समय के साथ-साथ हर परिस्थिति बदलते जा रही थी, राज्य शासन बदलते गए , और उम्र के पड़ाव में अब विक्रम को एक जगह ठहरने पर मजबूर कर दिया, और वह पहले की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान बहुत कम समय में आना जाना नहीं करता था,
उसके साथ ही उसके पाले हुए कबूतर और अन्य संदेशवाहक जैसे तोते, मोर और कुत्ते की संख्या कम होती जा रही थी, क्योंकि पूर्ण प्रशिक्षण दे पाना और नए वफादार तैयार करना, अब उसके बस में ना था।
नए सेवादार भर्ती हो रहे थे, और परिचय के बिना विक्रम को हर जगह पेश कर पाना संभव न था, अब वह उन गोपनीय सभा में भी नहीं जा पाता, जहां नए सदस्य उन्हें पहचान सके,
लेकिन हां हर गुप्तचर की अपनी विशेष पहचान, पदवी और स्थान होता है, उसे किसी भी राज्य काल की सीमाएं बांधकर नहीं रख सकती है, वह इन सबसे परे होता हैं,
आज भी एक रिक्त आश्रम जिसे प्रधान के भी प्रधान जो आ पाने में सक्षम है, नमन कर अपने स्थान पर बैठते थे, नए लोगों के लिए प्रश्न चिह्न जरूर पैदा करता था,
सबको पता था कि कोई एक तो ऐसा है, जो आज भी इस राज्य में है ,और अनेकों राज्य अपने साथ लिए हुए हैं, लेकिन कौन???? कोई नहीं जानता, क्योंकि विक्रम ने आज तक अपनी पहचान अपने परिवार से भी छिपा रखी थी, तो भला और कोई कैसे जानता?????
सिवाय उन चंद लोगों के, जिन्हें मदद मिली थी, किसी न किसी रूप में। विक्रम ने अब अधिकतम समय अपनी कुछ जमा पूंजी के साथ खेत में बिताना शुरु किया, उसके तीन बेटे और दो बेटियां थी, बुढ़ापा आने से पहले ही विक्रम ने सभी बेटे बेटियों की शादी अच्छे परिवार में करा दी ।
और लगभग तीस से चालीस एकड़ जमीन में खेती कर अपना जीवन बिताने लगा, समाज के लिए विक्रम अब थोड़ा सुधरा हुआ और संपन्न किसान के रूप में था, उसकी छवि और परिचय बदल चुका था,
तीनो बहुओं में सबसे छोटी जो विक्रम को अपने पिता की तरह मानती थी, क्योंकि वह अपने पिता को खोने के बाद पिता के महत्व को भलीभांति जानती थी, इसलिए उसका आदर भाव विक्रम के लिए अलग ही था।
लेकिन एक दिन उसने अपने ही पति को अपने भाइयों के साथ मिलकर पिता पर संपत्ति का बंटवारा और किसी जमा पूंजी की जानकारी से संबंधित दबाव बनाने की बात करते हुए सुना, जिस पर उसने तुरंत सब को टोकते हुए ऐसा ना करने को कहा, और शायद उसकी यही सबसे बड़ी भूल बन गई।
दूसरे दिन गांव वालों ने उसकी लाश को कुएं में पाया, इस खबर के साथ की तड़के सुबह पानी भरते हुए वह कुएं में गिर गई, इतना बड़ा गुप्तचर भला घर के भेद को कैसे ना जान पाता।
उसने विरोध किया और नतीजा यह हुआ, कि देखते ही देखते कुछ दिनों बाद विक्रम अचानक गायब हो गया, बेटों ने पंचों के सामने पिता की गुमशुदगी की खबर रखते हुए, बंटवारे और जमा पूंजी की जानकारी निकलवाने हेतु गुहार लगाई, लेकिन सरपंचों ने साफ शब्दों में झिड़की लगाकर टाल दिया, कि पहले पिता का पता लगाओ, बाद में सब कुछ देखा जाएगा।
इधर विक्रम को गायब हुए लगभग दस दिन हो चुके थे, उसका कोई अता-पता नहीं था, बूढ़ा कुम्हार पुरजोर कोशिश में लगा था, बिना किसी को बताए विक्रम की खोज में।
लेकिन वह मिलता कैसे???? विक्रम तो अपने ही बेटों के द्वारा बतौर सजा के एक तह खाने में बंद था, जहां सिर्फ़ चट्टानों से टपकता, पानी और झरोखों से आती हवा के अलावा कुछ भी ना था।
उसके बेटे इतने जल्दी निर्मोही और क्रूर हो जाएंगे, उसने सोचा भी ना था, कि अचानक ग्यारहवे दिन उसके बड़े बेटे ने तंग आकर, नींद में परेशान करने वाले कबूतरों को एक साथ खोल कर उड़ा दिए, और देखते ही देखते शाम तक सैनिको का एक समूह विक्रम के घर के सामने आकर खड़ा हो गया।
सैनिकों की इतनी बड़ी मात्रा में विक्रम के घर को छावनी में तब्दील कर दिया, पहले पहले प्यार से पूछा, और फिर विक्रम के बेटों को अगली सुबह तक पता ना देने पर कारावास में डाल देने की धमकी दे।
एक प्रधान प्रमुख के दल ने वही घर के सामने अपना डेरा डाल दिया, पूरे गांव में यह पहली बार विक्रम की ऐसी खोज को देखा था, सारा गुप्तचर विक्रम की खोज में निकल पड़ा,
इधर छोटी बहू की मृत आत्मा अतृप्त रूप से भटकती हुई कायरा से जा मिली, और मदद की गुहार लगाई।
कायरा को सारा सच जान कर देर ना लगी, और वह अत्यंत क्रोध में प्रधान प्रमुख के बुजुर्ग दल के पास जा पहुंची ,और सारी बातें विस्तारपूर्वक कह सुनाई, और दंड के रुप में छोटे बेटे के कमरे में जाकर तेज अट्टहास के साथ पहले उसकी पत्नी का सच पूछा, और उसके पश्चात उसे कुएं में डूबा कर मार डाला,
क्योंकि सबसे बड़ा दोषी वही था, जो अपनी पत्नी का साथ ना दे सका, और खुद उसकी पत्नी के मौत का जिम्मेदार बन गया।
शेष भाइयों को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया, और विक्रम को तहखाने से निकाल गुप्तचर प्रधान ने किसी गुप्त जगह पर पहुंचा दिया, जहां से वह अपने ही तरह नए गुप्त चर तैयार कर सके,
गांव वालों ने देखा ,कि विक्रम के खेत की सारी मेढे अथाह धन से भरी पड़ी थी, सेना ने देखते ही देखते खेत खलियान जगह-जगह खोदना शुरू किया, और वहां से अथाह संपत्ति निकली, जिसकी कल्पना गांव वालों तो क्या खुद उसके बेटों ने भी ना की हो।
उसे पछतावा था अपनी गलती पर, लेकिन अफसोस कोई फायदा नहीं, सारा धन विक्रम के साथ राजकोष में जमा कर दिया,
उनके बेटों को पहले सजा फिर जमीन का आधा टुकड़ा मात्र जीवन यापन के लिए दिया गया।
उधर मेरी सखी कायरा ने उस संपत्ति को भी खोज निकाला, जिसे विक्रम ने अपनी छोटी बहू के नाम से सुरक्षित रखा था, लेकिन अब तक किसी को नहीं बताया था, वह विक्रम से एकांत में मिली ,और उसका कानून जानना चाहा।
जिसमें विक्रम ने कुम्हार का वर्णन किया,जो उसकी बहू के नाम पर एक गुप्त संपत्ति से एक गौशाला , विद्यालय और एक सुंदर सा बगीचा बनाने के लिए कुम्हार को माध्यम बनाने की सलाह दे, कायरा को विदा किया।
कायरा ने अंतिम बार अपनी शक्ति से उसकी बहू को बूढ़े विक्रम से मिलाया, जिसे नम आंखों से विक्रम ने विदाई दी, कुम्हार ने कायरा और विक्रम की सलाह मान और अतिरिक्त राशि लगा कर विक्रम की इच्छा को यथावत पूरा किया,
जिससे उसकी छोटी बहू की मृत आत्मा को शांति मिल सके, लेकिन कायरा का कार्य यहीं पर खत्म नहीं होता, उसे तो अभी खुद के अतीत से लड़ना बाकी था, लेकिन कैसे????
शेष अगले भाग में.......