यह तो होना ही था, विशाल और फिर मुझे तुमसे कोई शिकायत भी नहीं, क्योंकि शायद मेरे प्यार की शुरुआत ही कुछ ऐसी थी, मैंने जवानी की उस लहर में तुम्हें स्वीकार किया, जहां बहकने की सजा पूरी उम्र हर किसी को उठानी होती है, क्योंकि मेरी ही तरह उम्र के उस पड़ाव पर आकर बांटने वालों को दुनिया में अपने अलावा कोई सच्चा नहीं लगता, उसे सिर्फ और सिर्फ अपनी जिद पूरी करने के अलावा और कुछ भी समझ नहीं आता।
मां-बाप, रिश्तेदार ऐसे समय में सब की सलाह बेकार नजर आती है, और ऐसा ही कुछ मेरे साथ में भी हुआ, जिसकी सजा मुझे मिलना वाजिब है, यदि कुछ और बचा हो तो वह भी कह दो, शायद मेरे गुनाह कुछ कम हो जाए, कहते हुए वह रोने लगी.......
लेकिन विशाल तो मानो जैसे किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था, ना उसे रीना के आंसू नजर आए और ना ही उसकी बातें समझ आई, वह रीना को अनदेखा कर घर से बाहर ऐसा निकल गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो,
उसकी ऐसी निष्ठुरता कि कल्पना रीना की सोच से भी परे थी, वह अक्सर सकारात्मक सोच में रहने वाली जो अपने उन हसीन पल और पुरानी मुलाकातों को याद कर अपने आप को मना लेने वाली लड़की थी,
विशाल से उसकी पहली मुलाकात के बाद उसके स्पर्श, आलिंगन, चुंबन और मन से मन में सुलगती आग के कारण बहकते हुए विशाल को पा लेने का फैसला, बिना किसी झिझक के उसी दिन वापस आकर अपनी मां को कह सुनाया, जिसे सुनते ही मां ने क्रोध से एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर दे मारा, जो उसे अपने प्यार का इनाम जैसा लगा,
वह इतनी समझदार लड़की अचानक कैसे विचलित हो उठी, यह उसके माता-पिता की सोच से भी परे था, उसकी सुंदरता और सुशीलता देख उनके रिश्तेदारों ने उसे अपनी बहू बनाने का इरादा जाने कितनी बार पिछले छह माह में उसके पिता के पास दोहराए थे, लेकिन रीना के पिता तो उसे एक काबिल अफसर बनाने का विचार कर बैठे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि रीना का नसीब ही कुछ और लिखा है ,या यू कहे रीना खुद ही अपना भविष्य बर्बाद करने पर तुली हुई थी।
मां के लाख समझाने पर भी जब वह ना मानी तो उन्होंने पिता के सामने बेटी की जिद रखी, उनको समझते देर न लगी कि माजरा क्या है???? और वे भविष्य से भी अवगत थे, फिर भी एक बार उन्होंने रीना को बुलाया, और प्यार से समझाया और संपूर्ण बातों को विस्तार पूर्वक बताया भी की विशाल सिर्फ और सिर्फ उसका शोषण करना चाहता है, उसकी गोरी देह और अपनी हवस पूरी होने पर वह रीना को पलट कर भी नहीं देखेगा।
लेकिन विशाल को पाने की ललक में रीना भला कहां किसी की मानने वाली थी, पिता ने जब यह देखा कि इसको समझाने से कोई फायदा नहीं, तब अंत में कोई उपाय ना देख, इससे पहले कि देर हो जाए और समाज में चर्चा होने लगे, विशाल और रीना की शादी करवा दी, और भारी धन संपत्ति के साथ रीना को यह कहकर विदा किया, कि मैंने यह सब तुम्हारी पढ़ाई के लिए बटोर रखा था, शायद एक माता-पिता के सपनों की अहमियत तुम्हें उस समय मालूम होगी, जब तुम खुद उसी स्थान पर आओ।
लेकिन हां, अब इस टूटे हुए सपनों के साथ मुझे बख्श दो, फिर दोबारा मेरी चौखट पर तभी आना जब कोई बड़ी मुसीबत हो, या हम दोनों में से कोई चल बसे, कहते हुए विदाई के समय रीना के सामने उसके पिता बहुत रोए थे, लेकिन उस समय में भी रीना पिता के आंसू को कम और विदाई के समय को ज्यादा महत्व दे रही थी, उसे अपनी सोच पर आज भी बहुत घृणा आती है , क्योंकि ऐसा अंधापन कैसे हो सकता है, किसी बेटी का अपने पिता के प्रति.….
विश्वास नहीं होता, लेकिन यह एक कड़वा सच था, विवाह के पश्चात वह याद करती है, कि विवाह के पश्चात कैसे उसने शाम तक का समय उन रस्मों के साथ झूठी मुस्कान के साथ बिताया, उसे सभी रस्में भी वक्त काटने का एक जरिया लग रहा था।
सांझ होते ही जैसे विशाल कमरे में आया, उसने अपनी जोरदार जकड़ के साथ विशाल को बाहों में भर लिया, और ना जाने कितने ही समय तक आलिंगन , चुंबन के साथ उसने अपने मन की मुरादे पूरी की,
पूरी रात रीना सिर्फ आलिंगन के साथ कितनी बार विशाल के साथ एक हुई, यह सोच पाना भी एक अलग एहसास था, फिर भी उसका मन ना माना, वह तो जैसे विशाल को अपने आप में समाहित कर लेना चाहती थी।
जवानी की ऐसी भीषण आग की परिकल्पना सोच भी अब वह अपने आप को बड़ा ही अपमानित महसूस करती है, उसकी जिंदगी में ठहराव तब आया जब कुछ महीनों के पश्चात अचानक नाभि मंडल के पास उसे किसी हलचल का एहसास हुआ, मतलब साफ था कि उसके प्यार कम हवस के शांत होने का परिणाम सामने था,
तब कहीं उसे होश आया, जब तक कि बहुत देर हो चुकी थी, अब विशाल उससे दूर दूर रहने लगा, सिर्फ कुछ वक्त उसके साथ बिताने के बाद पश्चात वह न जाने कहां गांव में घूमते रहता, और ऐसे समय में वह लौटकर अपने घर भी नहीं जा सकती, क्योंकि वह खुद ही तो सभी दरवाजे अपने लिए बंद कर आई थी, तब किस मुंह से उसका लौटना सही था,
रीना के ससुराल वालों ने फिर भी उसका साथ दिया ,और इस तरह रीना की गोद में एक नन्ही परी का आगमन हुआ, लेकिन इस नौ माह के दौरान शायद विशाल रीना से काफी दूर जा चुका था,
ऐसा सुनने में आया कि किसी दूसरे गांव में रहने वाली भूरी के चक्कर में था, जिससे घरवाले भी अनजान थे, विशाल काम के बहाने घर से निकलता, और कई दिन उस गांव में डेरा डाल भुरी से मिलता, वास्तव में भुरी उसी सेठ की बेटी थी, जिसकी दुकान में विशाल काम करने जाता था,
जब रीना को यह बात पता चली तो, उसने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन अब रीना की तरह भुरी को भी विशाल ने अपने मोह पास में बांध रखा था, जो अत्यंत कष्ट और विकट स्थिति थी, इसलिए उसने विशाल का विरोध करना शुरू किया, परिवार वालों से शिकायत भी की, उन्होंने बहुत समझाया लेकिन विफल हो गया।
अंततः रीना ने एक बार फिर विशाल को उसकी मन मुताबिक चलने का वादा कर मना, भुरी से जा मिली,और उसे भी खूब समझाने की कोशिश की,
लेकिन अफसोस उसी दिन लौटते वक्त विशाल ने जंगल में रीना को शिकारी कुत्तों के हवाले कर दिया, और खुद पेड़ पर जा उसके शिकार का मंजर देखने के लिए जा बैठा, लेकिन तभी अचानक एक तेज़ रोशनी के साथ सारा माहौल ही बदल गया, शिकारी कुत्ते रीना को चारों और घेरे खड़े थे, जैसे उसका संरक्षण करना चाहते थे, और अब सभी घुरकर पेड़ के ऊपर बैठे हुए विशाल को देख रहे थे।
तभी अचानक उसमें से एक शिकारी कुत्ता बड़ी तेजी से अपनी फितरत के विपरीत किसी चीते की तरह पेड़ पर चढ़ने लगा, यह देखकर विशाल पेड़ से घबराकर नीचे कूद पड़ा और देखते ही देखते उन्होंने विशाल के चितडे उड़ा दिए।
तभी एक नीली आभा के साथ रीना को एक चेहरा नजर आया, उसने सिर्फ इतना कहा, गलतियों को सुधारने पर ध्यान दो, बेशक तुम गलत भी थी, लेकिन तुमसे बड़ा गुणाकार विशाल और उसकी नजर थी, जिसने तुम्हें उकसाने में कोई कसर न रखी, पिता की बातों का महत्व समझो, और हो सके तो अपनी बेटी का लालन पोषण परिवार के संरक्षण में करना, कहते हुए वह नीली आभा मुस्कुराहट के साथ हवा में कहीं खो गई ।
शेष अगले भाग में......