किसी अदृश्य सुरक्षा कवच ने उसका मुख मोड़ दिया, और अपने साथ निशांत को किसी चोर की तरह उठाकर ले गई ,और वह शक्ति बिना किसी को नुकसान पहुंचाए शान्त हो गई,
कायरा अत्यंत क्रोध के साथ देखने लगी, लेकिन तभी उसे अपने गुरु के पास होने का एहसास हुआ, और अपनी भूल को समझ लाचारी और क्रोध मिश्रित आसूं के साथ किसी बच्चे की तरह फफक फफक कर रोने लगी।
गुरुजी ने उसे पिता की तरह अपनी गोद में सिर रख बड़े प्यार से समझाया, और कहा शक्तियों को हासिल करना हर कोई चाहता है, लेकिन उसके लिए बलिदान करना कोई नहीं चाहता, कायरा मेरी बच्ची मुझे गर्व है, कि तुमने अपने स्वार्थ से कहीं ज्यादा बढ़कर इस प्रकृति के बारे में सोचा।
आज फिर तुम एक अनचाही परीक्षा में पास हो गई हो, शायद मुझे इसके लिए अलग से परीक्षा लेना होता है, एक नई पृष्ठभूमि के साथ ,लेकिन अब उसकी कोई आवश्यकता नहीं,
परंतु हर परीक्षा में शिष्य की किसी न किसी कमजोरी का प्रकट होना स्वाभाविक है, और अच्छा हुआ कि वक्त रहते हुए इस बात का ज्ञान हो गया, कहते हुए उन्होंने एलिना के सिर पर हाथ रखा, और अचानक ओस की बूंदो जैसी वर्षा के साथ अभिमंत्रित जल की चंद बूंदे, कायरा के माथे पर पड़ी, और वह पुनः एक नई शक्ति को अपने आप में महसूस करने लगी।
और गुरु कृपा से कुछ ही समय में सब कुछ सामान्य हो गया, गुरुजी ने कायरा को बताया कि संसार में माया के अनेकों रूप है, जिसका प्रभाव जल, वायु, अग्नि, निद्रा, भूख, प्यास, विरह, प्रेम और लालसा किसी भी रुप में माया किसी भी जीव को प्रभावित करने में सक्षम हो सकती है।
लेकिन आज मैं तुम्हें इस संसार की रचना करने वाले, और उसका संचालन करने के लिए खुद मायापति की संपूर्ण माया जल से मुक्त करता हूं, यह तुम्हारा गुरु का वचन है, कि आज के बाद किसी भी प्रकार का कोई भी विचार तुम्हारे मन में न्याय करते समय नहीं आएगा, चाहे फिर तुम्हारे सामने कितना ही सगा क्यों ना खड़ा हो।
माया चाहे बच्चे रूप में हो, मोहिनी रूप में हो, या फिर स्वयं, गुरु या पिता के रूप में अपना रूप तुमसे छिपा पाने में कोई भी शक्ति सक्षम नहीं होगी,
तुम आसानी से उसका वास्तविक रूप और परिचय बिना किसी पर्दे के सोचने मात्र से प्राप्त कर लोगी, अपना ख्याल रखना, कहते हुए गुरुजी कायरा को तपस्या का प्रसाद और अतिरिक्त शक्ति संचय हेतु देकर चले गए, और एलिना अब निरंतर शक्ति के नए से नए आयामों को प्राप्त करती चली गई।
ना कल तुम इस लायक थे, और ना ही आज, अच्छाई और बुराई दोनों में कोई समानता ही नहीं हो सकती, निशांत तुम्हें क्या लगा था, पिछली दफा तुम अपनी शक्ति से बच गए थे,
नहीं, तुम्हें मुझ से बचाकर दूर पहाड़ियों पर फेंक आने वाले मेरे गुरु सम्राट ही थे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मैं उम्र की उस अवस्था में तुम्हें दंड दे खुद को दोषी समझूं।
लेकिन जैसा कि उन्हें उम्मीद थी, कि तुम सही मार्ग अपनाकर पुनः एक नए सिरे से जीवन आरंभ कर दोगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, तुम तो मार्ग से इतना भटक चुके थे, कि खुद के मठ के द्वारा त्याग दिए जाने के पश्चात और बार-बार चेतावनी दिए जाने के बाद भी नहीं सुधरे ।
और अंत में अपने सारे कुटुंब को त्याग ना जाने कहां चले गए, निशांत तुम भूल गए, कि मेरी शक्तियों से मैं ब्रह्मांड के उस कोने तक को देख पाने में भी सक्षम हूं, जहां प्रकाश का लेश मात्र भी ना हो।
तुमने किस अंधकार की गोद में बैठ कर शक्तियों को प्राप्त किया, और तब से अब तक कितने ही दुष्कर्म किए, सबका ज्ञान है मुझे, लेकिन बिना वजह मैं हस्तक्षेप या पुनः मुलाकात नहीं चाहती थी।
तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारा अपराध कोई नहीं जानता था, किसी को नजर नहीं आएंगे, ईश्वर की दृष्टि से आज तक पत्थर के अंदर छुपा हुआ कीड़ा भी ना बच सका तो, तुम क्या चीज हो????
मैं तुम्हें पुनः चेतावनी देती हूं कि, कायरा को मजबूर मत करो कि तुम्हारा अस्तित्व ही मिटा दे, क्योंकि अब कायरा वह नहीं, जिसे तुमने धोखा देकर हासिल करना चाहा था।
मैं माया प्रपंचो से परे सात्विक शक्ति और विध्वंश शक्तियों के स्वामी काल पुरुष को भी जीत लेने की शक्ति रखने वाली महा शक्ति के तुल्य हो चुकी थी, और इसका मुझे लेश मात्र भी अभिमान नहीं है।
क्योंकि मेरे गुरु ने जिस तरह अपनी संपूर्ण शक्तियों को अर्पण कर प्रकृति में विलीन होना स्वीकार किया, ठीक उसी तरह मैं भी खुद को इसी प्रकृति का अंग मानती हूं, जिसमें अंहकार के लिए कोई स्थान नहीं।
निशांत तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, कि इस ब्रह्मांड में ना जाने कितनी ही कायरा होगी, लेकिन तुम सा कुटिल निशांत नहीं हो सकता, और ना ही अब होगा।
दुर्भाग्य है तुम्हारा कि आज तुम ठीक तुम्हारे ही तरह एक अहंकारी, अत्याचारी और स्त्री को महज एक तुच्छ प्राणी समझने की भूल करता है, जिसने हमेशा स्त्री को सामान्य ही समझा है,
अब भी वक्त है यदि तुम लौटना चाहो तो, क्योंकि मुझे तुम पर कोई दया नहीं ,लेकिन मैं इस भले तांत्रिक से प्रसन्न हूं, जिसने अपनी खुद की सुरक्षा कवच अपने शरणागत को प्रदान कर एक मिसाल पेश की है।
सावधान कहते हुए कायरा ने जमीन पर अपना एक पैर उठाकर पटका ,और देखते ही देखते एक झटके में वैभव का सुरक्षा कवच ना जाने कहां टूट कर बिखर गया, अब तो वैभव की दशा और भी खतरनाक हो गई, वह अपने को मरा हुआ समझ आंखे बंद कर घुटने टेके हुए बैठा था।
लेकिन अब तक वो यह समझ चुका था, कि उसका जीवन शेष बचना संभव नहीं है, इसलिए वह उठ खड़ा हुआ और अपना अंतिम दांव खेलते हुए उसने एक बार फिर हाथ फैला चीखकर कहने लगा....
ये शैतानी दुनिया के स्वामी निशांत मैं जानता हूं, कि अब और कोई उपाय शेष ना रहा, इसलिए मैं अपनी यह दुष्ट आत्मा तुम्हें सौंपता हूं, इससे पहले की यह कायरा मुझे खाक कर दे, उससे पहले मैं तुम्हें अपने आप को सौंपता हूं।
अब मुझे सरंक्षण नहीं विनाश चाहिए, मेरी सारी शक्तियां समाप्त हो जाए, लेकिन कायरा का अस्तित्व शेष नहीं बचना चाहिए।
बहुत हुआ यह समाज पुरुष प्रधान है, और रहेगा.....
काली शक्तियों को कोई नहीं हरा सकता, इन्हें बता दो कि सृष्टि पर जितना अधिकार सूरज की रोशनी का है, उससे कहीं ज्यादा रात के अंधेरे का भी है।
हां, कोई अपनी परछाई को अंधेरे के रूप में लेकर घूमता है, वहां भी सूर्य की रोशनी हमारा अस्तित्व नहीं मिटा सकती,
तब फिर भला यह कायरा क्या चीज है,
वह इससे पहले कि कुछ और कह पाता, कायरा ने एक ही झटके में महज अपनी उंगली के प्रहार से उसका सिर धड़ से उड़ा दिया, और अपनी फूंक मात्र से उसे राख के ढेर में तब्दील कर दिया, अब तक निशांत जैसे क्रोध में लाल हो चुका था,
क्योंकि अपने ही सामने अपने किसी शरणागत का वध होते देखना वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था, उसने तंत्र क्रोध से कायरा की और अपना प्रहार किया।
कायरा की और अपने हथियार छोड़े , जो कायरा को तो प्रभावित नहीं कर सके, लेकिन पलट कर फर्श से जा टकराये, और देखते ही देखते सारा महल भूकंप के झटके से चरमराकर गिरने लगा, जिसे कायरा ने महज अपनी मुस्कुराहट से स्थिर कर दिया।
आज कायरा तो जैसे निशांत की शक्ति को जैसे परखना चाहती थी, वह जानना चाहती थी कि आखिर अपना सब कुछ त्याग देने के पश्चात किसी व्यक्ति को भला क्या प्राप्त हो सकता है????
सात्विक शक्तियों के ऊपर बुरी शक्तियां कहां तक प्रभावी हो सकती है, निशांत ने जाने कितने ही प्रयास किये, और कायरा को चोट पहुंचानी चाही, लेकिन हर बार की तरह वह निष्फल हुआ।
जब वह समझ चुका था कि, अब कायरा को चोट पहुंचा पाना संभव नहीं, तब उसने अपना अंतिम दांव खेलते हुए चारवी और हैसल को अपना निशाना बनाया ,और दोनों को अपने पास में बांध महल की दीवारों में लटका दिया ।
कायरा अब तक निशांत की नादानियां को माफ कर रही थी, लेकिन जब बात चारवी और हैसल को चोट पहुंचाने की आई, तब तो जैसे सारी सीमाएं ही समाप्त हो गई, कायरा ने एक ही झटके में अपनी तीखी मुस्कान के प्रहार से निशांत की सारी शक्तियों को चूर चूर करते हुए उसे हवा से जमीन पर ला पटका।
उसके बाद बाल पकड़कर एक जोरदार झटके के साथ गर्दन को घुमा दिया, लेकिन निशांत भी कहा मरने वाला था, वह देखते ही देखते दो टुकड़ों में बट गया, और पुनः कायरा के सामने आ खड़ा हुआ, और ललकारने लगा।
कायरा अब और समय गंवाना नहीं चाहती थी, उसका एक-एक पल प्रकृति के लिए बहुत कीमती था, उसने तुरंत उन दोनों टुकड़ों को महल के बीचों बीच ज्वालामुखी प्रकट कर उसके हवाले कर दिया, और निशांत का शरीर पल भर में राख हो गया।
सिर्फ शेष बचा तो, एक चमकता हुआ काला हीरा, उसे कायरा ने काल पुरुष का स्मरण कर उनके हवाले कर दिया, जो आगे चलकर किसी भले कार्य में उपयोग कर सकें....
इस तरह कायरा अब काल पुरुष के वरदान और गुरु कृपा से प्राप्त शक्तियों के साथ स्वयं साधना के द्वारा और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गई,
अब कायरा संपूर्ण ब्रह्मांड में एकमात्र वह पंच तत्व से बने शरीर के साथ ऐसी शक्तियों की मालकिन थी, जिसने पंचतत्व के साथ ही साथ ब्रह्मांड की संपूर्ण शक्तियों को अपने वश में करना सीख लिया था।
अब वो तलाश में थी, अपनी उन सेविकाओं के जो उसी की तरह समाज कल्याण के लिए बिना किसी भेदभाव के अपने आप को समर्पित करने के लिए तैयार हो, जिसके लिए उसने चारवी और हैसल को अपनी अनंत शक्तियां सौंपते हुए ब्रह्मांड की सैर करने को कहा ,
ताकि वह ऐसी सेविकाओं के साथ अपना सफ़र तय कर सके, उसे विश्वास था कि मानव जाति में अवश्य ही कोई न कोई उसकी उम्मीद पर खरा उतरेगा।
🙏🏻🙏🏻समाप्त🙏🏻🙏🏻