्चन्द्र मनोयोगपूर्वक कुछ लिख रहे हैं। मुख पर प्रसन्नता है, आखें दीप्त हैं, कलम तीव्र गति से चल रही है। पास ही रखी हुई गुड़गुड़ी की ओर उनका ध्यान नहीं है। चिलम की

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अध्याय 7: समाने समाने होय प्रणयेर विनिमय

26 अगस्त 2023
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शरत्चन्द्र इस समय आकण्ठ राजनीति में डूबे हुए थे। साहित्य और परिवार की ओर उनका ध्यान नहीं था। उनकी पत्नी और उनके सभी मित्र इस बात से बहुत दुखी थे। क्या हुआ उस शरतचन्द्र का जो साहित्य का साधक था, जो अड

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अध्याय 8: राजनीतिज्ञ अभिज्ञता का साहित्य

26 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र कभी नियमित होकर नहीं लिख सके। उनसे लिखाया जाता था। पत्र- पत्रिकाओं के सम्पादक घर पर आकर बार-बार धरना देते थे। बार-बार आग्रह करने के लिए आते थे। भारतवर्ष' के सम्पादक रायबहादुर जलधर सेन आते,

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अध्याय 9: लिखने का दर्द

26 अगस्त 2023
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अपनी रचनाओं के कारण शरत् बाबू विद्यार्थियों में विशेष रूप से लोकप्रिय थे। लेकिन विश्वविद्यालय और कालेजों से उनका संबंध अभी भी घनिष्ठ नहीं हुआ था। उस दिन अचानक प्रेजिडेन्सी कालेज की बंगला साहित्य सभा

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अध्याय 10: समिष्ट के बीच

26 अगस्त 2023
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किसी पत्रिका का सम्पादन करने की चाह किसी न किसी रूप में उनके अन्तर में बराबर बनी रही। बचपन में भी यह खेल वे खेल चुके थे, परन्तु इस क्षेत्र में यमुना से अधिक सफलता उन्हें कभी नहीं मिली। अपने मित्र निर

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अध्याय 11: आवारा जीवन की ललक

26 अगस्त 2023
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राजनीतिक क्षेत्र में इस समय अपेक्षाकृत शान्ति थी । सविनय अवज्ञा आन्दोलन जैसा उत्साह अब शेष नहीं रहा था। लेकिन गांव का संगठन करने और चन्दा इकट्ठा करने में अभी भी वे रुचि ले रहे थे। देशबन्धु का यश ओर प

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अध्याय 12: ' हमने ही तोह उन्हें समाप्त कर दिया '

26 अगस्त 2023
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देशबन्धु की मृत्यु के बाद शरत् बाबू का मन राजनीति में उतना नहीं रह गया था। काम वे बराबर करते रहे, पर मन उनका बार-बार साहित्य के क्षेत्र में लौटने को आतुर हो उठता था। यद्यपि वहां भी लिखने की गति पहले

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अध्याय 13: पथेर दाबी

26 अगस्त 2023
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जिस समय वे 'पथेर दाबी ' लिख रहे थे, उसी समय उनका मकान बनकर तैयार हो गया था । वे वहीं जाकर रहने लगे थे। वहां जाने से पहले लगभग एक वर्ष तक वे शिवपुर टाम डिपो के पास कालीकुमार मुकर्जी लेने में भी रहे थे

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अध्याय 14: रूप नारायण का विस्तार

26 अगस्त 2023
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गांव में आकर उनका जीवन बिलकुल ही बदल गया। इस बदले हुए जीवन की चर्चा उन्होंने अपने बहुत-से पत्रों में की है, “रूपनारायण के तट पर घर बनाया है, आरामकुर्सी पर पड़ा रहता हूं।" एक और पत्र में उन्होंने लिख

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अध्याय 15: देहाती शरत

26 अगस्त 2023
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गांव में रहने पर भी शहर छूट नहीं गया था। अक्सर आना-जाना होता रहता था। स्वास्थ्य बहुत अच्छा न होने के कारण कभी-कभी तो बहुत दिनों तक वहीं रहना पड़ता था । इसीलिए बड़ी बहू बार-बार शहर में मकान बना लेने क

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अध्याय 16: दायोनिसस शिवानी से वैष्णवी कमललता तक

26 अगस्त 2023
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किशोरावस्था में शरत् बात् ने अनेक नाटकों में अभिनय करके प्रशंसा पाई थी। उस समय जनता को नाटक देखने का बहुत शौक था, लेकिन भले घरों के लड़के मंच पर आयें, यह कोई स्वीकार करना नहीं चाहता था। शरत बाबू थे ज

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अध्याय 17: तुम में नाटक लिखने की शक्ति है

26 अगस्त 2023
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शरत साहित्य की रीढ़, नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण है। बार-बार अपने इसी दृष्टिकोण को उन्होंने स्पष्ट किया है। प्रसिद्धि के साथ-साथ उन्हें अनेक सभाओं में जाना पडता था और वहां प्रायः यही प्रश्न उनके साम

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अध्याय 18: नारी चरित्र के परम रहस्यज्ञाता

26 अगस्त 2023
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केवल नारी और विद्यार्थी ही नहीं दूसरे बुद्धिजीवी भी समय-समय पर उनको अपने बीच पाने को आतुर रहते थे। बड़े उत्साह से वे उनका स्वागत सम्मान करते, उन्हें नाना सम्मेलनों का सभापतित्व करने को आग्रहपूर्वक आ

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अध्याय 19: मैं मनुष्य को बहुत बड़ा करके मानता हूँ

26 अगस्त 2023
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चन्दन नगर की गोष्ठी में उन्होंने कहा था, “राजनीति में भाग लिया था, किन्तु अब उससे छुट्टी ले ली है। उस भीड़भाड़ में कुछ न हो सका। बहुत-सा समय भी नष्ट हुआ । इतना समय नष्ट न करने से भी तो चल सकता था । ज

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अध्याय 20: देश के तरुणों से में कहता हूँ

26 अगस्त 2023
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साधारणतया साहित्यकार में कोई न कोई ऐसी विशेषता होती है, जो उसे जनसाधारण से अलग करती है। उसे सनक भी कहा जा सकता है। पशु-पक्षियों के प्रति शरबाबू का प्रेम इसी सनक तक पहुंच गया था। कई वर्ष पूर्व काशी में

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अध्याय 21:  ऋषिकल्प

26 अगस्त 2023
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जब कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सत्तर वर्ष के हुए तो देश भर में उनकी जन्म जयन्ती मनाई गई। उस दिन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट, कलकत्ता में जो उद्बोधन सभा हुई उसके सभापति थे महामहोपाध्याय श्री हरिप्रसाद शास्त

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अध्याय 22: गुरु और शिष्य

27 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र 60 वर्ष के भी नहीं हुए थे, लेकिन स्वास्थ्य उनका बहुत खराब हो चुका था। हर पत्र में वे इसी बात की शिकायत करते दिखाई देते हैं, “म सरें दर्द रहता है। खून का दबाव ठीक नहीं है। लिखना पढ़ना बहुत क

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अध्याय 23: कैशोर्य का वह असफल प्रेम

27 अगस्त 2023
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शरत् बाबू की रचनाओं के आधार पर लिखे गये दो नाटक इसी युग में प्रकाशित हुए । 'विराजबहू' उपन्यास का नाट्य रूपान्तर इसी नाम से प्रकाशित हुआ। लेकिन दत्ता' का नाट्य रूपान्तर प्रकाशित हुआ 'विजया' के नाम से

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अध्याय 24: श्री अरविन्द का आशीर्वाद

27 अगस्त 2023
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गांव में रहते हुए शरत् बाबू को काफी वर्ष बीत गये थे। उस जीवन का अपना आनन्द था। लेकिन असुविधाएं भी कम नहीं थीं। बार-बार फौजदारी और दीवानी मुकदमों में उलझना पड़ता था। गांव वालों की समस्याएं सुलझाते-सुल

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अध्याय 25: तुब बिहंग ओरे बिहंग भोंर

27 अगस्त 2023
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राजनीति के क्षेत्र में भी अब उनका कोई सक्रिय योग नहीं रह गया था, लेकिन साम्प्रदायिक प्रश्न को लेकर उन्हें कई बार स्पष्ट रूप से अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिला। उन्होंने बार-बार नेताओं की आलोचना की

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अध्याय 26: अल्हाह.,अल्हाह.

27 अगस्त 2023
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सर दर्द बहुत परेशान कर रहा था । परीक्षा करने पर डाक्टरों ने बताया कि ‘न्यूरालाजिक' दर्द है । इसके लिए 'अल्ट्रावायलेट रश्मियां दी गई, लेकिन सब व्यर्थ । सोचा, सम्भवत: चश्मे के कारण यह पीड़ा है, परन्तु

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अध्याय 27: मरीज की हवा दो बदल

27 अगस्त 2023
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हिरण्मयी देवी लोगों की दृष्टि में शरत्चन्द्र की पत्नी थीं या मात्र जीवनसंगिनी, इस प्रश्न का उत्तर होने पर भी किसी ने उसे स्वीकार करना नहीं चाहा। लेकिन इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि उनके प्रति शरत् बा

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अध्याय 28: साजन के घर जाना होगा

27 अगस्त 2023
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कलकत्ता पहुंचकर भी भुलाने के इन कामों में व्यतिक्रम नहीं हुआ। बचपन जैसे फिर जाग आया था। याद आ रही थी तितलियों की, बाग-बगीचों की और फूलों की । नेवले, कोयल और भेलू की। भेलू का प्रसंग चलने पर उन्होंने म

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अध्याय 29: बेशुमार यादें

27 अगस्त 2023
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इसी बीच में एक दिन शिल्पी मुकुल दे डाक्टर माके को ले आये। उन्होंने परीक्षा करके कहा, "घर में चिकित्सा नहीं ही सकती । अवस्था निराशाजनक है। किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है। इन्हें तुरन्त नर्सिंग होम ले

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