आपके सारे गांव की परेशानियां, आदि कोई क्षण भर में दूर करने की ताकत रखता है, तो एक ही शख्स है, लेकिन उसे भी अनुमति की जरूरत होगी, महज उसके समुदाय के चंद सदस्यों के लेकिन फिर भी मुझे विश्वास है, कि यदि इस गांव को तुरंत आर्थिक तंगी और परेशानी से बचाना है, और जल्द से जल्द नहर की खुदाई पूरी करवानी है,
ताकि किसानों को सही समय तक पानी पहुंचा पाए, और फसलों को नुकसान ना हो, क्योंकि फसलों के नुकसान से सिर्फ किसान को ही नुकसान नहीं होता,अपितु वह नुकसान संपूर्ण समाज को उठाना होता है,
कई बार तो भुखमरी की भी स्थिति पैदा हो जाती है, इसलिए यदि पंच मेरी राय माने और अपने निज अहंकार को परे रख, संपूर्ण समाज के बारे में सोचें, तब मैं उसका नाम बताऊं,
इतना सुनते ही बूढ़ा सरपंच मारे क्रोध के अपनी पत्नी की बातें सुन कहने लगा, यदि सही समाधान बता सकती हो तो बताओ, यहां सभी परेशान है और फिर तुम जान भी रही हो कि हम किस रकम की बात कर रहे हैं?????
इतना पैसा जिसे स्थानीय सरकार भी दे पाने में सक्षम नहीं है, उन्होंने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं, मात्र पच्चीस प्रतिशत ही रकम हम अभी तक जुटा पाए हैं पिछले एक माह में.....
पूरे गांव की जमा पूंजी जुटाने के पश्चात भी यदि हम हिसाब लगाए तब भी तीस प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पा रहा है।
और तुम कहती हो कि सब कुछ कोई एक ही कर सकता है,
कौन है वह ????और तुम्हें उन पर इतना विश्वास कैसे ????मेरे जीवन साथी होने का आशय यह नहीं कि तुम सारी पंचायत का मजाक बनाओ, खासकर जबकि सभी मुसीबत में हो,
लेकिन तभी अचानक सारा स्त्री समुदाय उठ खड़ा हुआ, और उस सरपंच की भाभी सा क्रोध में आकर बोली , सरपंच होने का मतलब यह अधिकार तुम्हें कतई नहीं कि तुम स्त्री पक्ष को अपना मत रखने का हक ना दो,
क्या तुम्हें इसलिए मैंने खुद चयनित करके उस गद्दी पर बैठाया है, कि तुम स्त्री का सम्मान करना ही भूल जाओ, जो पत्नी है तुम्हारी, और हर मर्यादा को जानती है, और यदि वह किसी बात को कह रही है, तो उसके पीछे भी कोई ना कोई कारण अवश्य होगा।
फिर भी यदि यह पंचायत स्त्रियों का पक्ष नहीं सुनना चाहती, और अहंकार में चूर रहना चाहती है, तो बेशक अगली सभा से हमें ना बुलाया जाए, हम इसी समय इस सभा का त्याग करते हैं।
इतना कह कर सभी स्त्रियां चलो चंदा कह कर जाने को तैयार हुई, वही बूढ़ी भाभी सा जो सबसे ज्यादा उम्र दराज और विद्यमान माने जाने वाली महिला थी, कि नाराजगी पर सभी को दुख हुआ, और स्वयं सरपंच के साथ खड़े होकर सब ने माफी मांगते हुए कहा हमें माफ करें।
आप सभी हमारी आधार शक्ति हो, हमारा आशय किसी को दुख पहुंचाने का नहीं, यदि भारी चिंता और कोई उपाय ना सुझ पाने के कारण हमसे कोई त्रुटि हुई तो क्षमा करना ,
चंदा देवी यदि कोई मार्ग हो तो हमें बताएं, हम निश्चित तौर पर इस बात पर विचार करेंगे, और यकीन मानिए यदि कोई गूढ़ रहस्य हुआ तो हम इसे कभी जाहिर नहीं होने देंगे,
क्योंकि स्त्री अपने मन में कितने राज छुपा सकती है, यह तो ईश्वर भी नहीं जानता, सभी स्त्रियों को इशारा कर और बड़ी भाभी सा के इशारे पर चंदा देवी ने कहना प्रारंभ किया।
आप सबको मैं जो बताने जा रही हूं, इस राज को बहुत कम लोग जानते हैं, लेकिन यह भी सच है कि इस समय हमारे गांव को मदद की अत्यंत आवश्यकता है, जो किसी भी सरकार से मिलना असंभव है,
यदि समय पीढ़ियों से संचित धन जो किसी राजघराने या समुदाय से प्राप्त हो जाए, तब भी कहीं हमारा काम हो सकता है, यकीन मानिए यदि पंच मिलकर मेरे अनुसार मदद मांगने जाए तो शायद काम हो जाएगा।
लेकिन ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि मदद मांगने वाले ही मुकर ना जाए, इतना सुन सरपंच पुनः पहेलियां समझ कहने लगा , चंदा पहेलियां ना बुझाओ,
तुम क्या कहना चाहती हो, ऐसा कौनसा खजाना है???
जिसे तुम जानती और मैं नहीं जानता????
छत्तीस वर्ष विवाह के पश्चात ऐसा क्या शेष बच गया हैं, जो हम लोगों के बीच गोपनीय रहा हो, वाकई यदी ऐसा है, तो कहावत सही है, स्त्रियां समुद्र से भी ज्यादा गहरी है,
लेकिन इस बात से भी नहीं नकारा जा सकता कि समुद्र में ही बेशकीमती रत्न अमृत, यहां तक कि लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई है।
मानने वाले की भावनाओं पर निर्भर करता है, कि उसे क्या प्राप्त हो, हे प्राण प्यारी इससे पहले कि हम अवसाद में जा विष के हकदार हो, हमें सच्ची राह दिखाओ,और स्पष्ट कहो कि क्या कहना चाहती हो????
तब कही चंदा देवी मुस्कुरा कर कहने लगी, इस समय कोई राजकीय कोष या सरकार के पास इतना धन नहीं कि जितना धन नगरवधू खजाने में रखा है, वह अपनी जमा पूंजी का यदि उस खजाने का एक प्रतिशत हिस्सा ही दे दे, तो हमारा काम हो सकता है।
यह सुनते ही जैसे सारी सभा में खलबली सी मच गयी, उन्होंने पूरे जीवन में आज तक ऐसे खजाने के बारे में नहीं सुना था, किताबों में भी नहीं, कि जिसका महज एक प्रतिशत, जिसे वह इतनी बड़ी रकम समझ रहे थे।
यदि एक प्रतिशत है, तो वह कितना विशाल खजाना होगा, आश्चर्य लेकिन बात ना मानने का साहस अब पंचों के पास ना था, वह कहने लगे, पुनः दोहराये.... क्या कहा आपने.....
चंदा देवी ने पुनः दोहराते हुए कहा कि यही नहीं सुना तो मैं फिर दोहराती हूं, इस समय हमें सिर्फ कोई मदद दे सकता है तो वह है नगरवधू का खजाना।
हां वही खजाना जिसे आज तक हमारे ही द्वारा सींचा गया है, जिसे पुरुष समाज ने अपने परिवार की खुशियां छीन कर अपनी स्त्रियों को अंधेरे में रखकर बनाया है,
हमें कोई शिकायत नहीं की उसने क्या किया??? समाज हमेशा से सती सीता की बात करता है, पुरुषोत्तम राम जी सा बनना भी सबके बस में नहीं, क्या यह सच नहीं????
कोई जिंदगी में एक दफा भी उस मार्ग पर नहीं गया, जो उसके जीवन साथी के मर्जी के खिलाफ थी, सच सच कहो, मैं सबूत नहीं मांगती, सिर्फ आईना इसलिए दिखा रही हूं कि संकोच ना हो मदद मांगते समय।
क्योंकि हो सकता, सबको आश्चर्य लगा होगा यह सुनकर की नगरवधू समाज भला कैसे इतने बड़े कोष का मालिक हो सकता है, लेकिन यह सच है जिससे बहुत कम लोग ही अवगत है।
बस यह जानने की कोशिश ना करें कि मैं कैसे जानती हूं, यदि यकीन ना हो तो जाकर आप भी राजधानी में नगरवधू रजनी, जो आज भी भूतपूर्व राजा के किले के पास वाली हवेली में रहती है, जाकर मिला आओ ।
नगरवधू रजनी का नाम सुन सभी सभी बूढ़े एक पल के लिए जैसे स्तंभित से रह गए, क्योंकि वाकई यह एक कड़वा सच है कि उन्होंने उस जमाने की परम सुंदरी , जिसे खुद ने वह हवेली दी थी, सभी इससे कहीं ना कहीं वाकिफ थे,
आखिर इतने बड़े खजाने की मालकिन नगरवधू रजनी कौन थी??????
शेष अगले भाग में.......