अरुण कंपाउंडर और डॉक्टर तेजस मन ही मन में बस इसी बात को दिन भर सोचे जा रहे थे, कि आखिर प्रोफ़ेसर पॉल हमें कहां ले जाने वाले हैं?????
और यह हमारी डॉक्टरी दुनिया से बाहर की ऐसी कौन सी दुनिया है????जो वह हमें दिखाना चाहते हैं, जिसका ज्ञान हमें अभी तक नहीं है, उन दोनों का मन विचलित हुए जा रहा था कि, आखिर ऐसी कौन सी दुनिया है, जिसमें हमें आज नवनीत चटर्जी का सच पता चलने वाला हैं????
और कहीं ना कहीं दोनों मन ही मन घबरा भी रहे थे, और कुछ ना कुछ डर उनके मन में चल रहा था, बहुत सारे सवालों के जवाब थे उनके मन में, जिसका आज शाम का उनको बेसब्री से इंतजार था।
बड़ी मुश्किल से उन लोगो ने दिन काटा होगा, रात्रि लगभग आठ बजे प्रोफेसर पॉल ने नवनीत चटर्जी के चंद सर के बाल और नाखून लेकर ना जाने क्या सोचकर डॉक्टर तेजस और अरुण को ले अपनी रहस्यमई मुस्कान के साथ तेज गाड़ी दौडाते हुए शहर के बाहर आकर ओवर ब्रिज के पास गाड़ी रोक , और नीचे उतरकर पैदल ही चलने लगे।
देखते-देखते वे लोग एक पुल के नीचे बहने वाली नदी के किनारे एक झोपड़ी के पास जा रुके, उस झोपड़ी में मात्र एक दिप जो दूर से ही अलग ही टिमटिमाते हुआ नजर आ रहा था, नजदीक आने पर थोड़ा स्पष्ट नजर आने लगा, अरुण थोड़ा डरा हुआ था लेकिन उत्सुक भी था, तभी किसी बूढ़े की आवाज आई।
हां प्रोफेसर पॉल...... आ जाओ,
फिर, जी गुरुजी..... कह कर प्रोफेसर पॉल जैसे ही अंदर की ओर जाने लगे, तुरंत दूसरी आवाज आई, इसको मत लाना अंदर,
उसको वही छोड़ दो या रुको मैं ही आता हूं, अरुण को लगा कि शायद बुजुर्ग डॉक्टर तेजस या उसके बारे में बात कर रहें हैं, लेकिन उन्होंने बाहर निकलकर प्रोफ़ेसर पॉल की ओर देखते हुए कहा.....इसे लाने की क्या जरूरत थी?????? वैसे ही बोल देते, क्या तुम्हें इसके पहले सही जवाब ना मिले, जो इसे ही ले आये हो, चलो रखो उसको वहां, कहते हुए उन्होंने सामने जलती हुई आग की ओर इशारा किया और बोले कि उसके मुंह से सुनना है या मैं बताऊं......
यदि उससे सुनना है तो आग में डाल या फिर पास रख कर आ जाओ, आगे मुझ पर छोड़ दो, इतना सुनते ही प्रोफेसर पॉल ने उन बालों और नाखून को वही आग में झोंक दिया, अचानक वहां आग की लपटे भभककर उठने लगी, और वह बुजुर्ग किसी चूल्हे की तरह उसे आग से खेलने लगा, अचानक किसी के करहाने की आवाज के साथ नवनीत चटर्जी का चेहरा उस आग में नजर आने लगा, जिसे देख कर अरूण को पहले डर लगा, फिर क्रोध और जिज्ञासा दोनों एक साथ नजर आने लगी।
तभी तेज आंधी के साथ एक और प्रतिछाया वहां आकर खड़ी हो गई, वह एक सुंदर स्वरूप बिल्कुल काम की मूरत...... अचानक यहां कैसे?????
डॉक्टर तेजस और प्रोफेसर पॉल एकदम से पीछे हट गए, लेकिन उन बुजुर्ग के लिए तो जैसे यह आम बात थी, वे कहने लगे, कहो कायरा तुम्हारा इंतकाम तो पूरा हुआ?? फिर दोबारा क्यों आई हो तुम??? अब क्या चाहती हो????
कायरा ने उन बुजुर्ग को नमस्कार किया और बोली आप खुद जानते हो थोड़ी सजा अभी भी बाकी है, बुजुर्ग कहने लगे रुको......
पहले प्रोफेसर पॉल को जवाब मिल जाए,
बोल नवनीत??? तु खुद बता कहते हुए, उन्होंने उस आग को जैसे ही हवा में उछाला और किसी टीवी स्क्रीन की तरह नजर आने लगा कि कैसे नवनीत ने अपनी पत्नी परिधि को दुख देकर मारता था ,और कैसे उसे शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करता था?
और जब इसकी खबर कायरा को मिली, तब कैसे कायरा ने इस नवनीत चटर्जी को महज एक मुलाकात में अपनी ओर आकर्षित कर रात्रि में मिलने का वादा करती है, और यह बेवकूफ उसे आकर्षण समझ कायरा से मिलने का इंतजार करने लगता है,
और रात्रि में कायरा किसी हवा की तरह प्रकट हो जब उससे मिलती है, तब आंखे होते हुए भी यह अंधा कैसे काम के वशीभूत हो, कायरा को आलिंगन में लेने का प्रयत्न करता है,
लेकिन कायरा कोई सामान्य लड़की नहीं, वह उसे हाथ में जाम दे पीने का कहती है, जिसे नवनीत चटर्जी अपनी फितरत के अनुसार एक ही झटके में पी जाता है , और अगले ही पल अपना गला पकड़ जमीन पर लौटने लगता है, तब उसे अचानक परिधि का चेहरा नजर आने लगता है, जिसे देखते ही उसका चेहरा पीला पड़ने लगता है, और कायरा के इशारे पर परिधि ने अपनी एक उंगली नवनीत के माथे पर रखी, देखते ही देखते उसके नाक और मुंह से आग की लपटें निकलने लगी, और उसने वही तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
वास्तव में यह आग उसकी खुद की अंदरूनी थी, जिसे सिर्फ कायरा की मदद से परिधि ने परिवर्तित किया था अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ......
लेकिन अब क्या शेष बचा???? और दोबारा कायरा क्यों आई अचानक?
बुजुर्ग ने बोला, मेरा काम हुआ, यह गुनहगार तुम्हारा है, परिधि जाओ और इसके मस्तक को छुओ और झोंक दो इसको इस नरक में , इतना सुनते ही कायरा के समीप खड़ी परिधि ने हाथ घुमाया और उसके इशारे पर ही देखते ही देखते, उन चिंगारियां में नवनीत का घबराया हुआ चेहरा अचानक चितड़े चितड़े में उड़ गया, और इसी के साथ परिधि और कायरा उस बुजुर्ग को धन्यवाद दे विलीन हो गए।
प्रोफेसर पॉल , डॉक्टर तेजस और अरुण कंपाउंडर तो जैसे कोई सपना देख रहे थे, उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन अचानक तेज चलने वाली ठंडी हवाएं और बदला हुआ मौसम ने उन्हें होश में लाया, तब तो वह बुजुर्ग उनसे कहने लगा,
प्रोफ़ेसर पॉल, यही हैं कायरा का इंसाफ......
आप किसी को कोई कोर्ट कचहरी जाने की जरूरत नहीं, प्रकृति ने स्वयं अपना हथियार चुन लिया है,
यह कायरा..... जिसे तुमने देखा कोई सामान्य नहीं, असंख्य शक्तियों की मालकिन है, और इसका शायद जन्म इसी स्त्री पक्ष को इंसाफ दिलाने के लिए हुआ है,
उससे अरुण और कोई सवाल करता???? उससे पहले, शांत हुआ तुम्हारा क्रोध??????
हां.... हां..... बाबा कहते हुए उसकी जबान लड़खड़ाने लगी, क्योंकि आज तक ऐसा ना ही उसने और ना ही तेजस ने देखा था, और ना ही उसने इस तरह की कोई कल्पना की थी,
वापस जाकर जब उन्होंने देखा तो नवनीत के सिर में सुराख ठीक उसी तरह से था, जैसे उन्होंने वहां परिधि के हाथों में देखा था, हम समझ चुके थे कि इंसाफ किसी ना किसी रूप में इसी धरती पर होना है, कोई भी अछूता नहीं छोड़ सकता और खासकर जब कायरा आ चुकी है, इस धरती पर इंसाफ को साथ लेकर.....
लेकिन अरूण के मन में तो कुछ और ही चल रहा था, लेकिन क्या???????
शेष अगले भाग में...........