चाहे जो हो जाए, चाहे मुझे जो करना पड़े, अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता, भले ही इसके लिए मुझे अपनी जान ही क्यों ना देना पड़े, अगर दुनिया में रहकर इंसाफ ना मिले और शारीरिक शक्तियां साथ ना दे तो अब शरीर की आवश्यकता नहीं, और वैसे भी जो शरीर जन्म देने वाले के काम में ना आए, और उसके लिए मुसीबत बने, तब ऐसे शरीर का क्या लाभ????
इससे अच्छा तो मैं शरीर त्याग आत्मशक्ति में विलीन होकर उनसे प्रार्थना कर शायद कुछ चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त कर सकूं, और इस जीवन का कुछ तो सकारात्मक कार्य कर पाने में सक्षम हो जाऊं, कहते हुए अरुण तेजी से पर्वत की ऊंचाई चढ़ते हुए, झरने के उस छोर पर जा पहुंचा, जहां से जल के साथ गिरने वाला पत्थर भी जल की धाराओं के साथ चूर चूर होकर बिखर जाता है।
वह बड़बड़ा रहा था, कोई ऐसी शक्ति नहीं, जिसका जिक्र मैंने सपने में देखा था, कायरा जैसी कोई शक्ति ही नहीं है......
अगर होती तो क्या मदद ना करती?????
मां भी झूठी समझाइश देती, शायद कि मैं उनकी बातों में आकर ज्यादा फिक्र ना करूं, लेकिन कब तक उन्हें मैं तकलीफ में देखता रहूं,
और फिर आज तो जालिमों ने पता नहीं उन्हें कहां छिपा दिया,
कैसी होगी????? वहां सब ठीक तो होगा ना ?????
इस शरीर के साथ उन्हें ढूंढ पाना संभव नहीं, इसलिए हे मेरे मालिक, मेरे नहीं मां के खातिर मैं अपना यह शरीर तुझ पर कुर्बान करता हूं, मुझे शक्ति दे कि अब मैं उसकी मदद कर सकूं, कहते हुए अरुण ने झरने से छलांग लगा दी।
आंखें बंद कर वह कुदा तो था, जैसे यह उसका अंतिम क्षण हो, लेकिन अचानक उसे ऐसा लगा जैसे वह हवा में स्थिर हो गया हो, शरीर पर पड़ने वाले वर्षा की तरह जल की बूंदें उसे प्रफुल्लित करने लगी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर शक्ति का संचार होने लगा हो, वह बहुत समय तक अपने शरीर को जैसे भूल सा गया हो,
अरुण को एक पल तो ऐसा लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि शरीर धरातल पर पहुंच गया हो, और वह मात्र एक जीवात्मा बनकर हवा में लटक गया हो, लेकिन ऐसा भी नहीं कि वह इससे पहले कुछ सोच पाता, किसी हवा के तेज झोंके ने उसे उड़ा कर सामने वाले पर्वत शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया, और उसे एक चमकता हुआ प्रकाश नजर आया, उसने अपनी आंखों को रगड़ते हुए पुनः चकित ना होने की मुद्रा में उस प्रकाश कुंज की और देखा,
अनायास उसके मुंह से निकल पड़ा...
कायरा......क्या मैं सही हूं??????
यदि हां तो जवाब दो?????? क्या तुम कायरा ही हो, जिसके बारे में मेरी मां जिक्र करती है?????
सच कहो, यदि हां तो फिर पहले क्यों ना आई????
क्यों मेरी मां को ऐसी तकलीफ में देखती रही, क्या हमारी परीक्षा ली जा रही है, यदि हां तब तो मैं खुद अपने आप को समर्पित करने के लिए तैयार था, फिर मुझे क्यों बचाया ????
सही कहा अरुण तुमने, तुम्हें बचाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन अभी वह वक्त नहीं आया और वैसे भी अंतिम पड़ाव था, तुम्हारी मुसीबतों का......
ईश्वर भी बिना परीक्षा लिए यूं ही सब कुछ नहीं दे देता, लेकिन हां, यह बात कुछ और है कि तुम वास्तव में मदद के लायक ही नहीं हो, क्योंकि ऐसी बुजदिली करने वाले बेशक अपने आप को बहादुर समझे, लेकिन उनसे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं,
ना जाने कितनी योनियों के बाद मानवीय शरीर मिलता है, जिसमें संसार की सर्वश्रेष्ठ शक्ति को प्राप्त करने की क्षमता होती है, लेकिन वही मानव छोटी सी परेशानी में घबरा कर जब ऐसी बेवकूफी करें तो वहां मदद क्या माफी के भी काबिल नहीं,
अरुण तुम्हें सिर्फ इसलिए बचाया गया, क्योंकि तुम अपनी मां के जीवन का आधार हो, उन्होंने अब तक जो भी कष्ट सहे, वह मुझ पर भरोसा और तुम्हारी चिंता के कारण और तुम उन्हें यूं ही परेशानी में छोड़कर जाने का सोचते हैं,
तुम्हें तो मैं क्या ही कहुं, लेकिन अभी वह समय नहीं, बाद में बातें करेंगे, चलो कहते हुए एलिना ने हाथ घुमाया और अरुण उसके साथ जैसे हवा में तैरने लगा।
वे दोनों एक निर्जन गुफा के द्वार से होते हुए किसी तल घर में जा पहुंचे, जहां भाविका देवी आंसू बहाते जैसे किसी की आस लिए बैठी थी, अरुण को देखते ही उसके मुंह से निकल पड़ा, कायरा बड़ी देर कर दी, मैं कब से इंतजार कर रही हूं।
आखिर क्या मैं वाकई में गुनहगार हूं???? या किसी अनजाने गुनाह की हकदार हूं, लेकिन क्यों?????
वो इससे पहले कुछ और बोल पाती, कायरा शांत रहने का इशारा कर सिर्फ इतना कहा, नहीं कुछ भी नहीं..... इंतजार करो, अब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो चुका है भाविका...
मैंने तुम्हें पहले ही मना किया था कि प्रेम विवाह में परिवार और समाज की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती है, फिर ढूंढने से भी किसी का सहारा नहीं मिलता और देखो वैसा ही हुआ।
दुर्भाग्यवश तुम्हारे प्रेमी की मृत्यु के पश्चात उसके परिवार के लिए तुम्हारी इज्जत और जरूरत दोनों ही समाप्त हो गई, क्योंकि तुम से उनका कोई लेना-देना ही नहीं।
यदि वह तुम्हारे या तुम उनके वंशज होते तो कहीं ना कहीं समाज तुम्हारा साथ देता, खैर जो भी हो, उनका ऐसा व्यवहार बिल्कुल जायज नहीं, कहते हुए कायरा ने दीवार की ओर इशारा किया और बोली, भाविका जरा पीछे हटो, शायद इस विषय में तुम्हारे पति ने बहुत पहले ही सोच रखा था, और कहते हुए पास पडा एक कंकड़ उस तल घर की दीवार पर दे मारा, जिसमे किसी विस्फोट के साथ दीवार को तोड़ दिया और अचानक बड़ा खजाना नजर आने लगा,
तब कायरा कहने लगी, की अब तुम्हारा इस जगह से कोई वास्ता नहीं बचा, इसलिए ज्यादा अच्छा होगा कि तुम अपने गांव लौट जाओ,
यह संपत्ति वहां आगे की जिंदगी के लिए तुम्हारे काम आएगी, और तुम्हारा पुत्र भी इस लायक हो गया कि इस धन से एक नया व्यापार प्रारंभ कर एक अच्छी जिंदगी बिता सके, बाकी दोषियों को सजा देने का काम मैं देखती हूं,
मैं अपनी आत्मशक्ति से इस खजाने को सुक्ष्म रूप में परिवर्तित कर तुम्हें, तुम्हारे पुत्र के साथ गांव की सीमा तक भेज रही हूं, फिर जरूरत पड़े तो याद करना, कहते हुए कायरा के पलक झपकते ठीक वैसे ही हुआ जैसे उसने कहा था।
इधर जिन दोषी भाइयों ने ऐसी हरकत की थी, उनके खलियानों में अचानक आग लग गई, धन विलुप्त हो गया , और मात्र अचल संपत्तियां ही शेष बची, जिसे उन्होंने अपनी सजा मान स्वीकार किया, और अपने पितरों से क्षमा याचना कर माफ करने को कहा,जिनकी पुकार सुन कायरा उन्हें क्षमा कर वापस हो गई,
लेकिन क्या वाकई समाज में ऐसे पक्ष हमेशा वर पक्ष ही दोषी होते हैं????? क्या कभी वधू पक्ष दोषी नहीं हो सकता?????
संभवतः हां, लेकिन जो भी हो, जुर्म के खिलाफ कायरा की उपस्थिति हर पल संभव होगी, हर किसी के लिए...
शेष अगले भाग में.........