विक्रम के पास इतनी संपत्ति थी, कि यह कल्पना शायद उसके घर वालों ने भी ना की थी, कल तक जिस विक्रम को उनके रिश्तेदार अवघड़, पागल, घुमक्कड़, बेकार आदमी और ना जाने क्या क्या समझ कर धुधकारते थे, अचानक उसके गायब होते ही ना जाने कहां से इतनी संपत्ति प्रकट होने लगी, जिसकी कल्पना खुद उसके परिवार वालों ने भी न की थी।
कोई भी नहीं सोच सकता की हवेली की जर्जर दीवार से लगा हुआ मकान, इतनी संपत्ति का मालिक हो सकता है, कि एक हवेली बनाई जा सकती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि विक्रम है कहां??????
कहीं ना कहीं उसकी चिंता सबको सता रही थी, क्योंकि भले ही वह घुमक्कड़ रहा हो, या उसे किसी ने बेकार कहा हो, लेकिन लोगों का ऐसा ऐसा मानना है , कि उसने मदद सबकी की, जब भी कोई मुसीबत में होता, वह घूमता हुआ वहां पहुंच जाता, और सबसे बड़ी मजे की बात तो यह है, कि मदद करने के बाद वह सब को यह कह देता की कृपा कर किसी को यह बात मत बताना।
लोग भी ऐसे ही थे, भला कौन बताता ????गांव के सबसे बेकार कहे जाने वाले व्यक्ति ने उनकी मदद की है, शायद यह बताने से कोई यकीन भी ना मानता, तब लाभ भी क्या बताने का.....
कई बार लोगों और रिश्तेदारों ने पूछा और सोचा भी कि आखिर यह पागल करता क्या है??? भीख मांगता नहीं, चोरी जैसे कोई अवगुण नहीं, फिर आखिर घर चलाता कैसे हैं????
यह सोच कर एक बार गांव के कुछ फुरसती लोगों ने लगातार उसके ऊपर अचानक नजर रखना शुरू किया, यह सोच कर कि इसके पास किसी खजाने का पता हो, तभी यह कुछ न करते हुए भी बड़ी बेफिक्री से घर चला लेता है,
विक्रम के दो बेटे और एक बेटी थी, जिन्हें खुद ही न पता था कि हमारे बाबा क्या करते हैं, जब लोगों ने बहुत खोजबीन की, और उनका पीछा किया, तब उन्होंने देखा कि विक्रम का पीछा करते समय अचानक वह ना जाने किस रास्ते से गायब हो जाता, और फिर ना जाने थोड़ी दूरी पर किसी नदी या पहाड़ी के बीच नजर आता,
बीच की दूरी उसने कैसे और कब तय की, यह कोई नहीं जान पाया, फिर भी कुछ लोगों ने बहुत दिनों तक उसके ऊपर किसी खजाने की खोज की तरह नजर रखी, और तब पता चला कि वह कुछ उपयोगी जड़ी बूटियों को बहुत शिद्दत से चुनता और उसे मूल रूप में ही ले जाकर राजसी परिवार और कुछ नामी-गिरामी लोगों को दे देता,जिसके बदले में उसे जो राशि मिल जाती, उसी से उसका जीवन यापन चलता था।
लेकिन वह ऐसी क्या चीज चुनता था, यह पूछने पर भी उसने लोगों को नहीं बताया, हां एक बार की बात जरूर है कि गांव का कुम्हार अचानक बहुत परेशान होकर उसके पास आया, और अपनी बराबरी का समझ उसने विक्रम से मदद मांगी।
तब विक्रम किसी और काम में लगा था, और शायद वह काम उसके लिए बहुत जरूरी था , पूछने पर उसने कुम्हार को बताया कि माफ करना, आज मेरे लिए पत्तों को सुखाना जरूरी है, अगर तुम चाहो तो तुम्हें धन मिल सकता है, लेकिन उसके लिए तुम्हें मेरे पास रखें एक पत्ते को बिना कोई क्षति पहुंचाए महल के पास वाले बड़े सुनार के पास ले जाना होगा।
लेकिन यकीन मानो तो मैं तुम्हें एक पत्ता दे सकता हूं, कुम्हार को पहले आश्चर्य और क्रोध आया कि, मैं यहां मदद मांगने आया हूं, और यह आदमी मुझे पत्ता थमा रहा है, वह भी इस बहाने के साथ कि उस पत्ते को सुखाना है।
यदि मदद न करना है, तो सीधे सीधे मना कर दे, भला यह कौन सा तरीका है, लेकिन कुम्हार भली-भांति यह बात जानता था ,कि गरीब आदमी कभी भी किसी दूसरे गरीब का मजाक नहीं बना सकते ,और परिस्थिति भी ऐसी थी कि अभी उसके पास कोई चारा शेष नहीं।
और फिर उसने सुन रखा था, कि विक्रम ऐसी ही चीजों के भरोसे अपना घर चलाता है, क्या भरोसा ....कुछ काम की चीज दे रहा हो ,जिसके बदले में वाकई उसे सुनार मनचाही रकम दे दे, और फिर जितने विश्वास के साथ उस सुनार का पूरा नाम लेकर पुकाराना, विश्वास करने पर मजबूर कर देता है , कि वह विक्रम की बात मान जाए।
विक्रम ने उन्हीं पत्तों में से एक पत्ता उठाकर, एक विशेष पोटली में रखा, और कहा जाकर कहना बाकी के पत्ते सूख रहे हैं, सूख जाने पर मिलाकर किमत चुका दूंगा,अभी जरूरत है मदद के लिए, इसलिए इसे मनचाही राशि प्रदान की जाए।
उसकी बात सुन कुम्हार ने सोचा कि, बिना यह जाने की राशि कितनी होगी, आखिर यह पागल कह क्या रहा है ????
लेकिन चलो देख लेते हैं, वैसे भी कोई दूसरा उपाय नहीं है, क्योंकि साहूकार के पास यदि गया तो कुछ भी शेष ना बचेगा।
और उसने यह बात जाकर अपनी पत्नी को बताई, और पोटली को दिखाया, जिसमें सिर्फ एक पत्ता हिफाजत से रखा था, उसकी पत्नी ने सिर पीटते हुए कहा, तुम भी कहां उस पागल के झांसे में आ गए।
फिर भी ना जाने क्यों कुम्हार को उसकी बातों पर यकीन था, तब उसकी पत्नी ने अपने कुछ जेवर निकालकर उस कुम्हार को देते हुए कहा, चलो ठीक है,
जब जा ही रहे हो और विधाता की यही मर्जी है, तो एक काम करो, यदि बात ना बने तो मेरे यह गहने बेचा देना, लेकिन खाली हाथ मत लौटना,अभी हमारे लिए कम से कम कुछ धनराशि का जुगाड़ करना अनिवार्य नहीं तो बारिश के मौसम के बाद कुछ भी शेष ना बचेगा, जाओ आगे जैसी विधाता की मर्जी।
लेकिन जैसे वह निकलने को तैयार हुआ, उसे बीच रास्ते में ही विक्रम मिल गया , और कुम्हार को बताया कि वह सिर्फ मुख्य सुनार से मिलकर ही मेरा यह पता दिखाएं, किसी भी किमत पर किसी और को मत सौंपना।
कुम्हार ने ठीक वैसे ही किया, सीधे बूढ़े सुनार के पास जा उस पोटली को रखा, जिसे देखते ही उसने एक बार कुम्हार को एकटक ऊपर से नीचे देखते हुए कहा।
क्या कहा विक्रम ने ??????विक्रम का नाम सुनते ही कुम्हार भौचक्का रह गया, क्योंकि उसने यह ना सोचा था, इतना बड़ा सुनार, यूं ही इस पोटली को देख कर भाप जाए कि वह उस विक्रम के द्वारा दी गई है, जिसे सब लोग ना जाने क्या क्या कह कर पुकारते थे, उसे विश्वास हो चला कि उसका कार्य तो निश्चित हैं,
लेकिन आखिर विक्रम है कौन ?????यह सवाल उसके जहन में बार-बार उठ रहा था।
शेष अगले भाग में.....