नदियों में बहता हुआ कल कल पानी, झरनों से फव्वारे की तरह बिखर जाने वाली, उच्च स्वर में गिरता पानी और पानी में डुबकी लगाकर फिर लौट आने वाली बतखे, अंगड़ाई लेते पशु-पक्षी और हल्की धूप में यहां वहां भागते मृग, सावक.....
एक समय के लिए ऐसा लगता जैसे अचानक थम से जाते, खासकर तब जबकि कनक का मधुर स्वर गूंज उठता, उसकी मधुर आवाज एक पल के लिए जैसे सब कुछ रोक देती है।
हर कोई रुक कर उस और आकर्षित होने लगता है, वही संपूर्ण प्रकृति जैसे एक संगीत में वातावरण तैयार कर उसका साथ देने लगती है, ऐसी खूबसूरत आवाज अचानक प्रकृति में गूंजती और संपूर्ण प्रकृति को अपने आगोश में ले लेती है, लेकिन दूसरे ही पल किसी चमत्कार की तरह जैसे गायब सी हो जाती है, यह प्रकृम काफी दिनों से देखने में आ रहा था।
मेरा ध्यान रह-रहकर उस और आकर्षित होता, लेकिन अगले ही पल कायरा के लिए अपनी जिम्मेदारियां सोच मैं उस आवाज का पीछा ना कर पाती, क्योंकि यह समय था कायरा के लिए शक्ति संचय और उस पर नियंत्रण पाने का, क्योंकि वह धीरे-धीरे अपना वृहद रूप लेते जा रही थी।
मात्र तीन माह में कम से कम कुछ छः - सात अनहोनी घटनाओं को उसने देखा और इंसाफ के तौर पर दोषी को दर्दनाक मौत भी प्रदान की, क्योंकि उसे ना अदालत की जरूरत और ना किसी गवाह की, क्योंकि जिस पर जुर्म हुआ, वह खुद ही गवाह है और गुनाहगार खुद ही अपने जुर्म कबूल करता है, तब कोई भूल हो जाए, इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं।
इन सबके बीच उसका स्त्री मन प्रभावित ना हो, यह भी देखना मेरे लिए बहुत जरूरी था, इसलिए मैं उसे रह रह कर कभी मेमने के रूप में, तो कभी सुंदर प्रकृति के रूप में, वातावरण प्रदर्शित कर उसके दुख को हरने का प्रयास करती, और कई अतृप्त आत्माओं की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कायरा पर न पड़े, इसलिए उन्हें तुरंत शांत कर सकारात्मकता में परिवर्तित करने का प्रयास करती, क्योंकि ईश्वर ने यह अनोखी शक्ति मुझ जैसे भक्तों को प्रदान कर रखी है, लेकिन फिर भी आज ना जाने क्यों मेरा मन रह-रहकर मधुर स्वर की ओर खींचा चला जा रहा था, शायद ईश्वर का यह सारा इशारा रहा होगा।
मैंने आखिरकार उस आवाज का पीछा किया, और उस स्वर की मल्लिका के पास जा पहुंची,
खूबसूरत..........बहुत खूबसूरत.............बिल्कुल उस आवाज की तरह,
मैं आज तक सोच रही थी कि ईश्वर ने ऐसा स्वरूप सिर्फ मेरी सखी को ही प्रदान किया, लेकिन ऐसा सोच लेना शायद मेरी भूल थी, क्योंकि उसकी सत्ता में कभी भी पक्षपात नहीं होता, वह सबके लिए समान भाव रखता है, और उसी के अनुसार उसने सबको कोई ना कोई विशेषता किसी ना किसी आधार पर प्रदान की हैं, फिर वह कोई भी जीव क्यों ना हो।
इतना खूबसूरत स्वरूप देखकर मैं भी उसकी और आकर्षित होने लगी, और एक सुंदर खरगोश का रूप ले उसके पास जा उसके पैरों को सहलाने लगी, उसने बड़े प्यार से उस खरगोश को उठाया और उसके सिर पर हाथ घुमाया, और पुनः जमीन पर छोड़ दिया।
बस इतना स्पर्श काफी था उसके संपूर्ण जीवन चरित्र को पढ़ने के लिए...... हे ईश्वर कैसी माया है तेरी, क्यों सुकुमाल और सुंदर रचनाओं को काँटों के बीच संजोता है???? क्यों नहीं उसे यूं ही हरी-भरी वादियों में पनपने की इजाजत देता है???? गुलाब को कांटो के बीच, कमल को सरोवर के बीच रख आख़िर क्यों उसे अकेला और दूर रहने को मजबूर कर देता है,
कनक के स्पर्श में मुझे उसका दर्द साफ नजर आया, कितनी अकेली थी वह, इतने बड़े घर की बेटी तो नहीं, लेकिन मध्यम परिवार की वह एकमात्र राजकुमारी थी, जिसे उसके पिता ने बड़े प्यार से पाला,
अथाह संपत्ति एकत्रित की, और एक दिन अचानक ना जाने उसके 12 वर्ष की उम्र में उसे अकेला छोड़ कर चल बसे ,
बढ़ती उम्र की बेटी और फैला हुआ व्यापार को वह भला उसकी मां अकेले कैसे संभाल पाती , इसके लिए कनक की मां ने अपने छोटे और बेरोजगार भाई की मदद ली, और उसे अपने व्यापार का हिस्सेदार बना अपने परिवार के अभिन्न अंग की तरह दर्जा देने लगी, सब कुछ धीरे धीरे ठीक हो चला था,
उसका भाई दिनेश अपनी भांजी कनक को जैसे अपनी आंखों का तारा मानता हो, उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश को बिना कहे समझ जाता, लेकिन हर समय एक सा नहीं होता।
कनक अब 16 साल की हो चुकी थी, और खूबसूरती जैसे उस पर अपने सारे वरदान लुटा रही थी, इसी बिच कनक के मामा दिनेश का विवाह उसी गांव की एक जानकार लड़की के साथ हो गई, सभी खुश थे कि अब कनक को एक और साथी मिल जाएगी,
पद्मिनी मामी एक सखी की तरह उसका साथ निभाएगी, लेकिन हुआ इसके विपरीत, पद्मिनी को कहीं ना कहीं कनक की खूबसूरती और उसके स्वर भरी मधुर आवाज प्रभावित करती है , और उसे अनजाने ही अपना अस्तित्व कम महसूस होने लगा, और इसी कारण उसके मन में ईर्ष्या भाव आने लगता।
अब वह धीरे-धीरे कनक से दूरी बनाने लगी, और साथ ही साथ दिनेश को भी इधर-उधर के कामों में उलझा कर उसको परिवार से दूर करने लगी, अब दिनेश अधिकतम समय उसकी बातों में उलझा रहता, क्योंकि अक्सर इतने बड़े व्यापार को संभालते हुए बहुत कम ही उसे समय मिलता था परिवार के लिए, और उसे ना जाने क्यों अपनी पत्नी पद्मिनी पर भी बहुत भरोसा था, कि वह उसकी अनुपस्थिति में कनक और उसकी बहन का अच्छे से ख्याल रखती होगी।
एक दिन अचानक सफाई के दौरान उसके हाथ राजीनामा और वसियत के कुछ कागज सामने आए, जिसमें संपूर्ण व्यापार और उसके लाभ का आधा हिस्सा कनक के नाम और आधे से आधे भाग का आधा हिस्सा दिनेश और उसकी बहन अर्थात कनक की मां के नाम था, और ऐसा इसलिए क्योंकि कनक के पिता ने अपनी मृत्यु के पहले ही कनक और उसकी मां के बीच आधा आधा हिस्सा बांट रखा था, और उनके जाने के पश्चात उसमें बिना कोई परिवर्तन किए उसकी मां ने अपने हिस्से का आधा अपने भाई को दिया, और आधा खुद रख लिया, और वैसे भी इस वसियत से कोई प्रभाव पड़ता नहीं क्योंकि पूरा व्यापार तो दिनेश और कनक की मां मिलकर ही संभालते थे, और बंटवारे के बारे में कभी सोचा भी नहीं था,
लेकिन वसियत तो वसियत हैं, जिसे देख पद्मिनी का व्यवहार और उसके दिमाग की हलचल में अचानक बड़ा परिवर्तन आया, वह किसी न किसी बहाने से कनक के उस हिस्से को खत्म करना या उसे अपने पक्ष में मिलाना चाहती थी, क्योंकि काम के मामले में उसके पति की भागीदारी कई ज्यादा बढ़ चढ़कर थीं, अब इसलिए वह विचार करने लगीं कनक को काबू में करने का.......
आखिर पद्मिनी क्या करना चाहती हैं?????
क्या वह कनक की वसियत अपने नाम कर लेती?????
या वह कनक को कोई किसी तरह का नुकसान पहुंचाना चाहती है???????
शेष अगले भाग में.......