चाचा मुझे इन भेड़ की खालो से कुछ ऐसा बना कर दो, जिसे पहनकर ना तो ठंड लगे और ना गर्मी हो, क्या ऐसा हो सकता????? यदि हां तो, यह कमाल सिर्फ आपके हाथों से ही हो सकता है, कहते हुए कायरा ने दो भेड़ की खाल उनके सामने रख दी, इतनी ताजा खालो को देखकर वह आश्चर्यचकित हो उठे और कहने लगे, इतने सालों से मैं इस गांव में चमड़े का काम कर रहा हूं, लेकिन इतनी ताजा और सफाई से ली गई खाल यकीन नहीं होता,
कायरा कहां से लाए हो यह खाल???? कहते हुए आश्चर्यचकित हो, असलम ने कायरा से पूछा.......
कुछ नहीं चाचा एक नया कारीगर दिखा, उन्हीं ने यह तरीका बताया था, नया कारीगर वह भी इस गांव में कहां है?????? पलटवार में आश्चर्य और गुस्से के मिश्रित भाव में कायरा को जवाब मिला, लेकिन कायरा तो शायद यही चाहती थी, हां, बिल्कुल नया और नया भी नहीं आप नयी भी कह सकते हो ,
मतलब ??????
मतलब वह स्त्री है चाचा, कितनी सफाई है उनके हाथों में, उन्होंने मुझे यह कला सिखाई कि बिना रोए नष्ट किए कितनी आसानी से भेड़ की खाल प्राप्त की जा सकती हैं,
और यहां तक कि वह तो यह भी बोली कि भेड़ों के बाल से ही वह ऐसे कपड़े बना सकती है, जिनको पहन कर ठंड से तो बचा ही जा सकता हैं, साथ ही गर्मी से भी बचा जा सकता हैं, वह तो यहां तक भी कहती है कि वह ऐसे कपड़े भी बना सकती है, जिसे पहन कर आग में भी चले, तब भी उसे कुछ नहीं होगा।
अरे ऐसा भी कहीं होता है भला???? और यह कौन है?????? मुझे भी मिलवाओ उनसे.......... वही पास वाली पहाड़ी के पास कायरा ने बिना समय गवाएं जवाब दिया, क्योंकि वह समझ चुकी थी,
चारवी का कातिल असलम को अपनी बातों में फंसा चुकी थी, और अब देर करने का कोई महत्व भी नहीं, उसने तुरंत कहा........ हां चाचा, वह तो यह भी कहती है, उसने यह सब कलाएं पास में कोई आग का पहाड़ है, उसके पास बैठ कर सीखी है।
वह कहती है कि वह पहाड़ आग उगलता है, चाचा भला ऐसा भी कहीं होता है???? क्या आग उगलने वाला पहाड़ कुछ भी............
अच्छा ठीक है जो भी हो, मैं तो कह आई जो भी हो, हम सिर्फ उन्हीं से काम करवाएंगे जिनसे हमेशा करवाते आए हैं, कहकर वह लौटकर जाने के लिए घूमी तभी अचानक...........
हां होता है.......ऐसा भी पहाड़ होता है, क्या तुम मुझे उसका पता बता सकती हो???????
वह ललचाए नजरों से बोला, लेकिन भला उसे क्या पता था कि वह खुद ही जाल में फंस रहा है,
कायरा बोली हां, यहां पास वाले पर्वत तक जाने के लिए जंगल का जो रास्ता है, उसी से सीधे जाइएगा और पास की नदी के उत्तरी और एक बड़े घने पेड़ के नीचे वह मुझे बैठी मिली थी,
कहती थी मैं यही रहती हूं, आप चाहो तो जाकर मिल लो, इतना कहकर कायरा वापस आ गई, क्योंकि वह जानती थी कि वह जरूर उस स्त्री को ढूंढते हुए उधर जाएंगे ,और हुआ भी ठीक वैसे ही........
कायरा के पलटते ही जैसे उन चाचा को कोई पुरानी विरासत का पता मिल गया हो, उन्होंने कूदकर दुकान का सामान समेटा और बड़ी ही जल्दबाजी में दुकान से निकल गए, बिना यह सोचे समझे कि कुछ गड़बड़ भी हो सकती है, लेकिन इतनी निडरता से साफ जाहिर करती है कि वह भली भांति जानते हैं कि किसी समस्या से कैसे निपटना है,और वह बताए रास्ते पर चल पड़े।
वीरान जंगल और भयभीत कर देने वाला वह वातावरण भी उन्हें कुछ खास डर में नहीं डालता था, वह तेजी से उस और चले जा रहे थे, ना जाने मन में क्या सोचते हुए कि तभी अचानक कुछ जलने की बदबू उन्हें महसूस हुई और उन्होंने अपनी जेब में हाथ डालकर कुछ निकाला और बोले हां, मैंने सही सोचा था, बरसों की मुराद पूरी हुई कहते हुए कुटिल मुस्कान के साथ उनके हाथों में कुछ चमकती हुई चीज नजर आने लगी और वह कहने लगे.......
आ चल जाग मेरे गुलाम, मुझे रास्ता दिखा उस तिलस्मी औरत का........ और इतना कहते ही कोई ताकत हवा के विपरीत दिशा में उसे रास्ता दिखाने लगी, और देखते ही देखते वह शायद अपनी मनचाही मंजिल तक पहुंच गया, और उसके हाथ का वह चमकता हुआ कोयले सी दिखने वाली वस्तु और भी तेज चमकने लगी, उसे उन्होंने तुरंत अपनी जेब में रखते हुए उस पेड़ की और बड़ा जहां वह स्त्री मुंह घुमाए दूसरी दिशा में बैठी थी, ऐसा लगता था जैसे चमड़े का चादर बनाने में व्यस्त थी।
थोड़ा कदम चला ही था कि वह कि अचानक आवाज आई, ठहरो.......... वही ठहरो........ जो भी हो, क्या चाहिए और यहां कैसे?????????
मैं असलम नजदिकी गांव से आया हूं, चमड़े का काम करता हूं, मुझे कायरा ने आपके बारे में बताया, आप की कारीगरी सिखने आया था, और उस तिलस्मी के बारे में भी, जो मैंने उससे सुना, क्योंकि ज्वालामुखी से बच निकलने का रास्ता सिर्फ ज्वालामुखी ही बता सकती है, सच बताओ कौन हो तुम ???????
हां असलम सही कहा तुमने ,ज्वालामुखी से बच निकलने का रास्ता ज्वालामुखी ही बता सकता है, कहते हुए वो स्त्री असलम की ओर मुड़ी.........
च....... च...... च........ च...... चारवी तुम????
आखिर तुम्हें वह मिल ही गया, वह तिलस्मी फुल???? मैंने कहा था ना तुम ही ला सकती हो,
हां सही कहा था तुमने...... लेकिन इस तिलस्मी फुल को पाने की एक शर्त भी है, जो मुझे खुद ज्वालामुखी से सीखने को मिली, लेकिन फिर भी चिंता ना करो, मैं तुम्हें ज्वालामुखी के पास जाने का ना कहूंगी।
असलम सिर्फ सुन रहा था, क्योंकि कुछ कह पाने की हिम्मत उसमें ना थी, वह भली भांति जानता था कि ज्वालामुखी में गिरने के बाद यदि कोई बच निकले तो वह कोई साधारण नहीं होता, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों उसे अपनी कुटिलता और चारवी की दानशीलता और अच्छे व्यवहार पर पूरा भरोसा था, और वह था भी गलत नहीं, लेकिन वह तो चारवी को खुद ही भेंट चढ़ा चुका था, अपनी कुटिलता कि............
अचानक चारवी का शब्द गुंजा.......हां असलम तुम्हें ज्वालामुखी के पास जाने की जरूरत नहीं, मैं ज्वालामुखी को यहीं बुला लेती हूं, असलम कुछ सोच पाता इससे पहले ही चारवी अटटाहस करने लगी, और देखते ही देखते आसपास से आग की लपटें आने लगी।
जमीन का वह हिस्सा जहां वो खड़े थे, धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसकने लगा, तभी उसी स्थान पर हैसल और कायरा भी आ गए, कायरा को देख वह कपटी असलम कायरा को पुकारने लगा,
कायरा.........कायरा.........
लेकिन वह कुछ कह पाता, चारवी ने हाथ घुमाया और वैसे ही ज्वालामुखी असलम के मुंह से फूटने लगा, उसके शरीर का रोम रोम चिटक चिटक कर फेंकाने लगा, जिन आंखों में कपट था, वह उस असहनीय ज्वाला को बर्दाश्त नहीं कर पाई और फट कर बाहर आ गई।
अगले ही पल में बिखर जाने को था कि तभी हैसल ने उसे रोका और बोली अभी कहां, तेरी रूह को जहन्नुम में भी जगह ना मिले, तू रूक और उसके एक इशारे पर उसके आसपास एक बड़ा सा गड्ढा बन गया, चारवी बोली अब ले अंतिम सलाम कपटी, जब तक तेरा जीवन है तब तक तु यूं ही जलता रहेगा, इस छोटे ज्वालामुखी की तरह और उसने उसकी सारी काया को मोम की तरह बदल दिया, इस तरह देखते ही देखते वह क्षण भर में हवा की भांति उस तपिश से काफूर हो गया।
चारवी की आंखों से क्रोध समाप्त हुआ, उसने कायरा को धन्यवाद दिया और संकल्प लिया कि वह हमेशा कायरा का साया बनकर रहेगी, और जब भी किसी पर अत्याचार होगा वह मिलकर उस अपराधी को सजा देंगे,और इसी तरह शुरुआत हुई........
रूप की बला कायरा की कहानी की शुरुवात,क्योंकि एक एक कर कायरा ना जाने ऐसे कितने ही पापियों को सजा देती, और पीड़ित महिलाओं की आत्मा को संतृप्त कर उन्हें अपने आप में समा जाती, कहने को तो कायरा कायनात ए हुस्न थी, लेकिन उसके भीतर की ज्वाला उससे कई ज्यादा खतरनाक, उसका स्पर्श मात्र भी किसी को बिखेर देने के लिए काफी था।
शेष अगले भाग में............