आखिर आज वह दिन आ ही गया, कल्पना के विवाह का दिन..........घर में हंसी खुशी का माहौल था, मैं कल्पना के घर एक दिन पहले से ही आ गई ,
शहनाई की गूंज बजी जा रही थी, खुशियों की मुबारक घड़ी आ गई है, सजी सुर्ख जैसे चांद से दुल्हन आज जमी पर फलक से देखो कोई परी आ गई है,
आज तो सोलह श्रृंगार कर मेरी सखी कल्पना की खूबसूरती पर चार चांद लगे हुए थे, लाल रंग की साड़ी, माथे पर बिंदी, बालों में गजरा ,आंखों में काजल, चूड़ी कंगन और पैरों में पायल पहने कल्पना किसी परी से कम नहीं लग रही थी, मैंने उसे काजल का काला टीका लगाकर कहा, कहीं आज तुझे मेरी ही नजर न लग जाए, और कहते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गए ,क्योंकि आज जो वह मुझसे दूर होने वाली थी।
बाहर सभी लोग बारातियों के स्वागत में लगे हुए, उन्हें जलपान और उनकी सुख-सुविधाओं का सामान देने में में जुटे हुए थे, मैंने सोचा क्यों न जाकर एक बार मैं भी दूल्हे को देख कर आती हूं, जिससे कल्पना का विवाह होने वाला है।
मैं जैसे ही बाहर गई और मेरी नजर हिमेश पर पड़ी तो मुझे बहुत हैरानी हुई, क्योंकि हिमेश कल्पना से उम्र में काफी बड़ा लग रहा था, यही बात मैंने कल्पना की मां से कहा तो कल्पना की मां ने मुझे छिड़कते हुए कहा, कुछ बड़ा नहीं है, और उम्र का क्या करना...... अरे कितने पैसे वाले हैं वह लोग, इस पर ध्यान दो और अब मुझे ही देख लो मैं भी तो कल्पना के पिताजी से उम्र में कितनी छोटी हूं........
मैं सिर्फ उनकी बातें सुनकर चुप थी, कर कुछ ना पाई, मैंने जब कल्पना को जाकर यही बात बताई कि, हिमेश की उम्र तुझसे कहीं ज्यादा है, तब कल्पना ने कहा कि मां पिताजी ने जो मेरे लिए चुनाव किया होगा, वह सोच समझकर ही किया होगा,
जब किसी ने मेरा रिश्ता तय करते समय मुझसे कुछ ना पूछा, फिर अब इन सब बातों को सुनने और बोलने से क्या फायदा,
थोड़ी ही देर में विवाह के मुहूर्त का समय हुआ, मैं कल्पना को लेकर मंडप में पहुंची, जैसे सब की नजर कल्पना पर ही थी, कोई एक पल के लिए भी इधर उधर नहीं देख रहा था, सिर्फ सब कल्पना को ही देखे जा रहे थे, और देखता भी क्यों ना, इतनी खूबसूरत जो लग रही थी।
पंडित जी ने विवाह की सारी तैयारियां की, कल्पना और हिमेश ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई, मंगलसूत्र और सिंदूर की रस्म हुई, पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए और अग्नि के दोनों सात फेरे लेने लगे,
मुझे अभी भी अच्छे से याद है जब पंडित जी सात फेरों के लिए मंत्र बोल रहे थे, तो सारे वचन एक दूसरे को जो लेने के लिए कहा था, वह वचन मुझे आज भी अच्छे से याद है।
कभी-कभी तो लगता है कि ये फेरे केवल शादी के मंडप तक ही सीमित रहते हैं, शायद बाद में बहुत से लोग इन वचनों को भूल ही जाते हैं,
विवाह संपन्न हुआ, कल्पना और हिमेश ने सभी बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया,
सभी बारातियों को भोजन कराया और उसके बाद गांव वालों ने भोजन किया।
अब विदाई का समय नजदीक आ गया, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं कल्पना के सामने कैसे जाऊं, क्योंकि यह विदाई वाला पल में कैसे देखती, आज मेरी सबसे अच्छी सखी मुझे छोड़कर जाने वाली थी, उसके बाद वह मुझे कब मिले पता नहीं यही सोच सोच कर मेरा मन घबरा रहा था।
कल्पना के आंखों से आंसू बहे जा रहे थे, वह अपने पिताजी मां और सभी रिश्तेदारों से गले लग कर जोर जोर से रोए जा रही थी, जब उसने मुझे नहीं देखा तो वह समझ गई कि मैं अंदर ही हूं, और जानबूझकर मैं बाहर नहीं आई,
वह खुद ही अंदर मेरे पास आकर मुझे बोली कि सब बाहर है और तू यहां क्या कर रही है.....मैंने झूठी मुस्कान के साथ कहा कुछ नहीं, बस यह तेरा जरूरत का सामान बैग में डाल रही हूं, तुझे अपने साथ ले जाना होगा, अब तू चले जाएगी तो मुझे भी निजात मिलेगा।
कल्पना ने कहा, क्या तु मुझसे परेशान हो गई है ?????और क्या..... तब कल्पना ने कहा, ऐसा है तो तु मुझसे नजर क्यों नहीं मिला रही है???
जैसे ही मैंने कल्पना की और देखा तो मैं अपने आपको रोक ना पाई, कल्पना और मैं एक दूसरे को पकड़कर बहुत रोए, आज ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरे शरीर से मेरी आत्मा को खींच रहा हैं,
मैंने कहा, मेरी प्यारी सखी तू हमेशा खुश रहना अपने ससुराल में, जैसे यहां चहकती है, वैसे ही वहां भी चहकते रहना, जब भी तुझे कोई परेशानी हो तो मुझे एक बार याद जरुर कर लेना।
तभी सभी लोग अंदर आए और कहने लगे, चलो जाने का समय हो गया, सभी बाराती बैलगाड़ी में जाकर बैठे और एक बैलगाड़ी में हिमेश और कल्पना बैठे, जैसे जैसे बैलगाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी, मेरा दिल बैठा जा रहा था, ऐसे लग रहा है जैसे कोई मेरा कीमती खजाना मुझसे छीन कर ले जा रहा है,
थोड़ी दूर तक हम लोग बैलगाड़ी के पीछे गए और देखते ही देखते बैलगाड़ी हमारी नजरों के सामने से धीरे-धीरे ओझल होते हुए कहीं दूर चली गई।
कल्पना के बिदाई के बाद मैं बाबा के साथ अपने घर आ गई, क्योंकि अब कल्पना के बिना कल्पना के घर में सब कुछ खाली खाली सा लगने लगा था, घर आने के बाद पता नहीं मन में इतनी बेचैनी क्यों लग रही थी कल्पना को लेकर...... मैं सोचे जा रही थी कि कल्पना के साथ सब ठीक तो होगा???? क्या कल्पना को अपने ससुराल में मायके सा प्यार मिलेगा???? यही सोच सोच कर मन घबराए जा रहा था।
शेष अगले भाग में........