"जिंदगी की हर कहानी
बेअसर हो जाएगी
जो हम ना होंगे तो
यह दुनिया बर्बाद हो जाएगी
पैर पत्थर करके छोड़ेगी जवानी
अब रुख भी जाइए,
जो चलना सिखा दिया साथ हमने तो
यह जमीं भी हमसफर हो जाएगी"
कहते हुए वह रीना को घुर रहा था, और शायद रीना को भी आज उसकी बातें ना जाने क्यों कुछ ज्यादा ही भा रही थी, यह असर उस अशलील निगाह का था, या उस शायरी का या रीना की बढ़ती उम्र का जो भी हो, लेकिन ना जाने क्यों विशाल का उसका पनघट पर इंतजार करना और रीना के आने पर अजीब सी हलचल के साथ-साथ सजग होकर बैठना, पूरे समय चुपके-चुपके रीना को सरसरी निगाहों से घुरना, यह सब रीना को अब अच्छा लगने लगा था।
जब कभी वह नहीं दिखता तो अनायास ही उसकी निगाहें विशाल को ढूंढने लगती, अक्सर वह जानबूझकर गांव के महिलाओं के जाने के बाद पानी लेने पनघट पर आने लगी।
उसकी सफेद उजली गोरी चमड़ी, जैसे विशाल की नजरें ही नहीं, सूरज की तेज जला देने वाली किरणें भी बदला लेना चाहती थी, लेकिन जवानी की तपिश के आगे भला वह क्या असर दिखा पाती....
तब फिर भी जबकि वह ऊपर से नीचे तक खुद को ढके हुए और मुंह पर दुपट्टे की परत चढ़ाए, घर से बाहर निकलती थी।
उसमें सिर्फ अब तक अपनी आंख और नाक को ही कपड़ो से बाहर झांकने की इजाजत दी थी, इसके अलावा उसके दमकते सुंदर चेहरे के किसी भी हिस्से को शायद आज तक गांव के किसी भी छलिए ने देखने की कोशिश न की,
लेकिन बेहरम धूप की तरह ही विशाल की घूरती निगाहें जैसे किसी एक्सरे मशीन की तरह तो जैसे उन कपड़ों के भीतर भी रीना को साफ-साफ देख पाने में पूर्ण सक्षम थी,
बस इंतजार था तो यह कि कब उसके शरीर का स्पर्श प्राप्त हो, ताकि वह मन में की गई कल्पना में बसी हुई रीना के अंग प्रत्यंग को साकार रूप से देख सके।
रीना भी आजकल शीशे के सामने घंटों देख अपने आप को निहारने में कोई कसर ना छोड़ती, अब उसे भी ना जाने क्यों आईने में छुपी विशाल की नजरें नजर आने लगी, और धीरे-धीरे आईने के सामने ही वह शर्मा कर बेपर्दा होने लगी, हालांकि उसकी हरकत का अंदेशा उसे तब हुआ जब उसके ही हाथों की हरकत ने उसे अचानक अपने उभार पृष्ठ पर हुई टकराहट से अचानक उन्मुक्त कर दिया, और वह घबराकर पीछे हट गई।
उसका यह प्रथम एहसास उसे बड़ा अजीब सा लगा, उसने तुरंत अपनी असीम सुंदरता को फिर से दुपट्टे की परतों में छिपा दिया, लेकिन मन में उठने वाली उमंगे, भला क्या उस दुपट्टे में छुपती?????
बड़ी मुश्किल से रीना अपने आप को संभाल पाई थी , अपने आपको उस दिन उसने तौबा किया, और निश्चित किया कि वह दोबारा ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी, और जाकर अपनी मां से बात कर अपना मन बहलाने लगी।
लेकिन कमबख्त मन तो जैसे निगाहों पर भी जोर बना रखा था, अब रह रह कर उसका ध्यान विशाल की निगाहों की और आकर्षित हो रहा था, तभी अचानक उसके मन ने हरकत की, और पास रखे घड़े को हल्का सा धक्का दे दिया, वह झटका रीना के लिए तो साधारण था, लेकिन घड़ा बर्दाश्त ना कर सका और जमीन पर आकर धड़ामम्म्म्म के साथ सारा पानी फर्श पर गिर गया, शायद यह उस घड़े का नहीं रीना के इम्तिहान का नतीजा था।
तार-तार होती उसकी जवानी जैसे उस पानी की तरह बिखर जाने को उतारू थी, अब उसे कल ही ठीक नाप से सिलाये हुए कपड़े असहाय से जान पडने लगे, वह क्या करना चाहती थी और किस एहसास में डूब रही थी, यह तो सिर्फ उसका अंतर मन ही जानता था, ऐसा लग रहा था जैसे कामदेव ने अनेकों बाण एक साथ रीना के ऊपर छोड़ दिए हैं।
तभी उसकी मां ने अचानक तेज गुस्से के साथ उसे झल्लाकर उसका ध्यान भंग किया, यह क्या सारा पानी गिरा दिया, अब तेरे पिताजी के आने का समय भी हो चुका है, कहां से पानी लाएगी ?????
अब इस भरी दोपहर में चिलचिलाती धूप का मजा ले, जा पानी लेकर आ..... रीना को तो जैसे मन की मुराद ही मिल गई थी, वह भी तो यही चाहती थी, तुरंत एक झूठे अपराध बोध के साथ पीतल के बर्तन को लेकर पानी के लिए निकल पड़ी, क्योंकि उसे यह पूर्ण अहसास था कि माटी का मटका आज वह संभाल पाने में सक्षम नहीं है।
रीना आज बिना दुपट्टे के ही अनायास या जानबूझकर कहे, पानी लेने निकली थी, उसकी निगाहें कहीं ना कहीं विशाल को पनघट पर दिख जाने की दुआ कर रही थी, वह तेजी से कुएं की और बड़ी, लेकिन अब तो सारी मेहनत बेकार हो गई, उसे कहीं पर भी विशाल नजर नहीं आया और वह अफसोस करती हुई अनमने मन से वापस आ गई।
तभी शायद बहुत दिन पुराना रखा हुआ वह पीतल का बर्तन अचानक पानी भरने से झलक कर पानी की कुछ बूंदे उस सुंदर देह पर टप टप कर टपकने लगी, यह पानी की बूंदे रीना के चेहरे को स्पर्श करती हुई नीचे ढलान की और उसकी गर्दन को छूकर शरीर के अंगों को स्पर्श करती हुई पूर्ण तेजी से जैसे रीना को पूरी तरह चूम लेना चाहती हो।
पानी की दिशा रीना जैसे अच्छे से एहसास कर पा रही थी, कि तभी अचानक उसे विशाल सामने मुस्कुराता हुआ नजर आया, रीना को ना जाने क्यों क्या हुआ, वह अपनी नजरों में छुपी हुई बातों को छिपाते हुए विशाल को अनदेखा कर आगे बढ़ने लगी।
तभी अचानक जैसे उसे किसी ने पीछे से जोरदार जकड़ कर उसी जगह पर खड़ा कर दिया, वह चाहकर भी अपने स्थान से हिल ना पाई और विशाल के हाथों ने जैसे अपनी सारी मुरादें पूर्ण करना शुरू कर दिया, उसके हाथ पहले रीना की कमर में, फिर उसके गोरे गोरे बदन पर घुमाने लगा, उसके हर हरकत का एहसास जैसे रीना अपनी अनुभूति के साथ कर रही थी।
वह भी शायद दिल ही दिल में कुछ ऐसी हरकत का सोच कर आई थी, विशाल के हाथों की हरकतों से मनचाही मुराद पूरी करने जैसे लग रहा था।
रीना सिर पर बर्तन रखे रहने का बहाना बना, झूठे शब्दों में सिर्फ झूठे दिखावे के रूप में ना नुकुर कर रही थी, बर्तन का पानी जैसे उसके अंगों को छूते हुए अंतिम चरण पर आ और भी तेजी से आग लगा रहा थी, तभी विशाल ने बड़ी तेजी से हाथ चलाते हुए बिना मौके गवाते हुए रीना को जकड़ लिया, अब बारी होठों को हरकत करने की थी, उसने तुरंत उन गोरे गालों को जिन्हे आज तक किसी ने देखने की हिम्मत भी न की थी, चूमना शुरू कर दिया, और अंततः उसने एक रगड़ के साथ रीना के होठों पर जाकर अपने होठ टिका दिए।
रीना तो जैसे बेहोश सी होने लगी थी, तभी बस विशाल कहकर वह उसी स्थान पर बैठ गईं,
लेकिन भला क्या विशाल मानने वाला था?????
वह ऐसे मौकों को भला कहां जाने देता, लेकिन शायद रीना इस परिस्थिति में नहीं थी।
शेष अगले भाग में........