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अध्याय 28: साजन के घर जाना होगा

27 अगस्त 2023

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कलकत्ता पहुंचकर भी भुलाने के इन कामों में व्यतिक्रम नहीं हुआ। बचपन जैसे फिर जाग आया था। याद आ रही थी तितलियों की, बाग-बगीचों की और फूलों की । नेवले, कोयल और भेलू की। भेलू का प्रसंग चलने पर उन्होंने मामा से कहा, "वह मेरे रक्त-मांस का अंश बन गया था। उससे पूर्व और उसके बाद कई आये और गये, किन्तु वह मानो मध्य की मणि था। मनुष्य को सबसे बड़ी सीख जीव-जन्तुओं से ही मिलती है, इसमें सन्देह नहीं।”

फिर बोले, "उस दिन तुमने छत पर कुंजवन लगाने की बात कही थी । तब सोचा था सब व्यर्थ है। परन्तु आज ग्लोब नर्सरी चलता हूं। यदि ज़िन्दा रहा तो निश्चय ही एक कुंजवन तैयार करूंगा।"

और वे नर्सरी गये, कई प्रकार के मौसमी फूलों के बीज खरीदे। गुलाब उन्हें सबसे अधिक प्रिय था। जिस समय वे दुकान पर खड़े मामा से बातें कर रहे थे तो एक अपरिचित युवक ने आकर उन्हें प्रणाम किया और कहा, "क्या आप मेरे स्टाल पर चलने की कृपा करेंगे? मैं आपको कुछ फूल देना चाहता हूं।”

शरत् बाबू बोले, "मुझे क्यों देना चाहते हो?"

"देकर मुझे सुख होगा इसलिए।”

"इतने लोग आते हैं, सबको देते हो क्या?" "सबको तो मैं नहीं पहचानता?”

"मुझे पहचानते हो?"

"बंगाल में आपको कौन नहीं पहचानता?”

खरीदारी करने में शरत् सदा उदार रहे। उनका तर्क था कि भगवान ने बुढ़ापे में इतना दिया है, इसे कहां रखूंगा?

गाड़ी में बैठे फूलों की प्रतीक्षा कर रहे थे कि कई कापियां हाथ में लिए एक वृद्ध मुसलमान ने आकर कहा, “इन्हें आपको खरीदना होगा।"

"क्यों?”

"क्योंकि घर में खाने को नहीं है। खाली हाथ नहीं जाऊंगा।”

“कितने पैसे देने होंगे?”

“एक रुपया।”

उसे दो रुपये देते हुए कहा, “एक रुपया मूल्य और दूसरा खुदा के नाम पर।”

प्रसन्न होकर वृद्ध ने कहा, “ज़िन्दे रहो बाबू साहब।”

सुनकर शरत् मुस्कराये होंगे, तब अंतर में बैठे शरत् ने कहा होगा, “यह ज़िन्दा रहने को ही तो कहता है। मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक ज़िन्दा रहूंगा।”

इधर इस प्रकार भुलाने का प्रयत्न कर रहे थे उधर जांच की व्यवस्था आरम्भ हो गई थी। देख-रेख कर रहे थे डा० कुमुदशंकर राय । सूचना पाकर डा० विधानचन्द्र राय भी आ गये। बोले, “आप कब वापस आये? और यह सब क्या है? अच्छा, ज़रा लेटो तो।”

लेटते हुए शरत् ने उत्तर दिया, “देश जाकर बहुत माछ खाये हैं। इसलिए कुछ पेप्सिया बढ़ गया है।”

डाक्टर बोले, “हजम नहीं कर पाते तो इतना क्यों खाते हो?”

शरत् ने कहा, “लोभ के कारण। एक-एक दिन में पांच-पांच, छह-छह तक तपसे माछ खाये हैं।”

डाक्टर बोले, “अच्छा काम नहीं किया। मुझे देकर खाते तो हजम हो जाते। "

परीक्षा करने के बाद कुछ देर बातें करते रहे। फिर जैसे आये थे वैसे ही चले गये । शरत् ने मामा से पूछा, “क्या बता गये हैं?"

“किंक किंकर्स!

यह शब्द समझ में नहीं आ रहा था। नरेन्द्र देव भी आ गये थे। डिक्शनरी देखनी पड़ी। पता लगा कि इसके अर्थ हैं आतों में कोई रुकावट । समझ गये कि केवल एक्स-रे कराने से ही काम नहीं चलेगा, आपरेशन भी कराना होगा ।

अब गांव लौट जाने का प्रश्न नहीं था। डाक्टर पर डाक्टर आने लगे और सलाह- मशविरा चलने लगा। उसके साथ ही ज्योतिष का प्रभाव भी बढ़ रहा था। उसी दिन नीलम की अंगूठी पहनी थी। बाद में प्रवाल की और आ गई। उन्होंने कहा, “मनुष्य पर जब संकट आता है तो वह बुरे संस्कारों का दास बन जाता है। यह देखो मेरी प्रवाल की अंगूठी। क्या होगा इससे? फिर भी...।”

मामा ने उत्तर दिया, “जैसे अस्वस्थ हो जाने पर डाक्टर को बुलाना कुसंस्कार नहीं है, वैसे ही ग्रहों के अप्रसन्न हो जाने पर प्रवाल धारण करना भी कोई बुरा संस्कार नहीं है।” चिरदिन के स्वेच्छाचारी शरत्चन्द्र ने इतना ही कहा, "दुख में पड़कर प्रवाल धारण किया है, पर मन विद्रोह करता है।"

इस छटपटाहट से मुक्ति पाने के प्रयत्न में वैरागी मन अतिशय चंचल हो उठा। कभी फूलों को लेकर व्यस्त हो उठने तो कभी सोचते कि नई गाड़ी खरीदकर भागलपुर घूम आया जाए। उस दिन बाज़ार में एक मोर देखा तो खरीद लाये। बकरी का दूध सहज सुपाच्या होता है। रोगी के लिए ठीक रहेगा। इसलिए स्वयं बाज़ार जाकर एक बकरी देखी। मूल्य था चालीस रुपये। चार सेर दूध देने की बात थी। आश्चर्य, वह बकरीवाला भी उन्हें पहचानता था। 

सुरेन्द्र मामा के कान में उसने कहा, “यह कहानियां लिखते है न? मैंने इनकी तस्वीर देखी है। इनके लिए मैं बीस रुपये में दे दूंगा।”

लेकिन बड़ी अद्भुत थी वह बकरी । अपना दूध स्वयं पी जाती थी। बड़ी बहू गांव से आ गई थीं। किसी ने उनसे कहा, “अपना दूध पी जाने वाली बकरी यदि घर में रहती है तो स्वामी या स्वामिनी किसी एक की मृत्यु हो जाती है।

तब बड़ी बहू ने वह शोर मचाया कि उसे विदा करने के सिवाय और कोई चारा नहीं रहा। लेकिन इससे उनकी खरीदारी में कोई अन्तर नहीं पड़ा था, और इसीलिए बगीचा दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रहा था। दूसरी ओर एक्स-रे की व्यवस्था भी चल रही थी । अन्त में पता लगा कि जिगर में कैंसर है जो बढ़ते-बढ़ते पाकस्थली तक पहुंच गया है।

यह मृत्युदण्ड की स्पष्ट घोषणा थी । मृत्यु की पदचाप वे बहुत पहले से सुनते आ रहे थे। जिस दिन वे कलकत्ता आये उसी दिन अखबार पढ़ते-पढ़ते स्तब्ध रह गये । मुख विवर्ण हो आया। मामा ने देखकर पूछा, “क्या हुआ शरत्?”

"सर जगदीशचन्द्र बसु की मृत्यु हो गई। उनका हृदय दुर्बल था। इस बार मेरी बारी है । " 

"यह कौन सा तर्क हुआ?”

"तर्क नहीं इन्ट्यूशन है?”

“उनकी तो आयु पूरी हो गई थी। तुम उनके सामने बच्चे हो ।”

शरत् ने कहा, "मेरा हृदय ठीक है, लेकिन खराब होते क्या देर लगती है?”

बड़े दिन की छुट्टियां पास आ गई थीं। इन दिनों मद्रास में डाक्टरों का एक बड़ा सम्मेलन था। उनकी बड़ी इच्छा थी कि वहां जाने से पहले डाक्टर लोग उनके बारे में कोई निर्णय कर लें। विधान बाबू, ललित बाबू, कुमुद बाबू- तीनों डाक्टर देखने आए। निश्चय हुआ कि आपरेशन करना होगा । शरत्चन्द्र ने विधानचन्द्र राय से कहा, “आपरेशन यदि होना ही है तो आप करेंगे। यदि मरूंगा तो आपके हाथों से।”

हंसकर विधानचन्द्र राय ने उत्तर दिया, "लेट जाओ, काम पूरा करके ही जाऊंगा।”

और फिर घर के कोने में रखी इस्पात की सुन्दर कुल्हाड़ी उठा लाये। बोले, "मै तैयार

सब ठहाका मारकर हंस पड़े। लेकिन आपरेशन करना तुरन्त सम्भव नहीं हो सका । यह निश्चित हुआ था कि डाक्टर ललितमोहन आपरेशन करेंगे, लेकिन उनकी फीस हज़ार- बारह सौ रुपये से कम नहीं थी । शरत् बाबू इतना देने में असमर्थ थे। इसलिए डाक्टर लोग उन्हें उसी अवस्था में छोड़कर मद्रास चले गये। पीछे रह गये डाक्टर दासगुप्ता, जो लेटे-मोटे प्रयोग करके रोग की तीव्रता को कम करने का प्रयत्न करने लगे।

शरतचन्द्र ने एक दिन डाक्टर कुमुदशंकर से भी कहा था, “आपरेशन यदि करना है तो और परीक्षा करने की ज़ुरूरत नहीं है। मैं कल ही तैयार हूं। मामा को साथ लेकर तुम्हारे यहां पहुंच जाऊंगा। तुम्हीं आपरेशन कर दो। अच्छी तरह जानता हूं कि तुम्हारे समान दक्ष डाक्टर कलकत्ता में नहीं है। तुम्हें अपने ऊपर जितना विस्वास है उसे देखकर मैं चकित रह गया हूं। मैं कोई स्त्री नहीं हूं। मेज़ पर मर जाने की भी कोई सम्भावना नहीं है, और हो तो मैं लिखकर दे सकता हूं। किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है।”

कुमुदशंकर मूर्तिवत् चुपचाप बैठे रहे। शरत् ने कहा, “कुछ तो बोलो, "मैं नहीं कर सकता।”

, कुमुद!”

"कमुद, यह काम तुमको छोड़कर और कोई नहीं कर सकेगा। तुमने अपने लड़के का आपरेशन भी तो किया था।”

"मेरे लड़के और आपमें बहुत अन्तर है। एक लड़का गया तो दूसरा हो सकता है, किन्तु एक शरत्चन्द्र के जाने पर दूसरा नहीं हो सकता।”

जैसे-जैस मृत्यु पास आ रही थी वैसे-वैसे ही खाने की तृष्णा भी बढ़ रही थी। उस दिन डाक्टर दासगुप्ता की लेबोरेटरी में काफी देर हो गई। शरत् बाबू ने कहा, “देर हो गई। कुछ खाकर नहीं आया हूं। तुम्हारे यहां भोग नहीं होगा क्या? देशबन्धु के साथ तुम्हारे घर खाया था। कितने दिन हो गए उन बातों को।”

डाक्टर दासगुप्ता ने कहा, अभी ओटमिल की व्यवस्था हो जाती है, वही आपके लिए उपयोगी है।”

शरत् ने मामा की ओर देखा और कहा, “सुरेन्द्र, इसीको शनीचर कहते हैं।”

पेट में कौन-कौन सा रस किस मिकदार में है, स्टमक - पम्प द्वारा इसकी भी जांच की गई लेकिन उनकी भूख कम नही हुई। डाक्टरों ने आदेश दिया था कि वे केवल कम मीठे वाले सन्देश खा सकते हैं, लेकिन उनका मन करता था मटर की कचौड़ी जैसी स्वादिष्ट चीज़ खाने को। गांव लौट जाने की व्याकुलता भी कम नहीं थी, लेकिन जाना क्या सम्भव था?

कुशल पूछने के लिए मित्रों का तांता लगा रहता था। एक दिन असमंजस मुखोपाध्याय आये। देखा, वही घर, वही द्वार, वही दालान, वही सामने का बगीचा, लेकिन सब कुछ निरानन्द। कुछ दिन पहले तक उन सबमें प्राणों का उत्साह था, माधुर्य का स्पर्श था, लेकिन अब वहां पर मानो प्राणहीनता की एक निष्करुण हवा चल रही है। व्यथित मन वे अन्दर जाकर खड़े हो गए। वह मनहूस स्तब्धता बार-बार लौट जाने को कहती थी, लेकिन बिना मिले कैसे लौट सकते थे! कॉल बेल बजाने पर सुरेन्द्रनाथ नीचे आये। जो समाचार उन्होंने दिया वह अच्छा नहीं था। तुरन्त ही वह शरत् बाबू को खबर देने के लिये चले गए। फिर लौटकर कहा, “अभी आ रहे हैं।"

असमंजस बाबू बोले, "न, उनके आने की ज़रूरत नहीं है, मैं स्वयं ऊपर आ रहा हूं।” लेकिन वे ऊपर जाने के लिए उठ पाते कि तभी चिर-परिचित पदचाप सुनाई दी। देखा शरत्चन्द्र ही हैं। अत्यन्त रुग्ण अवस्था, निर्जीव की तरह आकर आरामकुर्सी पर गिर पड़े।

असमंजस बाबू ने कहा, “यह आपने क्या अनर्थ किया? आपको इस तरह नहीं आना चाहिए था । "

शरत् बाबू ने उत्तर दिया, "तुमको आने के लिए तुम्हारे लड़के से कहा था। तुम आये हो, यह सुनकर मैं कैसे नहीं आता? और मरना तो एक दिन सबको होगा ही। उसके लिए दुख कैसा?"

ऐसा लगा मानो श्रीकान्त बोल रहा हो। इन्द्रनाथ का प्रिय शिष्य और बन्धु श्रीकान्त । एक दिन फिर कुछ और मित्र आ गये। सभी जानते थे कि मृत्यु निश्चित है। फिर भी सांत्वना देने का प्रयत्न करते थे। उस दिन 23 दिसम्बर का दिन था, मित्र ने कहा, “निश्चय ही आप ठीक हो जाएंगे।”

रोग से आक्रांत मलिन मुख पर हास्य की रेखा फूट आई। कहा, "मेरी एक बात याद रखना। 22 जनवरी को मुझे याद करना। याद रहेगा न?”

मानो उन्होंने स्पष्ट कहा हो कि 23 जनवरी को जीवित नहीं रहेंगे। उन्हें जाने की चिन्ता नहीं थी लेकिन जो पास थे, उनके प्रिय थे, उनकी चिन्ता का पार नहीं था। उन्हीं में थे उमाप्रसाद मुकर्जी। अचानक उन्हें एक हफ्ते के लिए बाहर जाना पड़ा। जाने से पूर्व उन्होंने शरत् बाबू से आज्ञा चाही। उन्होंने कहा, “तुम कुछ दिन के लिए जा सकते हो। इन दिनों आपरेशन की सम्भावना नहीं है। डाक्टर कुमुद भी बाहर जा रहे हैं। चिट्ठी से तुम्हें सब समाचार मिलते रहेंगे। आवश्यकता हुई तो बुलाने के लिए लिखवा दूंगा।”

उमाप्रसाद चले गये। जाते समय उन्होंने मामा सुरेन्द्रनाथ से कहा, “मुझे चिट्ठी लिखते रहिए ।"

25 दिसम्बर को सुरेन्द्रनाथ ने लिखा-

"सवेरे के पांच बजे ।

.. उस दिन कुमुद बाबू की लेबोरेटरी में शरत् की परीक्षा हुई थी और सुबोध बाबू एक्स-रे करने के लिए राज़ी भी हैं। अगले दिन सवेरे उनके घर गया। सब कुछ विस्तार से जानना चाहता था। लेकिन वह तो डाक्टर के अतिरिक्त किसी और को कुछ बताना नहीं चाहते थे।

“दो दिन शरत् ने खूब खाया। उससे और भी दुर्बल हो गये हैं। कल संध्या को हठात् उनकी अवस्था बिगड़ती हुई जान पड़ी। कुमुद बाबू तो है नहीं, और वह किसी दूसरे डाक्टर को बुलाने नहीं देते। बस ढेर सारी कालीफाँस और अफीम के सहारे किसी तरह चल रहा हे।

.. कल एक नर्सिंग होम ठीक किया है। पार्क स्ट्रीट में सुशील चटर्जी है। सौभाग्य से वे मेरी भांजी के लड़के हैं। जान पड़ता है, शुक्रवार 31 दिसम्बर को वहां जाना होगा। “आज सवेरे साढ़े सात बजे डाक्टर दासगुप्त के साथ सुबोध बाबू के पास जाऊंगा। अब तक इतना ही। लौटकर जो बात होगी, लिखूंगा। आप मुझपर भरोसा करके यहां से गये हैं। यदि दो-चार दिन में आ सकते हों तो बड़ा अच्छा रहेगा। आशा करता हूं, आ सकेंगे। 30 तारीख तक लौट आइए ।

“साढ़े दस बजे ।

“सुबोध बाबू आज साढ़े छ: बजे आएंगे। आज से वे रोगी का चार्ज ले लेगे।” दो दिन बाद फिर लिखा-

“27-12-1937, समय दस बजे ।

“कल चिट्ठी नहीं लिख सका। आज सवेरे सब शान्ति से आरम्भ हुआ। इसलिए डर लगता है। इस समय मूड़ी के साथ तमाखू पीना चल रहा है। मूड़ी खाने की आशा नहीं है। केवल खाने की इच्छा पूरी होगी, इसीलिए डाक्टर मना नहीं करते। कल सोने के लिए साढ़े बारह बज गये थे।

“अब डूश देते-देते जान पड़ता है बारह बजे जाएंगे। उसके बाद ऑलिव आयल की मालिश होगी। उसके बाद ग्लूकोज़ दिया जाएगा। पहले रेक्टम से, उसके बाद इन्ट्रावीनस इन्जेक्शन द्वारा। इस बीच में एक स्ट्रीकनिन समय के अनुसार दी जाएगी। पेट में मुख के द्वारा कोई खाना पहुंचाना सम्भव नहीं है। यहां तक कि विनकारनिस भी नहीं। मुंह से खाने से केवल कष्ट ही होता है । किन्तु मन की शान्ति के लिए ही ऐसा किया जाता है। रात देर से काम आरम्भ हुआ। ऑलिव आयल मलना, फिर रेक्टम द्वारा तीन औंस देना । अन्त में सोते- सोते रात में कहा, 'एक गाना सुनो शेष पाराणीर कड़ी आमी कण्ठे निलाम गान......मेरे बहुत दिनों के बन्धू को इसीलिए गाना सुनाता हूं।'

“ शेष सब ठीक है। मैंने पहले आपको आने के लिए लिखा था। अब फिर ज़ोर देकर कहना चाहता हूं।”

उमाप्रसाद चिट्ठी पाकर तुरन्त कलकत्ता लौट आये। 

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रचनाएँ
आवारा मसीहा
5.0
मूल हिंदी में प्रकाशन के समय से 'आवारा मसीहा' तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा ' पाब्लो नेरुदा सम्मान' के अतिरिक्त बंग साहित्य सम्मेलन तथा कलकत्ता की शरत समिति द्वारा प्रदत्त 'शरत मेडल', उ. प्र. हिंदी संस्थान, महाराष्ट्र तथा हरियाणा की साहित्य अकादमियों और अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें हार्दिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। अंग्रेजी, बांग्ला, मलयालम, पंजाबी, सिन्धी , और उर्दू में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथा तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। शरतचंद्र भारत के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएं लांघकर सच्चे मायनों में अखिल भारतीय हो गया। उन्हें बंगाल में जितनी ख्याति और लोकप्रियता मिली, उतनी ही हिंदी में तथा गुजराती, मलयालम तथा अन्य भाषाओं में भी मिली। उनकी रचनाएं तथा रचनाओं के पात्र देश-भर की जनता के मानो जीवन के अंग बन गए। इन रचनाओं तथा पात्रों की विशिष्टता के कारण लेखक के अपने जीवन में भी पाठक की अपार रुचि उत्पन्न हुई परंतु अब तक कोई भी ऐसी सर्वांगसंपूर्ण कृति नहीं आई थी जो इस विषय पर सही और अधिकृत प्रकाश डाल सके। इस पुस्तक में शरत के जीवन से संबंधित अंतरंग और दुर्लभ चित्रों के सोलह पृष्ठ भी हैं जिनसे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। बांग्ला में यद्यपि शरत के जीवन पर, उसके विभिन्न पक्षों पर बीसियों छोटी-बड़ी कृतियां प्रकाशित हुईं, परंतु ऐसी समग्र रचना कोई भी प्रकाशित नहीं हुई थी। यह गौरव पहली बार हिंदी में लिखी इस कृति को प्राप्त हुआ है।
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भूमिका

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भूमिका : पहले संस्करण की

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तीसरे संस्करण की भूमिका

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लगभग साढ़े तीन वर्ष में 'आवारा मसीहा' के दो संस्करण समाप्त हो गए - यह तथ्य शरद बाबू के प्रति हिन्दी भाषाभाषी जनता की आस्था का ही परिचायक है, विशेष रूप से इसलिए कि आज के महंगाई के युग में पैंतालीस या,

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" प्रथम पर्व : दिशाहारा " अध्याय 1 : विदा का दर्द

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अध्याय 3: राजू उर्फ इन्दरनाथ से परिचय

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अध्याय 4: वंश का गौरव

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जिस समय शरत्चन्द का जन्म हुआ क वह चहुंमुखी जागृति और प्रगति का का था। सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम की असफलता और सरकार के तीव्र दमन के कारण कुछ दिन शिथिलता अवश्य दिखाई दी थी, परन्तु वह तूफान से पूर्व

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शरत जब दूसरी बार भागलपुर लौटा तो यह दलबन्दी चरम सीमा पर थी। कट्टरपन्थी लोगों के विरोध में जो दल सामने आया उसके नेता थे राजा शिवचन्द्र बन्दोपाध्याय बहादुर । दरिद्र घर में जन्म लेकर भी उन्होंने तीक्ष्ण

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उस वर्ष वह परीक्षा में भी नहीं बैठ सका था। जो विद्यार्थी टेस्ट परीक्षा में उत्तीर्ण होते थे उन्हीं को अनुमति दी जाती थी। इसी परीक्षा के अवसर पर एक अप्रीतिकर घटना घट गई। जैसाकि उसके साथ सदा होता था, इ

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इसी समय सहसा एक दिन - पता लगा कि राजू कहीं चला गया है। फिर वह कभी नहीं लौटा। बहुत वर्ष बाद श्रीकान्त के रचियता ने लिखा, “जानता नहीं कि वह आज जीवित है या नहीं। क्योंकि वर्षों पहले एक दिन वह बड़े सुबह

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इधर शरत् इन प्रवृत्तियों को लेकर व्यस्त था, उधर पिता की यायावर वृत्ति सीमा का उल्लंघन करती जा रही थी। घर में तीन और बच्चे थे। उनके पेट के लिए अन्न और शरीर के लिए वस्त्र की जरूरत थी, परन्तु इस सबके लि

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इसी समय निरुपमा की अंतरंग सखी, सुप्रसिद्ध भूदेव मुखर्जी की पोती, अनुपमा के रिश्ते का भाई सौरीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय भागलपुर पढ़ने के लिए आया। वह विभूति का सहपाठी था। दोनों में खूब स्नेह था। अक्सर आना-ज

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एक समय होता है जब मनुष्य की आशाएं, आकांक्षाएं और अभीप्साएं मूर्त रूप लेना शुरू करती हैं। यदि बाधाएं मार्ग रोकती हैं तो अभिव्यक्ति के लिए वह कोई और मार्ग ढूंढ लेता है। ऐसी ही स्थिति में शरत् का जीवन च

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गृहस्थी से शरत् का कभी लगाव नहीं रहा। जब नौकरी करता था तब भी नहीं, अब छोड़ दी तो अब भी नहीं। संसार के इस कुत्सित रूप से मुंह मोड़कर वह काल्पनिक संसार में जीना चाहता था। इस दुर्दान्त निर्धनता में भी उ

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अध्याय 5: चित्रांगन

24 अगस्त 2023
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शरत् ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ के समान न केवल साहित्य में बल्कि संगीत और चित्रकला में भी रुचि ली थी । यद्यपि इन क्षेत्रों में उसकी कोई उपलब्धि नहीं है, पर इस बात के प्रमाण अवश्य उपलब्ध है

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अध्याय 6: इतनी सुंदर रचना किसने की ?

24 अगस्त 2023
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रंगून जाने से पहले शरत् अपनी सब रचनाएं अपने मित्रों के पास छोड़ गया था। उनमें उसकी एक लम्बी कहानी 'बड़ी दीदी' थी। वह सुरेन्द्रनाथ के पास थी। जाते समय वह कह गया था, “छपने की आवश्यकता नहीं। लेकिन छापना

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अध्याय 7: प्रेरणा के स्रोत

24 अगस्त 2023
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एक ओर अंतरंग मित्रों के साथ यह साहित्य - चर्चा चलती थी तो दूसरी और सर्वहारा वर्ग के जीवन में गहरे पैठकर वह व्यक्तिगत अभिज्ञता प्राप्त कर रहा था। इन्ही में से उसने अपने अनेक पात्रों को खोजा था। जब वह

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अध्याय 8: मोक्षदा से हिरण्मयी

24 अगस्त 2023
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शांति की मृत्यु के बाद शरत् ने फिर विवाह करने का विचार नहीं किया। आयु काफी हो चुकी थी । यौवन आपदाओं-विपदाओं के चक्रव्यूह में फंसकर प्रायः नष्ट हो गया था। दिन-भर दफ्तर में काम करता था, घर लौटकर चित्र

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अध्याय 9: गृहदाद

24 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' प्रायः समाप्ति पर था। 'नारी का इतिहास प्रबन्ध भी पूरा हो चुका था। पहली बार उसके मन में एक विचार उठा- क्यों न इन्हें प्रकाशित किया जाए। भागलपुर के मित्रों की पुस्तकें भी तो छप रही हैं। उनस

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अध्याय 10: हाँ , अब फिर लिखूंगा

24 अगस्त 2023
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गृहदाह के बाद वह कलकत्ता आया । साथ में पत्नी थी और था उसका प्यारा कुत्ता। अब वह कुत्ता लिए कलकत्ता की सड़कों पर प्रकट रूप में घूमता था । छोटी दाढ़ी, सिर पर अस्त-व्यस्त बाल, मोटी धोती, पैरों में चट्टी

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अध्याय 11: रामेर सुमित शरतेर सुमित

24 अगस्त 2023
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रंगून लौटकर शरत् ने एक कहानी लिखनी शुरू की। लेकिन योगेन्द्रनाथ सरकार को छोड़कर और कोई इस रहस्य को नहीं जान सका । जितनी लिख लेता प्रतिदिन दफ्तर जाकर वह उसे उन्हें सुनाता और वह सब काम छोड़कर उसे सुनते।

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अध्याय 12: सृजन का आवेग

24 अगस्त 2023
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‘रामेर सुमति' के बाद उसने 'पथ निर्देश' लिखना शुरू किया। पहले की तरह प्रतिदिन जितना लिखता जाता उतना ही दफ्तर में जाकर योगेन्द्रनाथ को पढ़ने के लिए दे देता। यह काम प्राय: दा ठाकुर की चाय की दुकान पर हो

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अध्याय 13: चरितहीन क्रिएटिंग अलामिर्ग सेंसेशन

25 अगस्त 2023
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छोटी रचनाओं के साथ-साथ 'चरित्रहीन' का सृजन बराबर चल रहा था और उसके प्रकाशन को 'लेकर काफी हलचल मच गई थी। 'यमुना के संपादक फणीन्द्रनाथ चिन्तित थे कि 'चरित्रहीन' कहीं 'भारतवर्ष' में प्रकाशित न होने लगे।

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अध्याय 14: ' भारतवर्ष' में ' दिराज बहू '

25 अगस्त 2023
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द्विजेन्द्रलाल राय शरत् के बड़े प्रशंसक थे। और वह भी अपनी हर रचना के बारे में उनकी राय को अन्तिम मानता था, लेकिन उन दिनों वे काव्य में व्यभिचार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे थे। इसलिए 'चरित्रहीन' को स्वी

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अध्याय 15 : विजयी राजकुमार

25 अगस्त 2023
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अगले वर्ष जब वह छः महीने की छुट्टी लेकर कलकत्ता आया तो वह आना ऐसा ही था जैसे किसी विजयी राजकुमार का लौटना उसके प्रशंसक और निन्दक दोनों की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन इस बार भी वह किसी मित्र के पास नहीं ठ

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अध्याय 16: नये- नये परिचय

25 अगस्त 2023
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' यमुना' कार्यालय में जो साहित्यिक बैठकें हुआ करती थीं, उन्हीं में उसका उस युग के अनेक साहित्यिकों से परिचय हुआ उनमें एक थे हेमेन्द्रकुमार राय वे यमुना के सम्पादक फणीन्द्रनाथ पाल की सहायता करते थे। ए

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अध्याय 17: ' देहाती समाज ' और आवारा श्रीकांत

25 अगस्त 2023
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अचानक तार आ जाने के कारण शरत् को छुट्टी समाप्त होने से पहले ही और अकेले ही रंगून लौट जाना पड़ा। ऐसा लगता है कि आते ही उसने अपनी प्रसिद्ध रचना पल्ली समाज' पर काम करना शरू कर दिया था, लेकिन गृहिणी के न

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अध्याय 18: दिशा की खोज समाप्त

25 अगस्त 2023
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वह अब भी रंगून में नौकरी कर रहा था, लेकिन उसका मन वहां नहीं था । दफ्तर के बंधे-बंधाए नियमो के साथ स्वाधीन मनोवृत्ति का कोई मेल नही बैठता था। कलकत्ता से हरिदास चट्टोपाध्याय उसे बराबर नौकरी छोड़ देने क

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" तृतीय पर्व: दिशान्त " अध्याय 1: ' वह' से ' वे '

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत् ने कलकत्ता छोडकर रंगून की राह ली थी, उस समय वह तिरस्कृत, उपेक्षित और असहाय था। लेकिन अब जब वह तेरह वर्ष बाद कलकत्ता लौटा तो ख्यातनामा कथाशिल्पी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। वह अब 'वह'

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अध्याय 2: सृजन का स्वर्ण युग

25 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र के जीवन का स्वर्णयुग जैसे अब आ गया था। देखते-देखते उनकी रचनाएं बंगाल पर छा गई। एक के बाद एक श्रीकान्त" ! (प्रथम पर्व), 'देवदास' 2', 'निष्कृति" 3, चरित्रहीन' और 'काशीनाथ' पुस्तक रूप में प्रक

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अध्याय 3: आवारा श्रीकांत का ऐश्वर्य

25 अगस्त 2023
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'चरित्रहीन' के प्रकाशन के अगले वर्ष उनकी तीन और श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों के हाथों में थीं-स्वामी(गल्पसंग्रह - एकादश वैरागी सहित) - दत्ता 2 और श्रीकान्त ( द्वितीय पर्वों 31 उनकी रचनाओं ने जनता को ही इस प

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अध्याय 4: देश के मुक्ति का व्रत

25 अगस्त 2023
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जिस समय शरत्चन्द्र लोकप्रियता की चरम सीमा पर थे, उसी समय उनके जीवन में एक और क्रांति का उदय हुआ । समूचा देश एक नयी करवट ले रहा था । राजनीतिक क्षितिज पर तेजी के साथ नयी परिस्थितियां पैदा हो रही थीं। ब

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अध्याय 5: स्वाधीनता का रक्तकमल

26 अगस्त 2023
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चर्खे में उनका विश्वास हो या न हो, प्रारम्भ में असहयोग में उनका पूर्ण विश्वास था । देशबन्धू के निवासस्थान पर एक दिन उन्होंने गांधीजी से कहा था, "महात्माजी, आपने असहयोग रूपी एक अभेद्य अस्त्र का आविष्क

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अध्याय 6: निष्कम्प दीपशिखा

26 अगस्त 2023
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उस दिन जलधर दादा मिलने आए थे। देखा शरत्चन्द्र मनोयोगपूर्वक कुछ लिख रहे हैं। मुख पर प्रसन्नता है, आखें दीप्त हैं, कलम तीव्र गति से चल रही है। पास ही रखी हुई गुड़गुड़ी की ओर उनका ध्यान नहीं है। चिलम की

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अध्याय 7: समाने समाने होय प्रणयेर विनिमय

26 अगस्त 2023
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शरत्चन्द्र इस समय आकण्ठ राजनीति में डूबे हुए थे। साहित्य और परिवार की ओर उनका ध्यान नहीं था। उनकी पत्नी और उनके सभी मित्र इस बात से बहुत दुखी थे। क्या हुआ उस शरतचन्द्र का जो साहित्य का साधक था, जो अड

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अध्याय 8: राजनीतिज्ञ अभिज्ञता का साहित्य

26 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र कभी नियमित होकर नहीं लिख सके। उनसे लिखाया जाता था। पत्र- पत्रिकाओं के सम्पादक घर पर आकर बार-बार धरना देते थे। बार-बार आग्रह करने के लिए आते थे। भारतवर्ष' के सम्पादक रायबहादुर जलधर सेन आते,

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अध्याय 9: लिखने का दर्द

26 अगस्त 2023
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अपनी रचनाओं के कारण शरत् बाबू विद्यार्थियों में विशेष रूप से लोकप्रिय थे। लेकिन विश्वविद्यालय और कालेजों से उनका संबंध अभी भी घनिष्ठ नहीं हुआ था। उस दिन अचानक प्रेजिडेन्सी कालेज की बंगला साहित्य सभा

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अध्याय 10: समिष्ट के बीच

26 अगस्त 2023
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किसी पत्रिका का सम्पादन करने की चाह किसी न किसी रूप में उनके अन्तर में बराबर बनी रही। बचपन में भी यह खेल वे खेल चुके थे, परन्तु इस क्षेत्र में यमुना से अधिक सफलता उन्हें कभी नहीं मिली। अपने मित्र निर

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अध्याय 11: आवारा जीवन की ललक

26 अगस्त 2023
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राजनीतिक क्षेत्र में इस समय अपेक्षाकृत शान्ति थी । सविनय अवज्ञा आन्दोलन जैसा उत्साह अब शेष नहीं रहा था। लेकिन गांव का संगठन करने और चन्दा इकट्ठा करने में अभी भी वे रुचि ले रहे थे। देशबन्धु का यश ओर प

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अध्याय 12: ' हमने ही तोह उन्हें समाप्त कर दिया '

26 अगस्त 2023
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देशबन्धु की मृत्यु के बाद शरत् बाबू का मन राजनीति में उतना नहीं रह गया था। काम वे बराबर करते रहे, पर मन उनका बार-बार साहित्य के क्षेत्र में लौटने को आतुर हो उठता था। यद्यपि वहां भी लिखने की गति पहले

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अध्याय 13: पथेर दाबी

26 अगस्त 2023
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जिस समय वे 'पथेर दाबी ' लिख रहे थे, उसी समय उनका मकान बनकर तैयार हो गया था । वे वहीं जाकर रहने लगे थे। वहां जाने से पहले लगभग एक वर्ष तक वे शिवपुर टाम डिपो के पास कालीकुमार मुकर्जी लेने में भी रहे थे

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अध्याय 14: रूप नारायण का विस्तार

26 अगस्त 2023
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गांव में आकर उनका जीवन बिलकुल ही बदल गया। इस बदले हुए जीवन की चर्चा उन्होंने अपने बहुत-से पत्रों में की है, “रूपनारायण के तट पर घर बनाया है, आरामकुर्सी पर पड़ा रहता हूं।" एक और पत्र में उन्होंने लिख

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अध्याय 15: देहाती शरत

26 अगस्त 2023
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गांव में रहने पर भी शहर छूट नहीं गया था। अक्सर आना-जाना होता रहता था। स्वास्थ्य बहुत अच्छा न होने के कारण कभी-कभी तो बहुत दिनों तक वहीं रहना पड़ता था । इसीलिए बड़ी बहू बार-बार शहर में मकान बना लेने क

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अध्याय 16: दायोनिसस शिवानी से वैष्णवी कमललता तक

26 अगस्त 2023
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किशोरावस्था में शरत् बात् ने अनेक नाटकों में अभिनय करके प्रशंसा पाई थी। उस समय जनता को नाटक देखने का बहुत शौक था, लेकिन भले घरों के लड़के मंच पर आयें, यह कोई स्वीकार करना नहीं चाहता था। शरत बाबू थे ज

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अध्याय 17: तुम में नाटक लिखने की शक्ति है

26 अगस्त 2023
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शरत साहित्य की रीढ़, नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण है। बार-बार अपने इसी दृष्टिकोण को उन्होंने स्पष्ट किया है। प्रसिद्धि के साथ-साथ उन्हें अनेक सभाओं में जाना पडता था और वहां प्रायः यही प्रश्न उनके साम

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अध्याय 18: नारी चरित्र के परम रहस्यज्ञाता

26 अगस्त 2023
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केवल नारी और विद्यार्थी ही नहीं दूसरे बुद्धिजीवी भी समय-समय पर उनको अपने बीच पाने को आतुर रहते थे। बड़े उत्साह से वे उनका स्वागत सम्मान करते, उन्हें नाना सम्मेलनों का सभापतित्व करने को आग्रहपूर्वक आ

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अध्याय 19: मैं मनुष्य को बहुत बड़ा करके मानता हूँ

26 अगस्त 2023
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चन्दन नगर की गोष्ठी में उन्होंने कहा था, “राजनीति में भाग लिया था, किन्तु अब उससे छुट्टी ले ली है। उस भीड़भाड़ में कुछ न हो सका। बहुत-सा समय भी नष्ट हुआ । इतना समय नष्ट न करने से भी तो चल सकता था । ज

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अध्याय 20: देश के तरुणों से में कहता हूँ

26 अगस्त 2023
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साधारणतया साहित्यकार में कोई न कोई ऐसी विशेषता होती है, जो उसे जनसाधारण से अलग करती है। उसे सनक भी कहा जा सकता है। पशु-पक्षियों के प्रति शरबाबू का प्रेम इसी सनक तक पहुंच गया था। कई वर्ष पूर्व काशी में

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अध्याय 21:  ऋषिकल्प

26 अगस्त 2023
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जब कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सत्तर वर्ष के हुए तो देश भर में उनकी जन्म जयन्ती मनाई गई। उस दिन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट, कलकत्ता में जो उद्बोधन सभा हुई उसके सभापति थे महामहोपाध्याय श्री हरिप्रसाद शास्त

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अध्याय 22: गुरु और शिष्य

27 अगस्त 2023
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शरतचन्द्र 60 वर्ष के भी नहीं हुए थे, लेकिन स्वास्थ्य उनका बहुत खराब हो चुका था। हर पत्र में वे इसी बात की शिकायत करते दिखाई देते हैं, “म सरें दर्द रहता है। खून का दबाव ठीक नहीं है। लिखना पढ़ना बहुत क

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अध्याय 23: कैशोर्य का वह असफल प्रेम

27 अगस्त 2023
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शरत् बाबू की रचनाओं के आधार पर लिखे गये दो नाटक इसी युग में प्रकाशित हुए । 'विराजबहू' उपन्यास का नाट्य रूपान्तर इसी नाम से प्रकाशित हुआ। लेकिन दत्ता' का नाट्य रूपान्तर प्रकाशित हुआ 'विजया' के नाम से

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अध्याय 24: श्री अरविन्द का आशीर्वाद

27 अगस्त 2023
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गांव में रहते हुए शरत् बाबू को काफी वर्ष बीत गये थे। उस जीवन का अपना आनन्द था। लेकिन असुविधाएं भी कम नहीं थीं। बार-बार फौजदारी और दीवानी मुकदमों में उलझना पड़ता था। गांव वालों की समस्याएं सुलझाते-सुल

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अध्याय 25: तुब बिहंग ओरे बिहंग भोंर

27 अगस्त 2023
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राजनीति के क्षेत्र में भी अब उनका कोई सक्रिय योग नहीं रह गया था, लेकिन साम्प्रदायिक प्रश्न को लेकर उन्हें कई बार स्पष्ट रूप से अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिला। उन्होंने बार-बार नेताओं की आलोचना की

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अध्याय 26: अल्हाह.,अल्हाह.

27 अगस्त 2023
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सर दर्द बहुत परेशान कर रहा था । परीक्षा करने पर डाक्टरों ने बताया कि ‘न्यूरालाजिक' दर्द है । इसके लिए 'अल्ट्रावायलेट रश्मियां दी गई, लेकिन सब व्यर्थ । सोचा, सम्भवत: चश्मे के कारण यह पीड़ा है, परन्तु

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अध्याय 27: मरीज की हवा दो बदल

27 अगस्त 2023
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हिरण्मयी देवी लोगों की दृष्टि में शरत्चन्द्र की पत्नी थीं या मात्र जीवनसंगिनी, इस प्रश्न का उत्तर होने पर भी किसी ने उसे स्वीकार करना नहीं चाहा। लेकिन इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि उनके प्रति शरत् बा

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अध्याय 28: साजन के घर जाना होगा

27 अगस्त 2023
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कलकत्ता पहुंचकर भी भुलाने के इन कामों में व्यतिक्रम नहीं हुआ। बचपन जैसे फिर जाग आया था। याद आ रही थी तितलियों की, बाग-बगीचों की और फूलों की । नेवले, कोयल और भेलू की। भेलू का प्रसंग चलने पर उन्होंने म

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अध्याय 29: बेशुमार यादें

27 अगस्त 2023
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इसी बीच में एक दिन शिल्पी मुकुल दे डाक्टर माके को ले आये। उन्होंने परीक्षा करके कहा, "घर में चिकित्सा नहीं ही सकती । अवस्था निराशाजनक है। किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है। इन्हें तुरन्त नर्सिंग होम ले

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