बेशक मैं तुम्हें माफ कर देती, यदि कुसूर तुम्हारा ना होता, और तुमने खुद अपने दिल से उसे स्वीकार न किया होता, जिस जुर्म को तुम खुद दिल से कबूल कर चुके हो, फिर उसकी सजा से ऐतराज क्यों???? तुम खुद ही बताओ, क्या तुम अपने आप को गुनाहगार नहीं मानते???? क्या तुम्हारा कोई कसूर नहीं है???? और क्या सिर्फ उसके अकेले का ही पूर्ण दोष हैं, यदि नहीं तो माफी क्यों???? और फिर यदि आज मैंने तुम्हें माफ कर दिया तो ना जाने तुम्हारी यह आदत कितनों का भविष्य बर्बाद करेगी, और यदि मैंने तुम्हें सुधारने का मौका देकर वक्त गवाया, तब तो तुम्हें सजा दे पाना और भी गलत होगा ,
क्योंकि तब तुम्हें दी गई हर सजा किसी दूसरे के लिए दोगुना होगी, मैं नहीं चाहती कि तुम्हें ऐसे ही छोड़ कर विवाह के बाद सुधरने का मौका दूं, क्योंकि यदि शादी के बाद कोई उम्मीद करें भी तो मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं, कि तुम में कोई सुधार आ जाएगा, और यकीनन तब अगर तुम्हें सजा दी गई तो यह सजा तुम्हारे लिए कम उस बेचारी नवविवाहिता लड़की के लिए घातक होगी।
और उस समय गुनाहगार तुम होते हुए भी दोषी उसे ही माना जाएगा, यह भ्रष्ट समाज क्योंकि पुरुष के दोषों को नहीं देखता, हर समय दोषारोपण के लिए स्त्री पक्ष को ही जिम्मेदार ठहराता,
हां मैंने देखा है पिछली बार यह सुनते हुए कि आखिर क्यों न पत्नी अपने पति को सुधार सकी, बेदर्दी समाज यह भी ना सोचता कि जो मां-बाप बचपन से अपने पाले पोसे लड़के को ना सुधार सके, उसे भला चंद दिनों मेहमान की तरह आई हुई लड़की जिसने घर के सभी कमरे भी ना देखे हो, वह भला कैसे उस लड़के को समझ पाती ।
खैर मैं फ़िर किसी को यामिनी की किस्मत की तरह नहीं लिखना चाहती, गलती तुम्हारी है, सजा तुम्हें ही मिलेगी, अब मुझे कोई गवाही कोई संघर्ष नहीं चाहिए, कहते हुए कायरा ने विनीत सर को एक झटके में तेजी से हवा में उछाल दिया और उसे वही स्थित कर दिया, भय के मारे उसका पसीना निकल रहा था, तभी रस्सी की घुमावदार संरचना ने उसके गले को जकड़ कर उन्हें घर की छत से लटका दिया।
कायरा कहने लगी.... कहते हैं यदि इंसान अपने दोषों को मरते समय भी याद कर कर लेता, और अपने गुनाहों की माफी ईश्वर से मांग ले तो वह स्वीकार हो जाती है, फिर भी मुझे नहीं लगता कि तुम्हें माफी मिलेगी??? क्योंकि तेरे गुनाह ही ऐसे हैं।
कायरा का क्रोध साफ साफ झलक रहा था, वह लगातार कोई ना कोई नई बात सुनाकर उसे छत से टकराती और फिर वापस उसी कराह सुन अट्टहास के साथ उसे ऐसे ही हवा में लटका छोड़ देती, ना तो उसे मरने का मौका मिलता और ना ही वह कुछ कह पाता, लेकिन यकीनन उसके दिल में संताप जरूर था, वह अपने गुनाहों को याद करने में लगा था,
सोच रहा था कि कैसे उसने नौकरी लगने पर पूरे गांव में अपने ही साथ में पढ़ने वाली हम उम्र लड़कियों को बरगलाना शुरू किया और कितनों को अपना शिकार बनाना शुरू किया, कुछ को शादी का लालच दे तो, कुछ तो उनमें से चालाक थी ही,
चुन चुन कर शिकार बनाना जैसे उसकी नियति बन गई, कॉल लेटर आने से लेकर जॉइनिंग तक लगभग वह 5 से 6 लड़कियों को शिकार बना चुका था, और जब आकर उसने यहां नौकरी ज्वाइन की, तब वह सबसे कम उम्र का नौजवान युवक होने के कारण आकर्षण का कारण बन गया, यहां भी उसने बिना किसी उम्र के भेदभाव के शिक्षाकर्मियों को भी अपने रंग में ढाल दिया।
अब तो जैसे उसके मन की मुराद पूरी हो गई, वह ऐसी मस्ती में था कि उसे पता ही नहीं चला, कैसे एक वर्ष पूर्ण हो गया उसे पता ही नही चला।
एक वर्ष बाद जब वह घर पहुंचा तो पूरे घर का माहौल बदला हुआ था, क्योंकि उसके भेजे हुए पैसों से सबने घर की हालत काफी कुछ सुधार ली थी, अब घर बड़े मास्टर के घर से जाने जाने लगा था, घर आकर वह गांव में किसी साहूकार से कम स्थिति नहीं रख पाता, उसकी आवभगत घर के अलावा समाज में ही नहीं, अपितु बढ़-चढ़कर उसके दोस्तों के बीच आ जाती,
कभी कबार हल्की-फुल्की पार्टी का शौक भी घरवाले बर्दाश्त कर लेते, लेकिन समझाई जरूर दी थी कि ऐसा ना करें, पिता ने सोचा कि नौकरी को काफी दिन हो गये, बेटे का विवाह कर दिया जाए , जिसे सुनकर अपनी आजादी और अय्याशी में खलल देख विनीत घबरा उठा, और उसने स्पष्ट शब्दों में यह कहकर मना कर दिया कि अभी मुझे कुछ परीक्षा देकर प्रमोशन लेना है और फिर लड़की बराबरी की भी होनी चाहिए, यह सुन उचित तर्क जान परिवार वाले कुछ ना कह सके,
लेकिन उसके बड़े भाई ने अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाई के लिए कहीं और भेजने से अच्छा विनीत के साथ भेजने का विचार किया, जिसे वह इंकार ना कर सका, सभी एक साथ नौकरी की जगह आए, और भाई और पिता कुछ दिन साथ रहकर बेटियों का एडमिशन कर उन्हें समझाइश से अपने चाचा की बात मानने को कहे और चले गए।
इधर विनीत फिर अपने पुराने गुणों में आ गया, विद्यालय में गप्पे लड़ाना और छेड़खानी करना, यह उसकी पुरानी आदत थी, लेकिन भतीजियों के उसी विद्यालय में एडमिशन के बाद ऐसा संभव नहीं था।
एक दिन विनीत छोटी पार्टी से लौटकर जब वह घर आया तो उसकी बड़ी भतीजी ने दरवाजा खोला, नशे में धुत विनीत के सिर पर जैसे अलग ही भूत सवार था, उसने अपने मिजाज के अनुसार अपने हाथ उसके गले में डाल दिया और कहीं ना कहीं उसकी भतीजी भी गांव के माहौल को छोड़ यहां पर आने के बाद विनीत के करतुते सुन प्रभावित थी, इसलिए उसने भी मौके का फायदा उठा विनीत का भरसक साथ दिया, और उस काम को अंजाम दिया जो बिल्कुल अनुचित था,
लेकिन इन सबके बीच दोनों भूल गए थे कि उस घर में एक तीसरा शख्स भी मौजूद था, जिसने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है, और दूसरे दिन बहाना बना वह घर रुक गई।
बड़ी बहन के स्कूल जाते ही उसने भी विनीत को रात की सारी बात जानने की धमकी दे अपने मन की मुराद पूरी की, सब कुछ अनुचित था, लेकिन इसमें सबसे बड़ा जिम्मेदार विनीत ही था, उसने ना सिर्फ रिश्तों को तार-तार किया, वरन अपने हवस की आग में समाज की छवि को धूमिल कर दिया, जिसे सोच कोई भी पिता अपने बच्चों को सगे के साथ भी ना छोड़े, दोषी तो लड़कियां भी थीं,
रही बात विनीत की तो, भला कैसे कुछ कह सकता था, क्योंकि एक साल के दौरान उसका छोटा सा कमरा जैसे
बत से बत सूरत शक्ल ले चुका था, जहां शर्म हया कुछ भी ना बची थी, क्योंकि अब वह जगह रिश्तो के सोच से परे कुछ और ही बन चुका था, लेकिन इसका अंजाम बिल्कुल भी ठीक ना था, क्योंकि आगे चलकर विनीत की ताकत और भी बढ़ते जा रही थी, जो समाज के लिए अत्यंत घातक थी।
शेष अगले भाग में.......