तीन सौ बीघा जमीन के मालिक अभिमन्यु गुप्ता जिसे सब गुप्ता जी के नाम से ही जानते थे, वह अकेले लगभग पालवी गांव की आधे से ज्यादा जमीन के इकलौते मालिक थे, लेकिन फिर भी उनकी वफादारी सबके लिए बड़ी ही अटूट थी।
उनके पास दस बीघा जमीन ऐसी भी थी, जिसमें जंगली जानवर भी रहते थे, और उस गांव का रास्ता उसके बीच से होकर निकलता था, कई बार प्रशासन ने पुनर्वास की बात भी कही........
उस स्थान पर उस जंगल में रहने वाले प्राणियों को पुनः स्थापित कर दिया जाए, ताकि उस गांव के दोनों हिस्सों को मिलाकर एक साथ विकास की परियोजना बनाई जाये , लेकिन अभिमन्यु गुप्ता ने किसी कि भी बात नहीं मानी।
उनका का कहना था कि हमें किसी के प्राकृतिक जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई हक नहीं है, हम जंगल के मध्य से जा रहे हैं, जंगल हमारे मध्य नहीं आया....उनकी आबोहवा को छीन कर हम प्रकृति की तरह पूरा उसे बनाकर नहीं दे सकते, इसलिए यह हमारा मानव धर्म है कि हम उन्हें इसी रूप में रहने दे और स्वीकार करें, यहां सुरक्षा के इंतजाम में कोई कमी न बरती जाए।
अभिमन्यु गुप्ता आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, तो उन्होंने बिना किसी के कुछ कहे सुने वह दस बीघा जमीन और उस जंगल से लगी हुई दोनों तरफ बीस-बीस एकड़ की जमीन आश्रम के रूप में उस गांव के नाम, वसीयत में लिखकर उसे तीन सौ बीघा जमीन को अपने दो पुत्रों और एक पुत्री के नाम विधिवत पूर्व से ही लिख कर रखा हुआ था,
जब अभिमन्यु गुप्ता के मृत्यु का समय नजदीक था, तब कहते हैं कि वह अपने वसीयत के सारे कागजात लेकर अपने वकील के साथ आए और ससम्मान गांव को पूर्ण भक्ति के साथ वे कागजात सौपकर निश्चिंत हो वहां से चले गए।
उस दिन समय अत्यंत भावुक था, अभिमन्यु गुप्ता जिसे अब हमारे बीच नहीं रहे थे, सभी गांव वालों ने उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी,
दूसरी सुबह संपूर्ण ग्राम में अभिमन्यु गुप्ता की मुक्ति का समाचार सुन लिया, समस्त किर्याक्रम के बाद जब बात वसीयत की आई तब वकील ने पूरी ग्राम सभा के समक्ष वसीयत विधिवत पढ़कर सुनाई और तब उस आश्रम की जमीन को जो गांव के नाम छोड़ गए थे, उसे गुप्ता आश्रम के नाम से संबोधित किया, जिसकी भागदौड़ गांव के कुछ ग्राम प्रधानों के हाथ सौंप दी...
सब ने तय किया कि उस चालीस बीघा जमीन को एक वास्तविक आश्रम की तरह ही रखा जाएगा, बिना कुछ विशेष आडंबर के वहां एक मंदिर की स्थापना भी की जाएगी, जिसके निर्माण का संपूर्ण खर्च ग्रामसभा उठाएगी और शेष तीन सौ बीघा जमीन इन तीनों भाई बहनों में बांट दी गई, जिसे तीनों ने यह कहकर बंटवारे से मना कर दिया कि हम तीनों एक ही पिता की संताने, हम तीनों को बंटवारे की आवश्यकता नहीं, वास्तव में दोनों भाइयों का मकसद कुछ और ही था, क्योंकि वह बहन को दिए हुए और आश्रम के नाम बेकार में दी गई संपत्ति से खुश नहीं थे,
दोनों भाइयों ने षड्यंत्र रचा, आज अपनी बहन को ले यहां आए थे, उनका विचार था कि वह धोखे से लौटते वक्त जंगली जानवरों के बीच उस मंदिर में अपनी बहन को छोड़ जाएंगे और सुबह किसी बात का बहाना बना उसकी मौत के पश्चात शेष संपत्ति को अपने नाम करवा लेंगे, क्योंकि उस मंदिर में रात्रि में जाने की स्पष्ट मना ही होती है।
लेकिन वह भूल गए थे, कि दुनिया में बहुत सी ऐसी शक्तियां है, जो स्त्री पक्ष का साथ देकर उन्हें न्याय दिलाती है, भला सुधा कैसे कुछ हो सकता है।
जैसे ही उन धूर्त भाइयों ने मंदिर में पूजन के पश्चात बहन सुधा को पानी लेने भेज खुद गाड़ी ले वहां से भाग खड़े हुए ,तब तो सुधा ने पहले पहल यह समझा कि शायद भाई कुछ सामान लेने गये है, लेकिन जैसे शाम ढलने लगी तो उसे कुछ कुछ समझ आने लगा , और अब तो सुधा समझ चुकी थी ,कि माजरा क्या है????
और यही सोच उसने अंतत वही भवानी के मंदिर की चौखट पर शांतिपूर्वक बैठ, सुबह के इन्तजार में बैठ गई, उसके मन में डर तो बहुत था, लेकिन अब वह करती भी क्या????वह मन ही मन किसी ईश्वर को पुकारती, तभी देखते ही देखते रात हो चली और उसे भी अब डर बहुत ज्यादा लगने लगा।
तभी कुछ लोगों को तलवार और भाला लिए मंदिर की ओर आते देख सुधा को तो ऐसा लगा कि शायद वह मदद के लिए आए हो, तभी उसे कुछ शक हुआ और वह उस मंदिर की चौखट से आगे ना बड़ी और उसका शक सही निकला, और उसने सुना हां वही लड़की.. उसी मंदिर से बाहर लाओ,
मार दो, उसे मार दो...वह ज्यादा कुछ कह पाती की जोरदार तमाचा ने उन्हें हिला कर रख दिया,
वह कुछ समझ पाती, उसके पहले ही उन्होंने देखा कि वहां एक प्रकाश की तरह चमकती हुई आभा लिए कोई लड़की खड़ी हैं, बड़ी विचित्र माया और ऐसा भयभीत वातावरण उन्हें लगने लगा, और ये सब देख वे घबरा गए और मुड़ते ही इससे पहले ही वहां शेरों का समूह आता नजर आया, जिसे देख सभी भाग खड़े हुए, तभी कायरा ने अपनी शक्ति से उन सभी को वही एक रस्सी से उन सब को बांध दिया।
उन सभी शेरों ने आकर मंदिर को किसी रक्षक की तरह घेर लिया, और सुधा ने देखा की कायरा ने उसे पूर्ण रूप से आश्वस्त कर शांत बैठने को कहा, इधर थोड़े ही समय में ग्राम प्रधान कुछ लोगों को लेकर मंदिर आए, तब सुधा ने उन्हें संपूर्ण वृतांत सुनाया, तब तो सभी आश्चर्यचकित थे।
सभी ग्रामवासी ने कायरा को देख पूछा कि तुम कौन हो ???और तुम्हें कैसे पता कि सुधा यहां है, तब कायरा ने कहा कि मैं जब कोई किसी स्त्री के साथ बुरा करने का मात्र सोचता भी है तो मुझे पता चल जाता है और मुझसे कुछ नहीं छिपा है।
गांव वाले ने पूछा कि सुधा के साथ आखिर ऐसा किसने किया ????तब कायरा ने कहा कि सुधा के दोनों भाइयों ने जायदाद के लिए सुधा के साथ ऐसा बर्ताव किया, उन लोगों की योजना थी कि वे लोग सुधा को मारकर, जो सुधा के नाम जायदाद हैं, वह भी अपने नाम कर ले,
गांव वालों के सामने झूठा तमाशा कर रहे थे कि हमें जायदाद का कुछ भी हिस्सा नहीं चाहिए, लेकिन मन ही मन वह सुधा का भी हिस्सा ले लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुधा के लिए यह षड्यंत्र रचा, और इसकी भनक जैसे ही मुझे लगी तो मैं यहां सुधा को बचाने के लिए पहुंच गई,
थोड़े ही देर में वहां कायरा सुधा के भाइयों को लेकर आती है , और उन्हें जैसे ही दंड देने के लिए होती, तब सुधा कायरा से कहती कि कायरा मेरे भाइयों को माफ कर दो, शायद इन्हें इनकी गलती का एहसास हो गया हो,
दोनों भाई शर्मिंदा थे, और उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था, और वे सुधा से माफी मांग रहे थे, तभी कायरा ने उनसे कहा कि आज तुम्हारी बहन के कारण केवल मैंने तुम्हें छोड़ा है, वरना मैं तुम्हें इस घिनौने अपराध की ऐसी सजा देती कि तुमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।
लेकिन सुधा अब पुनः घर ना लौटना चहती थी, वह अब उसी गांव के आश्रम में जो उसके पिताजी के नाम से बनाया गया था, वही रहने का फैसला किया, और उसने कायरा को धन्यवाद किया कि,
तब कायरा ने सुधा से कहा कि जब भी तुम्हें मेरी जरूरत होगी, तुम मुझे एक बार पुकार लेना, मैं तुम्हारे समक्ष आकर खड़ी हो जाऊंगी, कहते हुए कायरा वहां से चली गई।और अब सारा गांव सुधा को अपनी बहन की तरह मानता और पूरा ग्राम कायरा की दुहाई देते ना थकता.........
इस प्रकार कायरा ने सुधा को अपने भाइयों से बचाया, अब कायरा का अगला कदम क्या होगा????
अब वह किसे न्याय दिलाएगी????
शेष अगले भाग में...........