वही चंचल आंखे, वही मासूम सा चेहरा और होठों पर ना समा सकने वाली मुस्कान, पल पल में किसी रेशे की तरह बिखर जाने वाले वह लंबे बाल जो कमर से भी नीचे थे, जाना पहचाना सा नैन नक्श मुझे रह-रहकर ना जाने क्यों किस ओर इशारा कर रहा था, एक पल के लिए मुझे यह समझ नहीं आया कि मेरी रचना कायरा के कारण हुई या कायरा ने खुद ही विधाता से मुझे मांगा, इसलिए अब तक मेरा यह भ्रम जो यह सोच रहा था कि मेरी रचना विधाता ने किसी खास मकसद के लिए की हैं।
क्योंकि कायरा का सम्मोहन और उसमें छुपी हुई तस्वीर मुझे अनायास ही अपनी और आकर्षित कर रही थीं, एक पल को जी चाह रहा था कि मैं अपनी शक्ति का प्रयोग कर उस शक्ति को पढ़ लूं, लेकिन ऐसा संभव नहीं, क्योंकि इस बात की मुझे इजाजत नहीं कि मैं कायरा के ऊपर किसी भी शक्ति का प्रयोग कर सकूं, इसलिए मैं विवश थी और मेरी इस सृष्टि के पश्चात पहली बार मैंने खुद ही अनायास ही अपने ईश्वर को याद किया, क्योंकि यह सत्य है कि कोई भी आत्मा कुछ समय के लिए विलुप्त हो सकती लेकिन खो नहीं सकती, वह इसी ब्रह्मांड के एक कोने से दूसरे कोने में विचरण करती रहती है, ऐसे में से वह अनेकों बार जन्म मरण के किस्सों से होकर गुजरती है।
लेकिन जब बात किसी वादे को निभाने की हो या किसी कर्ज को चुकाने की तब उसे कहीं ना कहीं उसी जगह रुक कर इंतजार करना होता है, और मुझे ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि मेरा हिसाब शायद अभी पूरा नहीं हुआ था, लेकिन कायरा से भला मेरा क्या नाता ?????जबकि अभी अभी कुछ समय पहले ही मैं अस्तित्व में आई थी, फिर आखिर क्यों ????और किस कारण????? समझ नहीं आ रहा था??????
लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ ज्यादा सोच पाती कि अचानक फिर एक हवा का झोंका कायरा को छूता हुआ, मुझ तक पहुंचा और एक भीनी सी खुशबू का अहसास करते हुए मेरे मुंह से अचानक निकला.......
आहा........कल्पना....... और अचानक कल्पना की तस्वीर मेरे नजर के सामने आई....
आश्चर्य......घोर आश्चर्य...... मेरी सखी, मेरी प्यारी सखी कल्पना.......यहां और इस रूप में अद्भुत है.....
ईश्वर धन्य है तू और तेरी माया, हमने हर जन्म साथ मांगा था, कल्पना ने शक्ति और मैंने कल्पना का साथ और सच में तूने दे भी दिया, वाकई जो नादान तुझे बेवफा और गुनाहगार कहते उसे मालूम होना चाहिए कि कायनात चलाना इतना आसान नहीं है, यह बात और है कि हर चीज और बात हमारे चाहे अनुसार और चाहे समय पर मिल जाए, यह जरूरी नहीं.....
यह भी जरूरी नहीं जिसे आज हम अच्छा समझ रहे हैं, वह हमारे लिए अच्छा ही है, और ठीक इसके विपरीत अगर कुछ बुरा हमारे साथ हो तो इसके लिए दोषी उस परवरदिगार को ठहराया जाए, हो सकता है यही नियम है उसका, और यही तकदीर हो तुम्हारी....
हर कोई जानता है कि कल का किसी को भरोसा नहीं, फिर भी वह संगी साथियों और रिश्तेदारों को खुश करने में लगा रहता है, वही दूसरी और कभी-कभी वह उन सभी को नजरअंदाज कर संपत्ति जुटाने में लग जाता है, जबकि वह जानता है कि कल उसके साथ नहीं और फिर भी वह गुनहगार उसी को ठहराता है, जिसने उसे इतना कुछ मौका दिया..............
मैं ना जाने किन विचारों में खो गई जो शायद मेरी अंतर्दृष्टि से उपज रहे थे, मेरे लिए यह मान पाना सहज नहीं था कि सृष्टि के पूर्व की कल्पना आज कायरा बनकर फिर उसी शक्ति के साथ दोबारा.....आखिर कैसे????
बस अंतर सिर्फ इतना था कि उसने पूर्व जन्म में अपनी शक्तियों को पहचानने में देर कर दी, और इस जन्म में उसकी शक्तियों को पहले से उजागर कर दिया गया, लेकिन कैसे,?????यह तो बिना किसी गुरु के संभव नहीं है, तभी उसके परिकल्प में जाने पर मुझे गुरुदेव की तस्वीर नजर आई, जो मेरे लिए एक और बड़ा आश्चर्य का विषय था कि कैसे वह गुरु इतने वर्षों की साधना के पश्चात अपनी शिष्या को पुनः शक्तियां प्रदान करने हेतु उसे ढूंढते हुए आखिर अपने लक्ष्य तक पहुंच ही गया,
ना जाने कितने ही सवाल मेरे दिमाग में उठ रहे थे, और निरुत्तर हो कर किसी सागर की लहरों की तरह जो किनारों से टकराकर लौट आती है, ठीक उसी तरह मेरी भावनाएं में सवाल बनकर उपजती और पुनः निरुत्तर होकर लौट आती।
सब कुछ सामान्य सा लग रहा था, बस मुझे नजर आ रहा था, तो सिर्फ उस खूबसूरत कायरा का चेहरा जो लगभग लगभग पुरानी कल्पना को मात देता नजर आता, उसके शांत मन की मुस्कान और विशाल हृदय में छुपी हुई अनेक भावनाये, जिसे शायद सिर्फ मैं ही पीढ सकती थी, और फिर था ही कौन उस कल्पना के पास मेरे अलावा जो उसे समझ पाता था,
हम दोनों की स्थिति कुछ ऐसी ही थी कि हम नसीब को दोष भी नहीं दे पाते, मुझे अच्छे से याद है कल्पना और मैं पूर्व जन्म में कैसे साथ मिलकर समस्याओं का समाधान पाने में सक्षम थे, लेकिन यह जरूरी तो नहीं कि समस्या हमारा साथ छोड़ देती........
कल्पना की मां उसे महज सात साल की अवस्था में ही छोड़कर चली गई, वह अपनी मां की मृत्यु के पश्चात अपने आप के आंसुओं के सागर को समझ पाती, इसके पहले ही अपनी इकलौती बेटी को सहारा देने के नाम पर उसके पिता ने दूसरी मां का फरमान जारी कर दिया, भला ऐसा भी कहीं होता है की पत्नी को मरे चार महीने ही हुए, और उन्होंने दूसरी शादी कल्पना को माध्यम बनाकर लोगों को उसकी चिंता और मासूमियत दिखा कल्पना को सखी के नाम पर सौतेली मां का उपहार दे दिया, क्योंकि घर की विरानापन और मां की यादें कल्पना के मन से निकलते ना निकलती, इसलिए वह भी क्या उत्तर दे पाती, जिसने जैसा पूछा, वह बेचारी उत्तर देती चली गई।
बस सबसे उसने यही कहा जैसे पिता की मर्जी, मेरा भला बुरा भी अच्छे से जानते हैं, शायद यह एक बेटी का अपने पिता पर पूर्ण विश्वास ही था, उसके पिता ने दूसरी शादी कर दामिनी जो पिता से बहुत कम उम्र की या यूं कहें, कल्पना से कुछ बड़ी......
कल्पना ने भी अधूरे मन से उन्हें अपनाया और हमेशा की तरह अपने आप में डूबी रहने लगी उन्ही पुराने ख्यालातो के साथ अपने मां की भूली बिसरी यादों में.......
लेकिन कभी उसने किसी को यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसके दिल में कितना दर्द था, लेकिन वह मुझसे कुछ भी छिपा पाने में भला कहां कामयाब हो पाती, मैं उसकी नजरों को ही देख उसके दर्द को समझ पाने में पूर्ण समर्थ थीं, इसलिए वह ऐसा प्रयास भी नहीं करती, अपने दिल का दर्द वह खुलकर मुझसे कहती और मुझ में भी जहां तक संभव होता, मैं उसे सांत्वना देने और उसका दर्द हल्का करने की कोशिश करती, लेकिन थीं तो सखी ही ना, भला हमारा साथ कब तक बना रहता,
दिन के कुछ घंटे जब तक हम किसी काम से मिले, लेकिन उसके बाद फिर वही उसकी जिंदगी और अधूरापन, सौतेली मां ने शुरू शुरू में दिखावे के लिए वाकई सच ऐसा व्यवहार अपनाया, जिसे देख कल्पना को भी उन पर विश्वास हो चला और वह थोड़ा ठीक अनुभव करने लगी, मेरे लिए भी बहुत खुशी की बात थी, जहां कल्पना एक और सौतेली मां को सही समझ उसकी सेवा भाव में लगी थी, वहीं दूसरी और उसे क्या पता था कि दामिनी के मन में कुछ और ही चल रहा था,
लेकिन क्या?????
शेष अगले भाग में.......