सूर्य की चमक की तरह चटकता यौवन चंद्रमा से कही ज्यादा परिपक्व यौवन और सृष्टि की ,दोनों शक्तियों का मिलन वह भी बढ़ती हुई उम्र के साए में खासकर जब उसे मनुष्य और उसमें भी स्त्री का शरीर मिला हो, जो सरस सलीला और स्त्री मन जिसकी गति को जिसे आज तक ईश्वर भी ना समझ पाया, उसे भला बिना मार्गदर्शन और सहायक के कैसे छोड़ा जा सकता था????
डर था कि यदि वह भावुकता वस किसी गलत पक्ष का चुनाव कर ले तो सृष्टि की रचना और सहयोग, जो करोड़ों वर्ष में एक बार बनती हैं, सब कुछ बेकार हो जाता है, या यूं कहें विपरीत पक्ष के काम आने लगता है, और ऐसे समय में नियंत्रण असंभव हो जाता, जिसके कई उदाहरण इतिहास में और कहानियों में निहित हैं, कि कैसे प्रबल शक्ति पाने के बाद राक्षस प्रवृत्तियो ने पृथ्वी पर तबाही मचाई और अंत में उन्होंने खुद को ही डुबो दिया अपने ही विचारों में, इसलिए आज सृष्टि की दोनों शक्तियां मंथन के पक्ष में थी, और यह मंथन किसी समुद्र मंथन से कम नहीं था, और शायद इसी समय के लिए सृष्टि ने मुझे चुन रखा था।
अचानक सुदूर आकाश में ज्वालामुखी के शिखर के बाद एक भयंकर विस्फोट हुआ, जिसने ना जाने कितनी ऊंचाइयों पर जाकर उन सफेद बादलों को छेड़ा, जिसके परिणाम स्वरुप बिजली कड़कने लगी, तेज मूसलाधार बारिश होने लगी, लेकिन जिसका एक बूंद भी जल धरती पर ना पहुंच सका, ऐसा लग रहा था जैसे ज्वालामुखी का लावा कटोरो की भांति सारे जल को एकत्रित कर लेता, इस दौरान कितनी ही शक्तियां चमकी और बिजली की तरह जाकर उस लावे में सिमट गई, देखते ही देखते लावा एक कांतिमय मानवीय रूप लेने लगा, बिजलियो ने बालों का रूप लिया, और ऐसे ही ना जाने कितनी शक्तियों से मिलकर एक मानवीय संरचना को जन्म दिया और अंत में मुझे प्राण के रूप में उस देह में उतार दिया गया।
मेरे पूर्व जन्म का आशय ही था शक्ति नियंत्रण, लेकिन इस बार यह शरीर एक स्त्री का था जो सृष्टि का हर शक्ति का संचारण करने में सक्षम था,
इस तरह मेरा जन्म हुआ, मेरा कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं, क्योंकि मैं शक्तियों की तरह विलीन हो जाने में समर्थ हूं, सिर्फ एक एहसास बनकर उभरती हूं, और अपनी इच्छा अनुसार किसी भी मानवीय या अन्य काया को या फिर इससे परे किसी भी शक्ति के मन को शीतलता देने या परिवर्तित करने में असमर्थ हूं, और मुझे आदेश दिया गया कि मेरे जीवन का मकसद मात्र इस वर्तमान काल में कायरा की शक्तियों को नियंत्रित करने में मदद करना, उसकी मन की स्थिति को बिखरने या भटकने ना देना, और किसी भी विपरीत परिस्थिति में उसकी सहायता करना, किसी साये की तरह, क्योंकि मुझे देख पाना या मेरा एहसास भी कर पाना बड़ी से बड़ी शक्ति के वश में भी नहीं।
मैंने उन दोनों समावेशी शक्तियों को, जिन्होंने मिलकर मेरे अवतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, को प्रणाम किया और चल पड़ी उस दिशा की ओर जहां कायरा बैठी थी, गुमसुम सी झरने के किनारे वह सोच रही थी, कि कैसा संसार है यह.......
आखिर क्यों यहां प्रेम के बदले दगा मिलती है????? और इतना स्वार्थी कैसे हैं??मानव ही अपनों का ही दुश्मन बन जाता है, शायद वह अभी तक शिल्पी की मौत के मंजर को और उसको मिले धोखे को भुला ना पाई थीं, जहां उसके पति ने उसे प्यार के नाम पर दगा दिया, और खुद की बहन ने उसे चाहत के नाम पर सजा दी, क्या कसूर था उस बेचारी का.........
कायरा के निस्वार्थ मन को पढ़ मुझे बड़ा ही सुखद अनुभव हुआ, कितना साफ और स्वच्छ है कायरा का मन, तथा उसकी ऐसी करुणा वह भी अनजान के लिए बमुश्किल देखने को मिलती है, लेकिन मेरा काम ही था, उसकी भावनाओं को शांत करना, इसलिए मैंने उसके क्रोध को शांत करने हेतु उपाय किया और झरने से गिरने वाले पानी पर तेज़ प्रहार कर उस फव्वारे की बूंदों को वातावरण में बिखेर दिया, अचानक पानी की बूंदे जो वातावरण में बिखरी हुई थी, उसे महसूस कर कायरा अपने विचारों से बाहर आई, और थोड़ी सजग हो आसपास देखने लगी।
मैं सतर्क हुई क्योंकि, मुझे लगा कि शायद कायरा मुझे महसूस ना कर पाए और पहाड़ी की परम शिखर पर जा मैं उसे देखने लगी, ऐसे फव्वारे लगभग तीन-चार बार बिखरे होंगे मैंने, तब कहीं जाकर कायरा का मन भटका और उसका ध्यान शिल्पी की मौत के मंजर से हटकर आसपास के सुंदर वातावरण को देखने में लग गया,
उसे सामने देख मुझे संतुष्टि हुई, अब मेरा काम था उसकी कमजोरियों को समझना और उन्हें दूर कर और उन्हें और भी शक्तिशाली बनाना, मैं स्पष्ट रूप से देख सकती थी, उसके हाव-भाव और उसके अंतर्मन को,
प्रकृति ने उसे असीम शक्तियों से सहजा और विलक्षण शक्तियों को प्रदान करने के साथ उन्हें काबू करने का धैर्य भी प्रदान किया,
वह कुछ शक्तियां तो जन्म से लेकर पैदा हुई, जो शायद उसे किसी पूर्व तपस्या के फलस्वरूप प्राप्त हुआ होगा, लेकिन कुछ शक्तियां उसे उन शक्तियों के आकर्षण,उसके सच्चे मन, प्रकृति से इतना लगाव और गुरु जी की कृपा से जो इन सब के वजह से ही थी, जो जो शक्तियां उसने प्राप्त की, वह उसे एक एकदम से प्राप्त नहीं हुई, एक एक करके वे शक्तियां उसे पूर्ण संचार और प्रभाव के साथ मिली, इसलिए शायद उनका दुष्प्रभाव उस पर ना पड सका।
उसमें कोई भी परिवर्तन इतना शक्तिशाली होने के बावजूद रत्ती मात्र भी नहीं देखा जा सकता, सामान्य जीवन में उसे देख कर कोई यह अंदाज नहीं लगा सकता कि वह क्या हो सकती है, या यह भी हो सकता है कि वह अपने आप को सिर्फ आह्वान करने पर ही प्रकृट करती है, उन दुखयारी आत्माओं का आह्वान जिन्हें प्रताड़ित किया गया था, जिनके साथ धोखा किया गया,
मैं उसे और भी गहराई से पढ़ना चाहती थी, लेकिन उसका कठोर आभामंडल मुझे उसकी परिधि से पार या भीतर पहुंचने की अनुमति नहीं प्रदान करता, लेकिन ना जाने क्यों एक धुंधली सी छवि जानी पहचानी सी मुझे बार-बार उसके अंदर दिखाई देती है ,और विलुप्त हो जाती, किसी जल में बनते हुए प्रतिबिंब की तरह......
तब मैंने सोचा कि जब कायरा शांत चित्त होकर बैठे जाए, तब शायद मुझे ऐसा मौका मिले, क्योंकि शांत चित्त में उसे शायद ढूंढ पाना मेरे लिए संभव होगा, और वही उचित समय होगा, जब उसकी संपूर्ण शक्ति को आंकने का उचित प्रयास होगा, यही सोच मैं उसके साए की तरह उसके साथ पूरे दिन भटकती रही, लेकिन आश्चर्य कि उसे ध्यान, साधना और आराम इन तीनों की आवश्यकता नहीं,
वह तो जैसे दूसरों की सेवा में ही अपनी साधना और उनकी खुशी में अपना आराम ढूंढ लेती है, मैंने पूरी सृष्टि में ऐसा सरल तरीका बहुत कम शक्तिशाली लोगों में देखा है, अब मेरा पूरा ध्यान उस धुंधली तस्वीर पर आकर्षित होने लगा, जो बार-बार ओझल हो मुझे कुछ संकेत देना चाह रही थी, और उससे भी ज्यादा कोतुहल मेरे दिल में था, क्योंकि वह तस्वीर मेरे लिए जानी पहचानी सी लग रही थी।
आखिर कौन सी शक्ति थी वह??????
शेष अगले भाग में.........