अब ज्यादा शोर मत मचाओ, त्यौहार मनाने आई हो, तो खुशी खुशी त्यौहार मनाओ, और जाकर अपना अपना घर संभालो.........
हमने किसी में कोई भी भेदभाव नहीं किया, और ना ही किसी को पढ़ने से रोका, जो जिस लायक था उसे वह बराबर मिल गया, अब यह कह देना कि कोई कहां है???? और हम वहां नहीं पहुंच सके।
कह कर खुद की कमजोरी को मत दर्शाओ, और अभी भी कौन क्या कर रहा है?? यह भी मैं भली भांति जानता हूं, ऐसे ही पिछले कई सालों से मुझे गांव के लोगों ने सरपंच नहीं बना रखा है।
चौधरी साहब गुस्से में अपने बच्चों को समझा रहे थे, क्योंकि उनके सामने उन्हीं की बड़ी बेटी और छोटे बेटे ने आकृति को लेकर कुछ भला बुरा कहा, यह सोच कर कि शायद पिता होने के नाते वे उनका ही पक्ष लेंगे।
उनके बच्चों का ऐसा मानना है कि आकृति को पढ़ाई को लेकर चौधरी साहब ने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है, और शायद इसलिए वह आगे बढ़कर पूरे जिले की तहसीलदार है, और वहीं उनका बेटा मात्र पटवारी तक ही पहुंच पाया। बेटियों को इतनी छूट और सुविधा देने के बावजूद भी कुछ ना कर पाए, और इसलिए धीरे-धीरे उसने उनकी परिधि अपने ससुराल की चारदीवारी में कैद होकर रह गई।
कहने को तो वे लोग अपनी भाभी का गुणगान बढ़-चढ़कर समाज में करते, लेकिन कहीं ना कहीं उसे पीछे रह जाने की ईर्ष्या उन्हें अंदर ही अंदर गुस्सा दिलाती रहती, लेकिन अपनी कामयाबी और लापरवाही किसे बताएं, यह सोचकर शांत रह जाती, क्योंकि वास्तव में यह बात सभी जानते कि कैसे पूरे दो साल एकांतवास गुजारा,
अपने बड़े बेटे की शादी आकृति से होने के बाद उन्होने अपने पूरे परिवार को शहर में आकृति के साथ रखा था, ताकि उसके साथ रहकर वे लोग भी कुछ समझ पाते, वे खुद ही जानते हैं कि किस महत्वाकांक्षा से उन्होंने बहू की पढ़ाई को लेकर अपने बच्चों के लिए क्या-क्या अरमान नहीं सजोए होंगे।
उन्हें पूरा विश्वास था कि आकृति के साथ रहकर दोनों बेटे और दोनो बेटियां कहीं ना कहीं प्रभावित होकर थोड़ी त्यारियां कर लेते तो शायद किसी बहुत बड़े ना सही छोटी मोटी सरकारी नौकरी तो प्राप्त कर ही लेते, लेकिन अफसोस दोनों लड़कियों ने शहर को आजादी का रास्ता और छोटे बेटे ने सिर्फ परंपरा समझकर वे दो साल काटे।
फिर भी दोनों भाइयों ने पटवारी तक सफलता प्राप्त कर ली, और इसी बीच आकृति एक कदम आगे तहसीलदार तक पहुंच गई, मजबूरन चौधरी साहब ने दोनों बेटियों की शादी पड़ोस के गांव में कर दी,
उनकी दूरदृष्टि थी कि उन्होंने दामाद का चयन उसी गांव की सरकारी नौकरी वाले लड़कों से किया, उन बच्चों की मां ने भी( शीला देवी) सबका बराबरी में सहयोग किया, बिना किसी अंतर के पूरी शालीनता के साथ बहू और बेटियों में कोई भी अंतर ना रखा, और शायद यही बात दोनों बेटियों को हमेशा खलती रही, वे हमेशा सोचती थी कि भाभी को मां पिताजी ने सर चढ़ा कर रखा हैं, क्योंकि हर ससुराल एक जैसा नहीं होता और इसलिए यदा-कदा भी मौका मिलते ही आकृति की बुराई करने से वे नहीं चूकते और शायद ऐसा करके उन्हें परम संतुष्टि मिल जाती।
यही सोचकर आकृति भी उनकी नादानी को माफ कर देती, लेकिन शायद आज उनकी यह हरकत चौधरी साहब के सामने उजागर हो गई, और उनका क्रोध उभर आया। इधर गांव का कायाकल्प हो रहा था, ग्राम विकास के नाम पर अनेकों योजनाएं आ रही थी,
सड़कों का निर्माण, नलकूप योजना, जलाशय और बांध की रचना , सिंचाई के साधनों का नवीनीकरण और साथ ही साथ अनेक पंचवर्षीय योजना किसी बाढ़ की तरह एक साथ सामने आ रही थी,
सरकार जैसे संपूर्ण देश की काया को बदल देने की सोच रहा था, ग्राम विकास के नाम पर पैसा पानी की तरह बहा रही थी, इसी बीच अचानक आकृति का देवर केशव की नजर एक पच्चीस एकड़ की बेनाम संपत्ति पर पड़ती है, जो पहाड़ी जमीन थी, और किसी के भी नाम पर दर्ज नहीं थी, शायद इसलिए क्योंकि उस समय तक पहाड़ों को सिर्फ प्राकृतिक विरासत और जड़ी-बूटियों के खजानों के रूप में पूजनीय योग्य ही माना जाता था, लेकिन जब बात मुआवजे की हुई तो बीच रास्ते में पढ़ने वाली हर जमीन पर सरकार बराबरी का मुआवजा देती है, और इसलिए केशव के मन में लालच आया और उसने अपने मन की बात आकृति के सामने बेझिझक रख दी।
केशव चाहता था की आकृति और वह दोनों पटवारी और तहसीलदार पद का दुरुपयोग करके उस संपत्ति को उनके परिवार के किसी भी सदस्य के नाम कर दें, ताकि मिलने वाली करोड़ों की मुवाअजे की राशि से वह रातों रात मालामाल हो जाए, और शायद इसमें कोई कठिनाई भी नहीं थी, क्योंकि चौधरी साहब की जमीन उस पठार के आसपास चारों और मिली हुई थी, और उनका परिवार पुस्तैनी सरपंच था तो शायद किसी का ध्यान भी नहीं जाता।
लेकर आकृति ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, और केशव को डांट लगाते हुए बड़े प्यार से समझाया कि उसे सरकार ने किस काम के लिए रखा है, और किसी भी प्रकार का गलत काम को वह ना करें, और ना करने की सलाह दे।
केशव ने हिम्मत करके और पिता और भाई से बात की, लेकिन वे दोनों भी ना माने, लेकिन उसके सर पर तो जैसे जमीन पाने का भूत सवार था, और अपनी बात टालने और आकृति की समझाइश को अपना अपमान समझ बैठा था, और इसलिए उसने गहरी साजिश रची,
जिसमें गांव के समीप दूसरे पहाड़ को कुछ लोगों के साथ मिलकर डायनामाइट से उड़ाने का प्लान बनाया, और इसी बीच उसने आकृति को दोपहर के समय उसी रोड पर सर्वेक्षण के लिए बुलाया गया, और जैसे ही आकृति गाड़ी से उतरी, अचानक सायरन के साथ डायनामाइट फट गया, और पत्थरों के ढेर से आकृति की गाड़ी ढक गई, जिसके कारण आकृति और उसकी टीम को गहरी चोट आई,
चूंकि आकृति गाड़ी से उतर चुकी थी, और उसे संभलने का मौका नहीं मिला, इसलिए वह बहुत बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त होकर और कोमा में चली गई, इतने पर भी पूरा गांव शोक मना रहा था, लेकिन केशव की हरकतें चौधरी साहब को स्पष्ट बयां कर रही थी, कि कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गड़बड़ है।
आखिर केशव ने आकृति के साथ ऐसा क्यों किया?????
क्या आकृति बच पाएगी??????? और केशव की सच्चाई सबको बता पाएगी??????
शेष अगले भाग में.........