यह बात किसी से नहीं छुपी थी कि चौधरी साहब ने कभी भी अपने बेटे, बेटी और बहुओं में किसी भी प्रकार का कोई भेद भाव किया हो, वह आकृति को बिल्कुल अपनी बेटियों की तरह ही मानते थे,
वे सारी बाते आकृति को बताते और काम पड़ने पर आकृति से सलाह भी लेते, लेकिन वह अपने बेटे केशव की हरकत से बिल्कुल भी अनजान नहीं थे, वह भाप गए थे कि केशव आखिर क्या चाह रहा है????? लेकिन आकृति की ऐसी दशा देखकर वे केशव को कुछ नहीं कह पा रहे थे, उन्हें तो अभी सिर्फ़ आकृति के जल्दी से कैसे भी ठीक होने की चिंता सताए जा रही थी, उन्होंने आकृति के इलाज के लिए अच्छे से अच्छे डॉक्टर को बुला रखा था।
वे आकृति के ठीक होने की दुआएं और सेवा में लगे थे, इसी बीच कुछ दिन बीत गए और केशव ने मन ही मन बहुत सी योजनाएं बनाए रखी थी, किस तरह उस जमीन को वो अपने नाम कर ले, बस दिन रात इसी बारे में सोचता रहता, उसे आकृति की हालत पर जरा भी तरस नही आया, वो तो यही चाहता था कि आकृति कभी भी ठिक ना हो, केशव को लगता था कि आकृति उसके बीच का काटा है, मौका पाते ही केशव ने सारे पेपर तैयार कर लिए और सारे पेपर अपने पक्ष में भी कर लिया, बस देरी थी तो एडिशनल चार्ज वाले तहसीलदार के पास जाने की।
एडिशनल चार्ज वाले तहसीलदार जो कि दूसरे जिले में रहते थे, तब केशव दस्तावेज हासिल करने के लिए एडिशनल चार्ज वाले तहसीलदार के ऑफिस जाने की योजना करता हैं, वह बड़े जल्दबाजी में गाड़ी में जाकर बैठ जाता हैं और बिना देर किए ड्राइवर को तेज फर्राटे से गाड़ी दौडाने को बोलता हैं,
केशव जब सारे पेपर को संभाल कर सूटकेस में रखकर जब गाड़ी में बैठकर दूसरे तहसीलदार ऑफिस की ओर जाने के निकल पड़ा था, तभी बीच रास्ते में उसी पहाड़ के पास जो गांव से बाहर था, अचानक चिलचिलाती धूप में गाड़ी बंद हो गई, ड्राइवर ने गाड़ी को देखकर कहा कि शायद ठिक होने में एक घंटा लग जाएगा, गर्मी बहुत ज्यादा थी और यह सुनकर केशव बाहर निकलकर टहलने लगता हैं,
केशव टहलते हुए थोड़े आगे की और निकल जाता हैं, और गाड़ी ठिक होने का इन्तजार करता है,
तभी अचानक केशव का पैर फिसल जाता हैं, और वह गिरते हुए पहाड़ों की किसी अनजान कन्द्राओ के पास जा पहुंचा, वह आश्चर्यचकित था कि कुछ ऐसा भी हो सकता है यहां???? लेकिन शायद पिछली दफा विस्फोट के कारण यह उभर कर सामने आई थी, जिसे आज तक किसी ने ना देखा हो।
केशव ने अंदर जाकर देखा तो उसे कुछ हल्की सी चमक नजर आई, केशव को किसी खजाने के लालच ने उसे भीतर तक जाने पर विवश किया, केशव को वहां भारी खजाने का आभास हुआ, और जैसे ही केशव भीतर गया, वहां एक अजीब विस्फोट के साथ सोने के अनेकों मुद्राओ ने उसे ढक लिया, और देखते ही देखते केशव ने अपने प्राण त्याग दिए।
इधर अचानक धीरे धीरे आकृति के शरीर में कुछ हलचल हुई, और पुनः स्वस्थ होने लगी, अब आकृति पुरे तरीके से ठीक हो चुकी थी, आकृति अब पुरी तरह से ठिक होने पर जब वह एक दिन बगीचे में बैठ सामने लताओं को निहार रही थी, कि तभी चौधरी साहब ने आकर आकृति को धीरे से कहा कि मैं जानता हूं कि तुम्हारे एक्सीडेंट करवाने में कहीं ना कहीं केशव का हाथ था, और इसलिए जब वह नहीं रहा तो उसकी तरफ से मैं तुमसे माफी मांगता हूं, हों सके तो मुझे माफ कर दो बेटा,
तब आकृति ने हाथ जोड़कर प्रत्युत्तर में कहा, बाबूजी ना तो दोष आपका है और ना ही मेरा........
उन्हें उनके लालच ने ही इस गति तक पहुंचाया।
आकृति की एसी बात सुनकर चौधरी साहब आश्चर्यचकित होकर आकृति की तरफ देख रहे थे, आकृति कहे जा रही थी कि जब उस दिन मैं गाड़ी से बाहर निकली और जब मैंने आवाज सुनी तब ही मैं समझ चुकी थी कि यह सब केशव का ही रचाया हुआ जाल है, लेकिन उसके पहले मैं कुछ भी समझ पाती उससे पहले ही मेरा शरीर बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो चुका था।
वहां मैं स्पष्ट रूप से देख पा रही थी कि कैसे पत्थरों के ढेर से मेरे शरीर को निकाला गया और उसी दौरान सब का विलाप और केशव की नादानियां और कपट को भी देखा, जिसकी कल्पना उसे कभी भी ना थी।
इस दौरान उसने विलाप के समय अचानक अदृश्य शक्तियों का आभास किया, जिसमें कायरा और अन्य और कुछ शक्तियां थी,
शक्तियां?????????
हां बाबूजी...... कायरा......
कायरा?????कौन कायरा?????
बाबुजी कायरा जिसने उसकी भरसक मदद की और जब इंसाफ के नाम पर केशव को सजा देने की बात आई तब कायरा को मैंने केशव को उन्हें समझाइश देकर छोड़ देने की बात कही थी, जिस पर कायरा ने मुस्कुराते हुए कहा कि आकृति जमाने को तुम अपनी मौत के पास आ कर भी ना समझ पाई हों, इसलिए तुम ऐसा कह रही हो।
तब कायरा ने मुझसे कहा कि मैं उसे एक मौका और दूंगी, यदि वह सुधर गया तो छोड़ दूंगी, अन्यथा सजा पक्की......
और उस दिन जब उस गुफा में केशव पहुंचा तब कायरा का सौंदर्य और सोने की चमक ने उसे पागल बना दिया, उसने कायरा के साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास तो किया ही, साथ ही मेरे लिए अपनी कपटी भावना को स्पष्ट करते हुए पूरे खजाने को अकेले पाने की कोशिश भी की,
और वही केशव ने कायरा को मारने की साजिश की, लेकिन यह उसका अंतिम समय और अंतिम बोल भी था,
अचानक कायरा ने उसको झील की गहराइयों में ले जाकर पहले उसे बहुत तड़पाया, और फिर उसे सोने के ढेर पर ले जाकर पटक दिया, और यह कहते हुए कि जा सारी दौलत तेरी......
और केशव उस सोने के ढेर में दफन हो गया, जहां उसकी मौत हो गई।
चौधरी साहब अपने बेटे की करतूत समझ चुके थे, और कायरा का इंसाफ भी......
वे आकृति से माफी मांगने लगे और उनकी आंखों में शर्मिंदा के आंसू भी थे, और उन्होंने आकृति से कहा, मैंने पता नहीं कैसे बेटे को जन्म दिया, जिन्होंने तुम्हें ही मारने की कोशिश की सिर्फ पैसों के लिए, यह पैसा भी इंसान को कैसा अंधा बना देता है, वह पैसे के आगे सब कुछ भुल जाता है, समाज, रिश्ते सब कुछ......
तब आकृति कहती कि बाबूजी आपको शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है, इसमें आपकी कोई गलती नहीं थी, कहते हुए अपने बाबूजी के चरण स्पर्श करती है, और अगले दिन से अपनी ड्यूटी को दोबारा ज्वाइन कर लेती है।
अब आगे कायरा का अगला इंसाफ क्या होगा?????
और कायरा अब किसे इंसाफ दिलाएगी????
शेष अगले भाग में........